शिमला : हिमाचल में भाजपा सरकार शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व का एक अंश गोसेवा में खर्च करती है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने शराब की बिक्री पर गोवंश सेस लगाया है. वर्ष 2018 के बजट में इसे लागू किया गया था.
मुख्यमंत्री के पहले बजट में ही कई घोषणाएं बेसहारा गोवंश के लिए थी. उस बजट में सरकार ने शराब की हर बोतल पर एक रुपये गोवंश सेस लगाया था. आंकड़ों के अनुसार हिमाचल में साल भर में नौ करोड़ शराब की बोतलें बिकती हैं. इस तरह से गोवंश सेस के जरिए सरकार कम से कम नौ करोड़ रुपए हर साल जुटाती है.
इसके अलावा मंदिरों के चढ़ावे से भी 15 फीसदी हिस्सा गोवंश के लिए तय किया गया है. यह रकम 17 करोड़ के करीब बनती है. इस रकम को हिमाचल सरकार सड़कों से बेसहारा गोवंश को आश्रय देने, घायल गोवंश का इलाज करने, उनके लिए एंबुलेंस खरीदने और चारे की व्यवस्था में लगाती है. बाद में पिछले साल गोवंश सेस को एक रुपए से बढ़ाकर डेढ रुपये प्रति बोतल किया गया है.
उल्लेखनीय है कि मार्च 2018 में बजट पेश करने के बाद जब गोवंश सैस लागू हुआ तो नवंबर महीने तक आबकारी व कराधान विभाग ने शराब की प्रति बोतल बिक्री से सेस के रूप में 3.55 करोड़ रुपए जुटाए थे. इसे बाद में संबंधित विभागों को दिया गया. इसके अलावा एंबुलेंस सेवाओं पर भी शराब की बिक्री से मिले पैसे को खर्च किया जाता है. अब हर साल गोवंश सेस व मंदिरों के चढ़ावे से राज्य सरकार को बेसहारा गोवंश की सेवा के लिए कम से कम 17 करोड़ रुपए सालाना मिलते हैं.
यही नहीं हिमाचल सरकार ने गोवंश के संरक्षण के लिए गोसेवा आयोग का भी गठन किया है. शराब की बिक्री से मिलने वाले सेस को आबकारी विभाग खजाने में जमा करता है. जहां से इस रकम को विभिन्न विभागों को ट्रांसफर किया जाता है. वैसे तो राज्य सरकारें नशे के खिलाफ अभियान चलाती हैं और हिमाचल में इस अभियान का एक नारा बहुत चर्चित है.
वो नारा है-पापा मत पियो शराब, ला दो मुझको एक किताब, लेकिन हिमाचल सरकार ने शराब की बिक्री को गोसेवा के पुण्य से जोड़ दिया है. हिमाचल ने गोसेवा के क्षेत्र में कई अहम काम किए हैं. जिसे राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है. हिमाचल ने गोवंश संरक्षण अधिनियम भी लागू किया है.
सेस का प्रयोग नई गोशालाओं के निर्माण में किया जा रहा है: पशुपालन मंत्री
इसी अधिनियम के तहत गोसेवा आयोग का गठन हुआ है. बड़ी बात यह है कि हिमाचल में देशी नस्ल की गाय का संरक्षण किया जा रहा है. इसमें जर्सी गाय शामिल नहीं है. पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर ने कहा कि शराब बिक्री से मिले सेस का प्रयोग नई गोशालाओं के निर्माण में किया जा रहा है.
इसके अलावा गोशालाओं में रखी बेसहारा करीब 14,500 गाय के चारे के लिए 500 रुपए प्रति गाय के हिसाब से हर महीने दिया जा रहा है. इसके अलावा प्रदेश में काउ सेंचुरी के निर्माण पर इसी कोष से राशि खर्च की जा रही है. पशुपालन मंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में सड़कों पर घूम रहे बेसहारा गोवंश को सहारा दिया जाएगा. तेजी के साथ यहां पर इस काम को अंजाम दिया जा रहा है, मगर अभी भी 20 हजार के करीब बेसहारा पशु सड़कों पर है, जिनको आश्रय दिया जाना है.
हिमाचल में गोहत्या पर प्रतिबंधहिमाचल देश का अग्रणीय राज्य है जहां गोहत्या पर प्रतिबंध है. हिमाचल हाईकोर्ट ने 2014 में विस्तृत आदेश जारी कर कहा था कि पशु चिकित्सक हर बीमार आवारा पशु का इलाज करेंगे, कोई चिकित्सक इलाज करने से इनकार नहीं कर सकेगा. इसके अलावा उन्होंने इलाज से संबंधित रजिस्टर रखने के आदेश भी जारी किए थे.
न्यायाधीश राजीव शर्मा व न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर की खंडपीठ ने यह आदेश जारी करते हुए समूचे प्रदेश में गोमांस की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगाया गया है. साथ ही यह भी आदेश दिए गए हैं कि कोई भी व्यक्ति किसी भी सूरत में गोमांस नहीं रखेगा. इसके अलावा खंडपीठ ने यह भी आदेश जारी किए हैं कि हिमाचल प्रदेश में कोई भी व्यक्ति गोमांस के व्यापार की मंशा से पशुओं को बाहर के राज्यों में नहीं ले जा सकेगा.
हाईकोर्ट ने पुलिस प्रशासन को आदेश दिया है कि यदि राज्य में कोई व्यक्ति पशुओं के साथ क्रूरता करता हुआ पाया जाता है तो उसके खिलाफ आईपीसी व पुलिस अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई करते हुए आपराधिक मामला दर्ज किया जाए.
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जो पशु मालिक अपने पशुओं को आवारा छोड़ देते हैं, उनके खिलाफ भी आपराधिक मामले दर्ज करने के निर्देश दिए गए हैं. कोर्ट ने राज्य सरकार के साथ-साथ सभी मार्गों के अधीक्षण अभियंताओं को निर्देश दिए हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में यह सुनिश्चित करें कि कोई भी व्यक्ति पशुओं को आवारा न छोड़े.