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देश में पहली बार वर्चुअल पोस्टमार्टम, राजू श्रीवास्तव के शव का नहीं हुआ चीर फाड़

कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव (Comedian Raju Srivastava) गुरुवार को पंचतत्व में विलीन हो गए. इससे पहले उनका एम्स में पोस्टमार्टम किया गया. वे यहां पिछले 42 दिनों से भर्ती थे. उनका पोस्टमार्टम बिना चीर-फाड़ के किया गया. बताया जा रहा है कि यह पहला वर्चुअल पोस्टमार्टम है.

एम्स में फॉरेंसिक विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुधीर गुप्ता
एम्स में फॉरेंसिक विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुधीर गुप्ता
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Published : Sep 22, 2022, 8:07 PM IST

नई दिल्लीः कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव (Comedian Raju Srivastava) का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 42 दिनों के इलाज के बाद निधन हो गया. मौत के बाद उनका पोस्टमार्टम किया गया. एम्स में उनका पोस्टमार्टम मॉर्डन तकनीक से किया गया, जिसमें किसी भी तरह का चीर-फाड़ नहीं किया गया. यह देश का पहला मार्डन तकनीक से होने वाला पोस्टमार्टम है.

एम्स के फॉरेंसिक साइंस डिपार्टमेंट के अध्यक्ष डॉक्टर सुधीर गुप्ता ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि राजू श्रीवास्तव के शरीर पर किसी भी तरह के चोट के निशान नहीं हैं. उनके हाथों पर केवल इंजेक्शन के निशान हैं, वह भी इसलिए क्योंकि पिछले 42 दिनों से वह एम्स में एडमिट थे, जहां उनका इलाज चल रहा था.

एम्स में फॉरेंसिक विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुधीर गुप्ता.

आम तौर पर मौत के बाद मृतक का पोस्टमार्टम सगे-संबंधी नहीं करवाना चाहते हैं. उसकी वजह यह है कि पोस्टमार्टम के तौर तरीके से लोगों को काफी परेशानी होती है. एम्स नई दिल्ली में दक्षिण एशिया का पहला वर्चुअल फॉरेंसिक लैब खुला है. डॉ. सुधीर गुप्ता ने बताया कि इसमें किसी भी तरह के चीर-फाड़ की जरुरत नहीं होती है. कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का पोस्टमार्टम इसी तकनीक से किया गया.

उन्होंने बताया कि मृतक के शरीर को सबसे पहले एक रैम्प पर लिटाया जाता है. उसके बाद उसके पूरे शरीर का सिटी स्कैन किया जाता है. इस स्कैन में शरीर का वह हिस्सा भी दिख जाता है, जो पुराने पोस्टमार्टम के तकनीक में नहीं दिख पाता है. इस पूरे प्रोसेस को लाइव देखा जा सकता है और जितनी बार चाहे पोस्टमार्टम का अध्ययन किया जा सकता है.

डॉ. सुधीर गुप्ता ने बताया कि इस तकनीक को लाया जाना चाहिए अथवा नहीं, इसके लिए एम्स की ओर से एक सर्वे कराया गया था. इसमें 99 फीसदी लोगों ने कहा कि वह नहीं चाहते कि मौत के बाद उनके परिजन का पोस्टमार्टम हो. उन्होंने बताया कि इस मॉडर्न मोर्चरी की स्टडी के लिए एम्स से डॉक्टरों की टीम अमेरिका और यूरोप का दौरा किया. वहां से स्टडी के बाद जर्मनी और दूसरे देशों की तकनीक का सहारा लिया गया. पूरे वर्चुअल मोर्चरी को बनाने में लगभग 10 करोड़ का खर्च हुआ है.

ये भी पढ़ेंः पंचतत्व में विलीन हुए राजू श्रीवास्तव, अब नहीं सुनाई देगी गजोधर भैया की आवाज

पुरानी तकनीक में सिर से लेकर नीचे तक शरीर को चीरा जाता था. उसके बाद अध्ययन करके फिर उसे अच्छे तरीके से सिला जाता था, जिससे किसी भी तरह का फ्लूइड शरीर से न निकले. इस पूरी प्रक्रिया में काफी वक्त लग जाता था. इस प्रक्रिया में कभी-कभी तो घंटों लग जाते थे. उन्होंने बताया कि एम्स में 24 घंटे मोर्चरी में पोस्टमार्टम किए जा रहे हैं.

नई दिल्लीः कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव (Comedian Raju Srivastava) का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 42 दिनों के इलाज के बाद निधन हो गया. मौत के बाद उनका पोस्टमार्टम किया गया. एम्स में उनका पोस्टमार्टम मॉर्डन तकनीक से किया गया, जिसमें किसी भी तरह का चीर-फाड़ नहीं किया गया. यह देश का पहला मार्डन तकनीक से होने वाला पोस्टमार्टम है.

एम्स के फॉरेंसिक साइंस डिपार्टमेंट के अध्यक्ष डॉक्टर सुधीर गुप्ता ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि राजू श्रीवास्तव के शरीर पर किसी भी तरह के चोट के निशान नहीं हैं. उनके हाथों पर केवल इंजेक्शन के निशान हैं, वह भी इसलिए क्योंकि पिछले 42 दिनों से वह एम्स में एडमिट थे, जहां उनका इलाज चल रहा था.

एम्स में फॉरेंसिक विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुधीर गुप्ता.

आम तौर पर मौत के बाद मृतक का पोस्टमार्टम सगे-संबंधी नहीं करवाना चाहते हैं. उसकी वजह यह है कि पोस्टमार्टम के तौर तरीके से लोगों को काफी परेशानी होती है. एम्स नई दिल्ली में दक्षिण एशिया का पहला वर्चुअल फॉरेंसिक लैब खुला है. डॉ. सुधीर गुप्ता ने बताया कि इसमें किसी भी तरह के चीर-फाड़ की जरुरत नहीं होती है. कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का पोस्टमार्टम इसी तकनीक से किया गया.

उन्होंने बताया कि मृतक के शरीर को सबसे पहले एक रैम्प पर लिटाया जाता है. उसके बाद उसके पूरे शरीर का सिटी स्कैन किया जाता है. इस स्कैन में शरीर का वह हिस्सा भी दिख जाता है, जो पुराने पोस्टमार्टम के तकनीक में नहीं दिख पाता है. इस पूरे प्रोसेस को लाइव देखा जा सकता है और जितनी बार चाहे पोस्टमार्टम का अध्ययन किया जा सकता है.

डॉ. सुधीर गुप्ता ने बताया कि इस तकनीक को लाया जाना चाहिए अथवा नहीं, इसके लिए एम्स की ओर से एक सर्वे कराया गया था. इसमें 99 फीसदी लोगों ने कहा कि वह नहीं चाहते कि मौत के बाद उनके परिजन का पोस्टमार्टम हो. उन्होंने बताया कि इस मॉडर्न मोर्चरी की स्टडी के लिए एम्स से डॉक्टरों की टीम अमेरिका और यूरोप का दौरा किया. वहां से स्टडी के बाद जर्मनी और दूसरे देशों की तकनीक का सहारा लिया गया. पूरे वर्चुअल मोर्चरी को बनाने में लगभग 10 करोड़ का खर्च हुआ है.

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पुरानी तकनीक में सिर से लेकर नीचे तक शरीर को चीरा जाता था. उसके बाद अध्ययन करके फिर उसे अच्छे तरीके से सिला जाता था, जिससे किसी भी तरह का फ्लूइड शरीर से न निकले. इस पूरी प्रक्रिया में काफी वक्त लग जाता था. इस प्रक्रिया में कभी-कभी तो घंटों लग जाते थे. उन्होंने बताया कि एम्स में 24 घंटे मोर्चरी में पोस्टमार्टम किए जा रहे हैं.

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