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पुण्यतिथि विशेष : डॉ. राही मासूम रजा जिन्होंने लिखे महाभारत के डायलॉग - rahi masoom raza

उर्दू के मशहूर शायर और कवि डॉ. राही मासूम रजा की आज पुण्यतिथि है. आज ही दिन 15 मार्च,1992 को उन्होंने आखिरी सांस ली थी. उन्होंने लगभग 300 फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी. हालांकि जब बीआर चोपड़ा ने उन्हें महाभारत के संवाद लिखने का प्रस्ताव दिया था, तो पहले उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया था. आइए जानते हैं उनसे जुड़ी खास बातें...

डॉ. राही मासूम रजा
डॉ. राही मासूम रजा
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Published : Mar 15, 2021, 9:35 PM IST

अलीगढ़ : टीवी सीरियल 'महाभारत' के संवाद लिखने वाले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के उर्दू विभाग में शिक्षक रहे डॉ राही मासूम रजा उर्दू के मशहूर शायर और कवि भी थे. आज ही के दिन 15 मार्च 1992 को डॉ रजा ने आखिरी सांस ली थी. अलीगढ़ में वह मकान आज भी मौजूद है, जहां बैठकर उन्होंने महाभारत के कई एपिसोड लिखे थे. वह 1960 में एएमयू के उर्दू विभाग में पढ़ाया करते थे. तब यहां उन्होंने लगभग 300 फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी. इसी बीच बीआर चोपड़ा अपने मेगा सीरियल 'महाभारत' का निर्माण कर रहे थे, तब उन्होंने संवाद लिखने का काम डॉ रजा को दिया. यह उनके जीवन का सर्वोच्च कार्य रहा. 'महाभारत' के साथ ही 'नीम का पेड़' और 'चंद्रकांता' जैसे धारावाहिकों के संवाद भी उन्होंने ही लिखे थे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

शिक्षक से बने लेखक
डॉ राही मासूम रजा का जन्म 1927 में गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था. उनके पिता एक वकील थे और चाचा कवि. महज 10 साल की उम्र में उन्हें टीबी हो गई थी. तब उन्होंने घर पर रखी सभी किताबों का अध्ययन किया. बेसिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह प्रयागराज (इलाहाबाद) चले गए. जहां उन्होंने प्रोग्रेसिव राइटर्स ग्रुप ज्वाइन किया. इसके बाद उन्होंने एएमयू से एमए और उर्दू साहित्य में पीएचडी की. यहीं रहकर उन्होंने आधा गांव, दिल एक सादा कागज, कतरा बी की आरजू, टोपी शुक्ला और नीम का पेड़ उपन्यास लिखा. 1965 में जब 'नई उमर की नई फसल' की शूटिंग अलीगढ़ में चल रही थी, तब उनकी मुलाकात एन चंद्रा से हुई. इसके बाद वह मुंबई चले गए.

बेस्ट डायलॉग राइटर का मिला था फिल्म फेयर अवॉर्ड
शुरुआती दौर में 'बिंदिया और बंदूक', 'पत्थर और पायल' फिल्म के डायलॉग लिखने से डॉ मासूम रजा को पहचान मिली. इसके बाद उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'मिली', 'जुर्माना' और 'गोलमाल' की भी स्क्रिप्ट लिखी. उन्होंने रास्ते का पत्थर, दूसरी सीता, बैराग, किसी से न कहना, मैं तुलसी तेरे आंगन की, कर्ज, जुदाई, एक बार कहो, हम पांच, रॉकी, डिस्को डांसर, कर्ज का रिश्ता, सनी, तवायफ, लम्हें, परंपरा, आईना फिल्म की पटकथा और संवाद लिखे. फिल्म अलाप के साथ ही, मैं तुलसी तेरे आंगन (1979), तवायफ (1986), लम्हें (1992) के लिए उन्हें फिल्म फेयर का बेस्ट डायलॉग राइटर का अवार्ड भी दिया गया था.

एक साथ कई स्क्रिप्ट पर करते थे काम
मासूम रजा की खासियत थी कि वह एक साथ कई स्क्रिप्ट पर काम करते थे. शुरुआत में उन्होंने नाम बदलकर उपन्यास भी लिखे. इसके अलावा उन्होंने साउथ की भी कई फिल्मों में पटकथा और संवाद लेखन किया. रजा की कैफी आजमी, साहिर लुधियानवी, मजाज लखनवी, अली सरदार जाफरी, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, डॉक्टर केपी सिंह जैसे लोगों से अच्छी दोस्ती थी.

शोर-शराबे में भी लिख लेते थे स्क्रिप्ट
आज के दौर में लोग फिल्मी लेखन के लिए सुकून ढूंढ़ते हैं. कहीं होटल का कमरा बुक करते हैं या फिर पहाड़ों की वादियों में जाकर एकांत में लेखन करते हैं, लेकिन रजा ने घर पर ही लोगों के शोर-शराबे की बीच रहकर लेखन का काम किया. वह तकिए पर लेटकर लिखते थे और एक साथ चार-पांच स्क्रिप्ट पर काम करते थे. लोग आते-जाते थे, बातचीत करते थे, इसी बीच वह पूरी स्क्रिप्ट लिख लेते थे. उनका ध्यान लेखन से कभी हटता ही नहीं था.

महाभारत की स्क्रिप्ट को चुनौती के रूप में लिखा
'महाभारत' की कहानी लोगों ने सुनी है, लेकिन उसे घर-घर पहुंचाने का काम मासूम रजा ने किया. शुरुआती दौर में जब बीआर चोपड़ा ने उन्हें महाभारत के संवाद लिखने का प्रस्ताव दिया था, तो उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया. जब यह बात लोगों को पता चली कि बीआर चोपड़ा एक मुसलमान से महाभारत के संवाद लिखवा रहे हैं, तो उनके पास बहुत से पत्र आने लगे. पत्रों में कुछ लोगों ने यह भी पूछा कि 'क्या सभी हिंदू मर गए हैं, जो एक मुसलमान से महाभारत लिखवा रहे हैं ?' ये पत्र बीआर चोपड़ा ने मासूम रजा के पास भेज दिए. इन पत्रों को मासूम रजा ने एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि 'महाभारत के संवाद मैं ही लिखूंगा, क्योंकि मैं गंगा का बेटा हूं. मुझसे ज्यादा हिंदुस्तान की संस्कृति और सभ्यता को कौन जानता है. महाभारत के संवाद लिखने के बाद उनके सितारे बुलंदियों पर पहुंच गए. महाभारत सीरियल के आरंभ में 'मैं समय हूं' कह कर कहानी को आगे बढ़ाने का तरीका राही मासूम रजा ने ही गढ़ा था. उन्होंने इसमें हिंदी और संस्कृत के साथ उर्दू के लफ्जों का मिश्रण भी बहुत खूबसूरती से किया था.

आज भी प्रासंगिक है राही का साहित्य
साहित्यकार नमिता सिंह ने बताया कि मासूम रजा का साहित्य आज भी प्रासंगिक है. उनके पति डॉ. कुंवर पाल सिंह के साथ डॉ. राही का बहुत दोस्ताना था. मासूम रजा ने अपना पहला उपन्यास 'आधा गांव' उर्दू में लिखा था, जिसका अनुवाद डॉ. कुंवर पाल सिंह ने किया था. इसके बाद मासूम रजा ने देवनागरी में ही उपन्यास लिखना शुरू किया. नमिता सिंह ने बताया कि राही मासूम रजा पूरी उम्र सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ते रहे. उनका एक दर्द था कि आज देश में हिंदुस्तानी सबसे छोटी अकलियत है. खुद को बंगाली, पंजाबी, मराठी, गुजराती कहने वाले लोग ज्यादा हैं. समाज कई हिस्सों में बंट गया है. उन्होंने बताया कि मासूम रजा भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं और उनका लेखन पूरे भारतीय समाज को लेकर है.

लेखनी में झलकती थी हिंदुस्तान की संस्कृति
एएमयू के प्रो. एफएस शिरानी ने बताया कि राही साहब की लेखनी में हिंदुस्तान की संस्कृति झलकती थी. ट्रेजेडी पर उनका खास फोकस था. बहुत खूबसूरती से उस पर लिखते थे, जिसे मैं तुलसी तेरे आंगन की, मिली, आधा गांव, नीम का पेड़, महाभारत, लम्हे में उनके लेखन में देखा जा सकता है. उन्होंने बताया कि महाभारत में कुछ उन्होंने ऐसे हिंदी के शब्द इस्तेमाल किए, जो काफी लोकप्रिय हुए. इसमें भ्राताश्री, मामाश्री, पिताश्री लोगों की जुबान पर चढ़ गए थे. उन्होंने बताया कि जो उर्दू की खूबसूरती है, उसे हिंदी में आसान भाषा में तर्जुमा कर दिया. आज के लेखकों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए.

अलीगढ़ : टीवी सीरियल 'महाभारत' के संवाद लिखने वाले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के उर्दू विभाग में शिक्षक रहे डॉ राही मासूम रजा उर्दू के मशहूर शायर और कवि भी थे. आज ही के दिन 15 मार्च 1992 को डॉ रजा ने आखिरी सांस ली थी. अलीगढ़ में वह मकान आज भी मौजूद है, जहां बैठकर उन्होंने महाभारत के कई एपिसोड लिखे थे. वह 1960 में एएमयू के उर्दू विभाग में पढ़ाया करते थे. तब यहां उन्होंने लगभग 300 फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी. इसी बीच बीआर चोपड़ा अपने मेगा सीरियल 'महाभारत' का निर्माण कर रहे थे, तब उन्होंने संवाद लिखने का काम डॉ रजा को दिया. यह उनके जीवन का सर्वोच्च कार्य रहा. 'महाभारत' के साथ ही 'नीम का पेड़' और 'चंद्रकांता' जैसे धारावाहिकों के संवाद भी उन्होंने ही लिखे थे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

शिक्षक से बने लेखक
डॉ राही मासूम रजा का जन्म 1927 में गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था. उनके पिता एक वकील थे और चाचा कवि. महज 10 साल की उम्र में उन्हें टीबी हो गई थी. तब उन्होंने घर पर रखी सभी किताबों का अध्ययन किया. बेसिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह प्रयागराज (इलाहाबाद) चले गए. जहां उन्होंने प्रोग्रेसिव राइटर्स ग्रुप ज्वाइन किया. इसके बाद उन्होंने एएमयू से एमए और उर्दू साहित्य में पीएचडी की. यहीं रहकर उन्होंने आधा गांव, दिल एक सादा कागज, कतरा बी की आरजू, टोपी शुक्ला और नीम का पेड़ उपन्यास लिखा. 1965 में जब 'नई उमर की नई फसल' की शूटिंग अलीगढ़ में चल रही थी, तब उनकी मुलाकात एन चंद्रा से हुई. इसके बाद वह मुंबई चले गए.

बेस्ट डायलॉग राइटर का मिला था फिल्म फेयर अवॉर्ड
शुरुआती दौर में 'बिंदिया और बंदूक', 'पत्थर और पायल' फिल्म के डायलॉग लिखने से डॉ मासूम रजा को पहचान मिली. इसके बाद उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'मिली', 'जुर्माना' और 'गोलमाल' की भी स्क्रिप्ट लिखी. उन्होंने रास्ते का पत्थर, दूसरी सीता, बैराग, किसी से न कहना, मैं तुलसी तेरे आंगन की, कर्ज, जुदाई, एक बार कहो, हम पांच, रॉकी, डिस्को डांसर, कर्ज का रिश्ता, सनी, तवायफ, लम्हें, परंपरा, आईना फिल्म की पटकथा और संवाद लिखे. फिल्म अलाप के साथ ही, मैं तुलसी तेरे आंगन (1979), तवायफ (1986), लम्हें (1992) के लिए उन्हें फिल्म फेयर का बेस्ट डायलॉग राइटर का अवार्ड भी दिया गया था.

एक साथ कई स्क्रिप्ट पर करते थे काम
मासूम रजा की खासियत थी कि वह एक साथ कई स्क्रिप्ट पर काम करते थे. शुरुआत में उन्होंने नाम बदलकर उपन्यास भी लिखे. इसके अलावा उन्होंने साउथ की भी कई फिल्मों में पटकथा और संवाद लेखन किया. रजा की कैफी आजमी, साहिर लुधियानवी, मजाज लखनवी, अली सरदार जाफरी, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, डॉक्टर केपी सिंह जैसे लोगों से अच्छी दोस्ती थी.

शोर-शराबे में भी लिख लेते थे स्क्रिप्ट
आज के दौर में लोग फिल्मी लेखन के लिए सुकून ढूंढ़ते हैं. कहीं होटल का कमरा बुक करते हैं या फिर पहाड़ों की वादियों में जाकर एकांत में लेखन करते हैं, लेकिन रजा ने घर पर ही लोगों के शोर-शराबे की बीच रहकर लेखन का काम किया. वह तकिए पर लेटकर लिखते थे और एक साथ चार-पांच स्क्रिप्ट पर काम करते थे. लोग आते-जाते थे, बातचीत करते थे, इसी बीच वह पूरी स्क्रिप्ट लिख लेते थे. उनका ध्यान लेखन से कभी हटता ही नहीं था.

महाभारत की स्क्रिप्ट को चुनौती के रूप में लिखा
'महाभारत' की कहानी लोगों ने सुनी है, लेकिन उसे घर-घर पहुंचाने का काम मासूम रजा ने किया. शुरुआती दौर में जब बीआर चोपड़ा ने उन्हें महाभारत के संवाद लिखने का प्रस्ताव दिया था, तो उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया. जब यह बात लोगों को पता चली कि बीआर चोपड़ा एक मुसलमान से महाभारत के संवाद लिखवा रहे हैं, तो उनके पास बहुत से पत्र आने लगे. पत्रों में कुछ लोगों ने यह भी पूछा कि 'क्या सभी हिंदू मर गए हैं, जो एक मुसलमान से महाभारत लिखवा रहे हैं ?' ये पत्र बीआर चोपड़ा ने मासूम रजा के पास भेज दिए. इन पत्रों को मासूम रजा ने एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि 'महाभारत के संवाद मैं ही लिखूंगा, क्योंकि मैं गंगा का बेटा हूं. मुझसे ज्यादा हिंदुस्तान की संस्कृति और सभ्यता को कौन जानता है. महाभारत के संवाद लिखने के बाद उनके सितारे बुलंदियों पर पहुंच गए. महाभारत सीरियल के आरंभ में 'मैं समय हूं' कह कर कहानी को आगे बढ़ाने का तरीका राही मासूम रजा ने ही गढ़ा था. उन्होंने इसमें हिंदी और संस्कृत के साथ उर्दू के लफ्जों का मिश्रण भी बहुत खूबसूरती से किया था.

आज भी प्रासंगिक है राही का साहित्य
साहित्यकार नमिता सिंह ने बताया कि मासूम रजा का साहित्य आज भी प्रासंगिक है. उनके पति डॉ. कुंवर पाल सिंह के साथ डॉ. राही का बहुत दोस्ताना था. मासूम रजा ने अपना पहला उपन्यास 'आधा गांव' उर्दू में लिखा था, जिसका अनुवाद डॉ. कुंवर पाल सिंह ने किया था. इसके बाद मासूम रजा ने देवनागरी में ही उपन्यास लिखना शुरू किया. नमिता सिंह ने बताया कि राही मासूम रजा पूरी उम्र सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ते रहे. उनका एक दर्द था कि आज देश में हिंदुस्तानी सबसे छोटी अकलियत है. खुद को बंगाली, पंजाबी, मराठी, गुजराती कहने वाले लोग ज्यादा हैं. समाज कई हिस्सों में बंट गया है. उन्होंने बताया कि मासूम रजा भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं और उनका लेखन पूरे भारतीय समाज को लेकर है.

लेखनी में झलकती थी हिंदुस्तान की संस्कृति
एएमयू के प्रो. एफएस शिरानी ने बताया कि राही साहब की लेखनी में हिंदुस्तान की संस्कृति झलकती थी. ट्रेजेडी पर उनका खास फोकस था. बहुत खूबसूरती से उस पर लिखते थे, जिसे मैं तुलसी तेरे आंगन की, मिली, आधा गांव, नीम का पेड़, महाभारत, लम्हे में उनके लेखन में देखा जा सकता है. उन्होंने बताया कि महाभारत में कुछ उन्होंने ऐसे हिंदी के शब्द इस्तेमाल किए, जो काफी लोकप्रिय हुए. इसमें भ्राताश्री, मामाश्री, पिताश्री लोगों की जुबान पर चढ़ गए थे. उन्होंने बताया कि जो उर्दू की खूबसूरती है, उसे हिंदी में आसान भाषा में तर्जुमा कर दिया. आज के लेखकों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए.

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