यहां प्रेतों और पिशाचों को मिलती है मुक्ति. वाराणसी: काशी मोक्ष की नगरी है. मोक्ष के शहर बनारस में महाश्मशान मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर अंतिम क्रिया के बाद श्राद्ध कर्म करने का विशेष विधान है. धर्म पुराणों में यह वर्णित है कि काशी में यदि किसी को मृत्यु मिलती है तो वह शिवलोक जाता है, लेकिन यदि मृत्यु के बाद किसी व्यक्ति का पिंडदान तर्पण और श्राद्ध कर्म काशी में पूर्ण हो जाए तो उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है, लेकिन इसके लिए काशी के गंगा घाटों के अलावा एक ऐसा स्थान है जहां इस कर्म को करने का विशेष विधान है. 29 और 30 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत मानी जा रही है. इसे लेकर काशी के पिशाच मोचन कुंड के माहात्म्य को बताने जा रहे हैं. यह वह स्थान है जहां प्रेत और पिशाच बांधे जाते हैं, तो आइए काशी के इस रहस्यमई कुंड और रहस्यमय स्थान के बारे में जानते हैं.
पितृ पक्ष में यहां बड़ी संख्या में आते हैं आस्थावान.
अकाल मृत्यु यानी किसी हादसे, दुर्घटना या फिर असमय अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लेना. इन चीजों के बाद सनातन धर्म में आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती ऐसी मान्यता मानी गई है और मृत्यु उपरांत आत्मा प्रेत योनि में पहुंच जाती है. प्रेत योनि में पहुंचने की वजह से जीवन में उन लोगों को काफी परेशानियां उठानी पड़ती हैं जो दुनिया छोड़कर असमय जाने वाले लोगों से जुड़े होते हैं. परिवार के सदस्यों के अलावा कई बार उक्त व्यक्ति के नजदीकी लोगों को भी परेशानियां होती हैं. जिसके लिए सही समय पर आत्मा को पिशाच योनि से मुक्ति दिलाने के लिए सही अनुष्ठान करना आवश्यक हो जाता है.
पितृपक्ष का यह पखवाड़ा 15 दिन का होता है. जिसकी शुरुआत इस वर्ष कहीं पर 29 और कहीं पर 30 सितंबर से मानी जा रही है. वाराणसी के पिशाच मोचन कुंड पर 15 दिन के इस पखवाड़े का विशेष महत्व है. इसकी बड़ी वजह यह है कि वाराणसी का पिशाच मोचन कुंड गरुड़ पुराण और शिव पुराण में वर्णित उसे कथा को बताता है जिसमें भगवान गणेश भी एक पिशाच से परेशान होकर काशी के इसी कुंड पर पहुंच कर उस पिशाच को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण करने का काम किए थे.
पिशाच मोचन में विधि विधान से होता है श्राद्ध कर्म. इस पिशाच मोचन कुंड के प्रधान पुरोहित प्रदीप कुमार पांडेय का कहना है कि श्राद्ध करने से व्यक्ति अपने पितरों को शांति और गति देने का काम करते हैं. उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति दिलाते हैं. धर्म ग्रंथो में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि पितृ दोष से मुक्ति चाहिए तो श्राद्ध कर्म और पिंडदान तर्पण अति आवश्यक है, नहीं तो पितृ दोष का कमिया जा पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है और ऐसे कष्ट होते हैं जो मृत्यु तुल्य माने जाते हैं पितृ पक्ष में शादी करने से जीव की मुक्ति तो होती है. साथ ही साथ परिवार में सुख शांति समृद्धि भी आती है. इसके लिए पितरों का आशीर्वाद पाना अनिवार्य है और काशी का यह स्थान इसी के लिए जाना जाता है. प्रदीप पांडेय का कहना है कि काशी के इस कुंड के बारे में गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण, शिव पुराण में कथाएं मिलती हैं. पिशाच मोचन धरती पर एकमात्र ऐसा स्थान है. जहां पर त्रिपिंडी श्राद्ध होता है त्रिपिंडी श्राद्ध व श्रद्धा माना गया है. जिसमें एक साथ 44 आत्माओं की मुक्ति होती है काशी के इस स्थान पर एक नहीं बल्कि कई तरह के श्राद्ध संपन्न होते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि यह कुंड धरती पर गंगा "के पहले से मौजूद है.प्रेत बाधा का यहां है निवारणप्रदीप पांडेय का कहना है कि 12 तरह के श्राद्ध होते हैं. इनमें नारायण बलि, तीर्थ श्रद्धा, त्रिपिंडी श्राद्ध व गया श्राद्ध प्रमुख रूप से माना गया है. नारायण बलि में एक आत्मा की मुक्ति होती है, जबकि त्रिपिंडी श्राद्ध में 44 आत्माओं को एक साथ मुक्ति मिलती है. पिशाच मोचन कुंड पर अकाल मृत्यु के बाद पिशाच योनि में भटक रही आत्माओं को मोक्ष देने का काम किया जाता है. पुराणों में वर्णित है प्रयाग मुंडे, काशी पिंडे और गया डंडेयानी तीर्थ के रूप में तीन स्थान हैं. जिनमें सबसे पहले प्रयाग फिर काशी में पिंड और गया में श्रद्धा करते हुए पितरों की आत्मा की शांति का कार्य किया जाता है.ये भी पढे़ंः वाराणसी में ग्लोबल मैरीटाइम इंडिया समिट 2023 आज, जल परिवहन पर होगा मंथन
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