कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय ने निवास प्रमाण पत्र (Kerala HC on nativity certificate) के मामले में कहा है कि केरल में रहने वाले ऐसे लोग जिनका जन्म राज्य में नहीं हुआ है, लेकिन वे नियमों तथा मूल्यों का सामाजिक रूप से पालन कर रहे हैं, वे राज्य के निवासियों के लिए उपलब्ध शैक्षिक तथा अन्य लाभों का दावा करने के लिए निवास प्रमाण पत्र पाने के हकदार हैं.
उच्च न्यायालय ने कहा कि केरल के बाहर जन्मे किसी व्यक्ति को निवास प्रमाणपत्र देने का एकमात्र आधार व्यक्ति या उसके माता-पिता का जन्म स्थान नहीं हो सकता. राज्य के साथ सामाजिक तौर पर वे कब से जुड़े हैं इस पर भी गौर किया जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति पीबी सुरेश कुमार ने कहा कि सामाजिक संबद्धता का पता इस बात पर विचार करके लगाया जा सकता है कि क्या संबंधित व्यक्ति ने राज्य में प्रचलित नियमों और मूल्यों को सामाजिक तौर पर अपनाया है.
उन्होंने कहा, 'अगर व्यक्ति ने राज्य में प्रचलित नियमों और मूल्यों को सामाजिक तौर पर अपनाया है, तो मेरे विचार से उसे राज्य का निवासी समझा जा सकता है....और यह कहने की जरूरत नहीं है कि वे राज्य के निवासियों के लिए उपलब्ध शैक्षिक तथा अन्य लाभों का दावा करने के लिए निवास प्रमाण पत्र हासिल करने के हकदार हैं.'
उच्च न्यायालय ने यह आदेश 24 वर्षीय महिला की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें उसने उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए निवास प्रमाण पत्र देने का अनुरोध किया था.
निवास प्रमाण पत्र के उसके आवेदन को ग्राम अधिकारी ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि न तो उसका जन्म और न ही उसके माता-पिता का जन्म केरल में हुआ है.
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अदालत ने ग्राम अधिकारी के फैसला को रद्द करते हुए कहा, 'हालांकि, याचिकाकर्ता (महिला) के पूर्वज राज्य से नहीं हैं और याचिकाकर्ता का जन्म भी राज्य में नहीं हुआ है, लेकिन मौजूदा दस्तावेजों से संकेत मिलता है कि वह एक ऐसी इंसान है, जो केरल राज्य के नियमों और मूल्यों का सामाजिक तौर पर पालन करती है. मेरे अनुसार, ऐसे व्यक्ति को केरल का निवासी माना जाना चाहिए. यह कहने की जरूरत नहीं है कि वह राज्य के निवासियों के लिए उपलब्ध शैक्षिक और अन्य लाभों का दावा करने के लिए निवास प्रमाण पत्र पाने की हकदार है.'
(पीटीआई-भाषा)