हैदराबाद : भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने शुक्रवार को बेदखली अभियान को रोक दिया लेकिन मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने स्पष्ट किया कि अवैध अतिक्रमण के खिलाफ बेदखली जारी रहेगी. हालांकि अभी तक इस बारे में कोई बात नहीं हुई है कि अवैध अतिक्रमणकारियों का पुनर्वास कहां किया जाएगा.
कई अवैध अतिक्रमणकर्ता जिन्हें ढालपुर और गोरुखुटी क्षेत्रों से गुरुवार को पुलिस प्रशासन द्वारा बलपूर्वक बेदखल किया गया था, वे कल तक उस स्थान को देखने के लिए लौट आए, जिसे वे घर कहते हैं. जिन अवैध अतिक्रमणकारियों ने पिछली रात खुले में बिताई, वे अपने भविष्य के बारे में सोचते हुए आशंकित दिखे.
गुरुवार को बेदखली अभियान के दौरान अपना घर खो चुके एक युवा लड़के ने कहा कि उन्होंने कल सब कुछ ध्वस्त कर दिया. हमारे घर, मस्जिद, सब कुछ. हमें बुधवार को ही बेदखली का नोटिस दिया गया था. गुरुवार को पुलिस और सुरक्षा बलों ने आकर हमें दो घंटे के भीतर क्षेत्र खाली करने के लिए कहा. हम दशकों से यहां रह रहे हैं. हम दो घंटे या 24 घंटे के भीतर जगह कैसे खाली कर सकते हैं? हमने उनसे केवल पहले हमें पुनर्वास करने के बाद बेदखली अभियान चलाने का अनुरोध किया.
सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं, जिनमें से दो की मौके पर ही मौत हो गई. आधिकारिक बयान के अनुसार घटना के दौरान करीब दस पुलिसकर्मी घायल हुए हैं. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा के नेतृत्व वाली सरकार ने तुरंत उन परिस्थितियों की न्यायिक जांच शुरू की, जिनके कारण फायरिंग हुई और बाद में दो नागरिकों की मौत हो गई.
हालांकि स्थानीय लोगों ने दावा किया कि वे पिछले कई दशकों से इस क्षेत्र में रह रहे हैं और यहां बसने वाले ज्यादातर लोग बाढ़ और कटाव प्रभावित हैं. जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में कटाव और बाढ़ के कारण अपनी जमीन और घर खो दिए थे.
राइट्स के निदेशक सुहास चकमा ने कहा कि बाढ़ राज्य का अभिन्न अंग होने और 1993 के बाद से सैकड़ों हजारों लोगों को विस्थापित करने वाले अधिकतम संघर्षों के बावजूद असम आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (आईडीपी) की स्थिति से निपटने में पूरी तरह विफल रहा है.
दूसरी ओर विपक्षी कांग्रेस ने प्रदर्शनकारियों पर पुलिस अत्याचार का आरोप लगाया और जांच की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए जिले के उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक के तत्काल स्थानांतरण की मांग की है.
कांग्रेस नेता देवव्रत सैकिया ने घटना को बेहद अमानवीय, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि अकेले प्रदर्शनकारी को वहां मौजूद 40 पुलिस कर्मियों द्वारा आसानी से काबू किया जा सकता था. एक अकेले प्रदर्शनकारी को गोली मारना, जिसने अपना घर खो दिया है, क्रूरता व अमानवीय है. पुलिस को उसे मारने के बजाय उसे शांत करने की कोशिश करनी चाहिए थी.
उन्होंने इस साल 10 मई को गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश का भी हवाला दिया और कहा कि COVID 19 के कारण मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की एक पूर्ण पीठ ने आदेश दिया था कि बेदखली या विध्वंस का कोई भी आदेश जारी नहीं होना चाहिए.
सैकिया ने कहा कि इसके बावजूद भाजपा सरकार बिना किसी पुनर्वास योजना के ढालपुर क्षेत्र के निवासियों को बेदखल करने के लिए निरंकुश तरीके से व्यवहार कर रही है. चकमा ने कहा कि बेदखली अभियान अराजकता का एक उत्कृष्ट मामला है क्योंकि बेदखली के नोटिस गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं.
सर्वोच्च न्यायालय ने 2020 में अपने फैसले में कहा कि जब कोई मामला उच्च न्यायालय की तरह संवैधानिक अदालत के समक्ष लंबित है, तो न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना तथ्य परिवर्तन नहीं किया जा सकता है.
इसके अलावा इस्तेमाल किया गया बल आपराधिक प्रक्रिया संहिता और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करता है. एक दर्जन से अधिक सशस्त्र पुलिसकर्मियों द्वारा एक अकेले व्यक्ति पर इस तरह के बर्बर तरीके से हमला करने की आवश्यकता नहीं थी.
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चकमा ने कहा कि न्यायिक जांच का स्वागत है लेकिन असम सरकार को यह बताने की जरूरत है कि उच्च न्यायालय के फैसले से पहले बेदखली का आदेश किसने दिया.