कोलकाता : कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल ही में बड़ी बेंच को इस सवाल के साथ मामला भेजा कि क्या हिंदू विवाह के तहत आपसी सहमति से तलाक के बाद पत्नी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती है? मामला प्रसेनजीत मुखर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य का है. न्यायमूर्ति तीर्थंकर घोष ने इस मुद्दे पर उच्च न्यायालय के परस्पर विरोधी फैसलों का भी संदर्भ खोजा.
केस बैकग्राउंड
अदालत के समक्ष मामले में पति को पहले अलीपुर मजिस्ट्रेट कोर्ट ने अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 3000 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया था. जब उसकी पत्नी ने धारा 125 सीआरपीसी (पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के रख-रखाव के लिए आदेश) के तहत एक आवेदन किया था. इस आशय का एक आदेश 4 मई 2015 को या उसके आसपास पारित किया गया.
5 मई 2015 के आसपास पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी के तहत विवाह के विघटन के लिए एक आवेदन दायर किया गया. अदालत को बताया गया कि दोनों पक्षों ने मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है और यह सहमति हुई है कि पति अतीत, वर्तमान और भविष्य के भरण-पोषण के लिए पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में ₹ 2.5 लाख की राशि का भुगतान करेगा. इस भुगतान पर यह प्रस्तुत किया गया था कि पत्नी किसी भी अन्य दावों और मांगों को त्याग देगी.
नवंबर 2015 में अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, चंदनागोर ने आपसी सहमति पर तलाक का एक डिक्री पारित किया. जिरह में पत्नी ने न्यायाधीश को यह भी बताया कि उसे एकमुश्त रखरखाव के रूप में 2.5 लाख रुपये मिले थे. यह नवंबर 2015 के आदेश में दर्ज किया गया.
इसके बाद पति ने सीआरपीसी की धारा 127 (भत्ते में परिवर्तन) के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें अलीपुर कोर्ट में रखरखाव के लिए पहले की कार्यवाही को रद्द करने का आह्वान किया गया था क्योंकि उसने एकमुश्त रखरखाव के रूप में 2.5 लाख रुपये का भुगतान किया था.
अलीपुर मजिस्ट्रेट ने हालांकि याचिका को मानने से इनकार कर दिया. यह देखते हुए कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी के तहत किए गए आवेदन में धारा 125 सीआरपीसी की कार्यवाही का कोई जिक्र नहीं था. सीआरपीसी आवेदन को अलीपुर कोर्ट ने 2017 में खारिज कर दिया, जिससे पति को राहत के लिए उच्च न्यायालय का रुख करना पड़ा. बदले में उच्च न्यायालय को इस मुद्दे पर परस्पर विरोधी निर्णयों का सामना करना पड़ा.
पति ने जोर देकर कहा कि पत्नी को सीआरपीसी के अध्याय IX (पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण से संबंधित प्रावधानों से निपटने) के तहत कोई और भरण-पोषण का दावा करने से रोक दिया गया था. दूसरी ओर पत्नी ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत एकमुश्त राशि प्राप्त होने के बाद भी वह धारा 125 सीआरपीसी के तहत रखरखाव का दावा करने की हकदार होगी. दोनों पक्षों ने अपने-अपने रुख का पर विभिन्न केस कानूनों पर भरोसा किया.
यह देखते हुए कि इस विषय पर विरोधाभासी फैसले थे और सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को ध्यान में रखते हुए, जिसमें रखरखाव के मामलों में दिशानिर्देश निर्धारित किए गए थे. जिसमें ऐसे मामले भी शामिल हैं जहां अधिकार क्षेत्र ओवरलैप होता है. उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे को एक बड़ी बेंच द्वारा निर्णायक निर्धारण के लिए भेजा.
न्यायमूर्ति घोष ने कहा कि जैसा कि उपरोक्त प्रश्नों में गंभीर प्रभाव शामिल है, जहां तक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत कार्यवाही का संबंध है, मेरा विचार है कि इसे एक बड़ी बेंच द्वारा निपटाया जाना चाहिए क्योंकि इसमें परस्पर विरोधी निर्णय हैं.
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तदनुसार, मामले का रिकॉर्ड माननीय मुख्य न्यायाधीश (कार्यवाहक) कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष रखा जाए. पति (याचिकाकर्ता) की ओर से अधिवक्ता प्रतिम प्रिया दासगुप्ता पेश हुईं. वहीं प्रतिपक्षी (पत्नी) की ओर से अधिवक्ता अयान भट्टाचार्जी पेश हुए.