वाराणसीः बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद के बाद अब प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद दक्षिण भारत को मिलने जा रहा है, जिसकी रूपरेखा तैयार कर ली गई है. वाराणसी में तैयार "कांची कामकोटी मठ" की तरह अब अयोध्या में भी एक नए मठ को तैयार करने का प्लान है, जिससे दक्षिण भारत से रामनगरी आने वाले लोग न सिर्फ वहां प्रवास कर सकें, बल्कि प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद भी ले सकें. कामकोटी मठ द्वारा अयोध्या में एक सभागार और यज्ञ के लिए स्थान तैयार किए जाने की योजना है. इससे अयोध्या में आने वाले भक्तों को प्रवास की सुविधा मिल सकेगी और वे अपने अनुसार यज्ञ-हवन भी कर सकेंगे.
कामकोटि मठ ने किया था मंदिर निर्माण
वाराणसी "कांची कामकोटी मठ" के मैनेजर वीएस सुब्रमण्यम ने बताया कि सनातनियों के लिए बड़ा ही हर्ष का विषय है कि आने वाली 22 जनवरी को भगवान श्रीराम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा अयोध्या में होने जा रही है. जैसा कि कांची कामकोटि पीठाधीश्वर जगद्गगुरु शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती महाराज ने इस कार्य के लिए संपूर्ण उत्तर प्रदेश का 1986-1989 में पदयात्रा की. लोगों का जागृत करने का प्रयास किया. आज यह कार्य मूर्त रूप ले रहा है. "कांची कामकोटी मठ" द्वारा अयोध्या के प्रमोद वन में साल 2008 में स्थान की प्राप्ति हुई थी. उस स्थान पर दक्षिण की शैली में भगवान श्रीराम के मंदिर का निर्माण किया गया.
अयोध्या में बनेगा सभागार और यज्ञ मंडप
वीएस सुब्रमण्यम ने बताया कि भगवान राम के मंदिर के निर्माण के साथ-साथ वहां सामाजिक और शैक्षणिक कार्यों का भी संचालन होता आ रहा है. अयोध्या में भगवान राम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनकी योजना है कि वहां एक बड़ा सभागार बने. जहां धार्मिक और शैक्षणिक कार्य आयोजित हों. वहां एक बड़ा यज्ञ मंडप भी बने, जिसमें जो उनकी परंपरागत अग्निहोत्र का कार्य है, वहां संपन्न हो सके. उसके साथ ही साथ उत्तर और दक्षिण से आने वाले जो उनके भक्त लोग हैं. वे लोग वहां प्रवास करके भगवान श्रीराम के दर्शन करेंगे. साथ ही सरयू में स्नान कर चौरासी कोसी परिक्रमा, पंचकोसी परिक्रमा अपने समार्थ्य के अनुसार कर सकेंगे. इसकी भी सुविधा वह देने जा रहे हैं.
काशी, कांची और अयोध्या सप्तपुरियों में शामिल
वीएस सुब्रमण्यम ने बताया कि उनके यहां सप्तमोक्ष पुरियों में अयोध्या, काशी और कांची का एक स्थान है. तीनों विद्या की नगरी हैं. यह पुण्य भूमि हैं. काशी में मां गगा हैं तो अयोध्या में सरयू हैं और कांची में पालार है. जिनको वह पयस्वनी कहते हैं, वे विद्यमान हैं. इसके साथ ही तीनों ही शक्तिपीठ हैं. इसलिए यहां आने वाला अपने ईष्टदेव का स्मरण कर, स्नान-दान कर जो भी कार्य करता है उससे वह अनन्य पुण्य को प्राप्त करता है. भगवत भक्ति के साथ-साथ भगवान के चरणों में सहजता से उनके आशीर्वाद-अनुग्रह को प्राप्त करता है. बता दें कि उत्तर प्रदेश में वाराणसी के बाद अब अयोध्या सनातन आस्था का बड़ा केंद्र बनने जा रहा है. जहां पूरे भारत से श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है.
भगवान राम ने की थी शिवलिंग की स्थापना
भगवान राम और भगवान शिव से जुड़ी पौराणिक कथाओं में इस बात का जिक्र है कि काशी से भगवान राम का जुड़ाव रहा है. यहां पर रामेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. रामेश्वर मंदिर काशी पंचक्रोशी के तीसरे पड़ाव स्थल पर बना हुआ है. यहां भगवान श्रीराम द्वारा पंचक्रोशी यात्रा में आने पर वरुणा नदी के एक मुठ्ठी रेत से शिवलिंग स्थापना की गई थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम ने कुम्भोदर ऋषि से रावण के वध से प्रायश्चित उपाय लिया था. उन्होंने चौरासी कोस की यात्रा कर क्षत्रिय वंश द्वारा ब्राह्मणों की मर्यादा को स्थापित रखने का उपाय बताया था.
रामेश्वरम न जा सकने वाले लोग आते हैं काशी
उन्होंने बताया कि भगवान राम ने चौरासी कोस की काशी यात्रा शुरू की थी. इस दौरान उन्होंने कर्दमेश्वर, भीमचण्डी के बाद काशी में वरुणा के कछार पर रात में विश्राम किया था. इस दौरान भगवान राम ने अपने हाथों में एक मुठ्ठी रेत से शिवलिंग की स्थापना कर तर्पण किया था. कथाओं के अनुसार इसे भगवान शिव और भगवान राम का मिलन कहा जाता है. इसके बाद उसे रामेश्वर महादेव ने नाम से जाना जाता है. यह रामेश्वर तीर्थ धाम के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि दक्षिण में रामेश्वरम न जा पाने वाले भक्त वाराणसी स्थित रामेश्वर आकर पुण्य प्राप्त करते हैं. इस तरह से दक्षिण, काशी और भगवान राम एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.
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