साओ पाउलो : अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड मानव उपभोग के लिए उपलब्ध पौधों की प्रजातियों की विविधता को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह फूड आम आदमी की सेहत को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. प्रोसेस्ड फूड ऐसा खाना होते हैं, जिन्हें प्रिजर्व करने के लिए मेकेनिकल और केमिकल प्रोसेसिंग की जाती है. प्रोसेस्ड फूड आमतौर पर बॉक्स या बैग (box or bag) में आते हैं. बीएमजे ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड यानी मीठे या नमकीन स्नैक्स, शीतल पेय, इंस्टेंट नूडल्स, मांस उत्पाद, पहले से तैयार पिज्जा और पास्ता, बिस्कुट और कन्फेक्शनरी में स्वाद और रंग के लिए 'कॉस्मेटिक' एडिटिव्स को मिलाए जाते हैं. इसे बनाने की प्रक्रिया में भूमि, पानी, ऊर्जा, जड़ी-बूटियों और फर्टिलाइजर का भी बेतहाशा उपयोग किया जा रहा है. इसका असर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर से जानवर, पौधे और सूक्ष्मजीवों पर पड़ रहा है. खासकर उन पौधों की जेनेटिकल डायवर्सिटी कम हो रही है, जिनका उपयोग आदमी खाने में करता है.
ब्राजील में साओ पाउलो विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के फर्नांडा हेलेना मैरोकोस लेइट ने कहा कि आम लोगों की लाइफ में जिस तरह प्रोसेस्ड फूड शामिल हो रहे हैं, उससे पौधों की प्रजातियों की विविधता पर दबाव पड़ता रहेगा. जैव विविधता सम्मेलनों और जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों में समय रहते अगर इस समस्या का समाधान नहीं ढूंढा गया तो ग्लोबल फूड सिस्टम पर प्रभाव पड़ना तय है.
यह रिपोर्ट ब्राजील, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के न्यूट्रिशन एक्सपर्ट की स्टडी के आधार पर तैयार की गई है. इसमें लोगों की फूड हैबिट को लेकर चेतावनी दी गई है. बताया गया है कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के उपयोग के कारण लोग सीमित अनाज को ज्यादा जोर दे रहे हैं. दुनिया के चार बिलियन लोग चावल, गेहूं और मक्का पर निर्भर हो गए हैं. दुनिया का 90 फीसद खाना 15 फसलों से आता है. प्रोसेस्ड फूड बनाने के दौरान कई ऐसे अनाज का उपयोग किया जा रहा है, जिसका उपयोग पहले ज्यादा जानवरों को खिलाने के लिए होता था. साथ ही मक्का, गेहूं, सोया और तिलहन फसलों से निकलने वाले अवयवों की खपत बढ़ गई है. प्रोसेस्ड फूड की पैकेजिंग भी पर्यावरण के नुकसान का कारण बन रही है.
मैरोकोस लेइट ने कहा कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के नाम पर अनाज के उपयोग के तौर-तरीकों को इसी तरह बदला जाता रहेगा, तो आने वाले समय में इन फसलों पर दबाव बढ़ेगा और इनकी जेनेटिकल डायवर्सिटी कम हो जाएगी.
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