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कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित

मनोरोग चिकित्सकों के अनुसार कोरोना संक्रमण काल के दौरान सबसे ज्यादा बच्चे डिप्रेशन का शिकार हुए. यह डिप्रेशन अमूमन दो कारणों से हुआ. पहला अकेलापन और दूसरा अभिभावकों की अनदेखी. अवसाद से पीड़ित बच्चों में गुस्सा और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है.

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Published : Mar 25, 2023, 6:40 PM IST

कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित.

लखनऊ : कोविड संक्रमण काल के दो साल बाद भी लोगों के जह़न से कोरोना दौर की यादें नहीं मिटी हैं. कोरोना महामारी लोगों को शारीरिक और मानिसक दोनों रूपों से प्रभावित कर रही है. कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से पीड़ित हो रहे हैं. सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. दीप्ती सिंह ने बताया कि अवसाद से पीड़ित बच्चों में गुस्सा और चिड़चिड़ापन भी काफी अधिक है. मौजूदा समय रोज अस्पताल की ओपीडी में पांच से छह केस ऐसे आते हैं.

बलरामपुर अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरव ने बताया कि कोरोना काल में बहुत से बच्चे अवसाद से ग्रसित हुए. कह सकते हैं कि प्रदेश में 25 से 30 फ़ीसदी मरीज जो कि बालिग नहीं हैं, वे डिप्रेशन के शिकार हुए. इनमें ज्यादातर बच्चे ऐसे हैं जिनके माता-पिता दोनों वर्किंग हैं. दरअसल इस दौरान बच्चा खुद को अकेला फील करता है और खुद को आइसोलेट कर लेता है. न किसी से वह अपनी बातें साझा करता है, न किसी के साथ हंसता खेलता है. इस स्थिति में बच्चे धीरे-धीरे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. एक स्तर ऐसा आता है कि बच्चे को यह लगता है कि उसे कोई प्यार नहीं करता है. उसकी फिक्र किसी को नहीं है और सुसाइड तक का आत्मघाती कदम उठा लेता है. रोजाना अस्पताल की ओपीडी में इस तरह के पांच से छह केस आते हैं.

कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित.
कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित.
डॉ. सौरव के अनुसार ज्यादातर बच्चे अकेलेपन के शिकार होकर डिप्रेशन के शिकार होते हैं. इस स्थिति में वह किसी से अपनी बातें साझा नहीं करते हैं. माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों के साथ समय बिताएं. बच्चों के साथ घर पर खेलें, बच्चे आपका अटेंशन चाहते हैं, आपका प्यार चाहते हैं, आपका साथ चाहते हैं. अगर आप वर्किंग भी हैं तो अपना काम पूरा होने के बाद बाकी का समय अपने बच्चे के साथ खुशी-खुशी बिताएं. मोबाइल से बच्चे का ध्यान हटाएं और खुद भी कम से कम मोबाइल चलाएं तब आपस में आपकी कम्युनिकेशन हो पाएगी.
कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित.
कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित.


केस-एक
डॉ. सौरव ने बताया कि एक 17 साल का लड़का है. लड़के के माता-पिता दोनों ही एक कान्वेंट स्कूल में टीचर हैं. यह केस लखनऊ का ही है. माता-पिता के स्कूल जाने के बाद बच्चा घर में अकेला हो जाता था. धीरे-धीरे करके बच्चे ने खुद को आइसोलेट कर लिया और अकेलेपन की वजह से वह डिप्रेशन का शिकार हो गया. स्कूल में भी उसका पढ़ने में मन नहीं लगता था और घर पर भी किसी से बात नहीं करता था. एक समय आया कि उसने दो बार सुसाइड करने की कोशिश की. अपने हाथ की नसें काट लीं. बेटे के खोने के डर से माता-पिता ने बच्चे को समझाया. उसे लेकर अस्पताल आए और यहां पर जब डॉक्टरों की टीम ने उसकी काउंसिलिंग की तो बेटे ने अपनी पूरी आपबीती बताई. बच्चे ने बताया कि किस तरह से वह अकेलेपन का शिकार हो गया था. फिर उसके बाद माता-पिता को समझाया कि वह अपने बच्चे को अकेला न छोड़े और बच्चे को भी समय दे. इस वक्त बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ और डिप्रेशन से बाहर आ चुका है. हाल ही में लड़के का रिजल्ट आया है उसने अच्छे मार्क्स से परीक्षा पास की.


केस-दो
डॉ. सौरभ के मुताबिक एक और केस अस्पताल में आया था. जिसमें बच्चे की काउंसिलिंग के दौरान उसकी आपबीती सुनकर हम खुद भावुक हो गए. दरअसल बच्चे के माता-पिता बच्चे के साथ बहुत भेदभाव करते थे. दरअसल वह दो भाई थे. उसका भाई गोरा था और वह काला था. काला होने की वजह से माता-पिता की बहुत खरी-खोटी सुननी पड़ती थी और काले रंग की वजह से उसके माता-पिता उसे बहुत पीटते थे. मारपीट और इतना खरी-खोटी सुनने के बाद बच्चा डिप्रेशन में चला गया और इस स्थिति में आया कि वह सुसाइड तक के बारे में सोचने लगा. अस्पताल आकर बच्चे ने काउंसिलिंग के दौरान कहा कि 'मैं मर क्यों नहीं जाता हूं' फिर इसके बाद बच्चे ने अपनी पूरी कहानी बताई. बच्चे की काउंसिलिंग की गई. इस समय वह बच्चा ठीक है. फिलहाल अब भी बच्चे का इलाज यहां से चल रहा है.

यह भी पढ़ें : Lucknow Medical News : मौसम में परिवर्तन से अस्पतालों में बढ़ रहे मरीज, जानिए विशेषज्ञों की राय

कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित.

लखनऊ : कोविड संक्रमण काल के दो साल बाद भी लोगों के जह़न से कोरोना दौर की यादें नहीं मिटी हैं. कोरोना महामारी लोगों को शारीरिक और मानिसक दोनों रूपों से प्रभावित कर रही है. कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से पीड़ित हो रहे हैं. सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. दीप्ती सिंह ने बताया कि अवसाद से पीड़ित बच्चों में गुस्सा और चिड़चिड़ापन भी काफी अधिक है. मौजूदा समय रोज अस्पताल की ओपीडी में पांच से छह केस ऐसे आते हैं.

बलरामपुर अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरव ने बताया कि कोरोना काल में बहुत से बच्चे अवसाद से ग्रसित हुए. कह सकते हैं कि प्रदेश में 25 से 30 फ़ीसदी मरीज जो कि बालिग नहीं हैं, वे डिप्रेशन के शिकार हुए. इनमें ज्यादातर बच्चे ऐसे हैं जिनके माता-पिता दोनों वर्किंग हैं. दरअसल इस दौरान बच्चा खुद को अकेला फील करता है और खुद को आइसोलेट कर लेता है. न किसी से वह अपनी बातें साझा करता है, न किसी के साथ हंसता खेलता है. इस स्थिति में बच्चे धीरे-धीरे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. एक स्तर ऐसा आता है कि बच्चे को यह लगता है कि उसे कोई प्यार नहीं करता है. उसकी फिक्र किसी को नहीं है और सुसाइड तक का आत्मघाती कदम उठा लेता है. रोजाना अस्पताल की ओपीडी में इस तरह के पांच से छह केस आते हैं.

कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित.
कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित.
डॉ. सौरव के अनुसार ज्यादातर बच्चे अकेलेपन के शिकार होकर डिप्रेशन के शिकार होते हैं. इस स्थिति में वह किसी से अपनी बातें साझा नहीं करते हैं. माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों के साथ समय बिताएं. बच्चों के साथ घर पर खेलें, बच्चे आपका अटेंशन चाहते हैं, आपका प्यार चाहते हैं, आपका साथ चाहते हैं. अगर आप वर्किंग भी हैं तो अपना काम पूरा होने के बाद बाकी का समय अपने बच्चे के साथ खुशी-खुशी बिताएं. मोबाइल से बच्चे का ध्यान हटाएं और खुद भी कम से कम मोबाइल चलाएं तब आपस में आपकी कम्युनिकेशन हो पाएगी.
कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित.
कोरोना के बाद से 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अवसाद से हो रहे पीड़ित.


केस-एक
डॉ. सौरव ने बताया कि एक 17 साल का लड़का है. लड़के के माता-पिता दोनों ही एक कान्वेंट स्कूल में टीचर हैं. यह केस लखनऊ का ही है. माता-पिता के स्कूल जाने के बाद बच्चा घर में अकेला हो जाता था. धीरे-धीरे करके बच्चे ने खुद को आइसोलेट कर लिया और अकेलेपन की वजह से वह डिप्रेशन का शिकार हो गया. स्कूल में भी उसका पढ़ने में मन नहीं लगता था और घर पर भी किसी से बात नहीं करता था. एक समय आया कि उसने दो बार सुसाइड करने की कोशिश की. अपने हाथ की नसें काट लीं. बेटे के खोने के डर से माता-पिता ने बच्चे को समझाया. उसे लेकर अस्पताल आए और यहां पर जब डॉक्टरों की टीम ने उसकी काउंसिलिंग की तो बेटे ने अपनी पूरी आपबीती बताई. बच्चे ने बताया कि किस तरह से वह अकेलेपन का शिकार हो गया था. फिर उसके बाद माता-पिता को समझाया कि वह अपने बच्चे को अकेला न छोड़े और बच्चे को भी समय दे. इस वक्त बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ और डिप्रेशन से बाहर आ चुका है. हाल ही में लड़के का रिजल्ट आया है उसने अच्छे मार्क्स से परीक्षा पास की.


केस-दो
डॉ. सौरभ के मुताबिक एक और केस अस्पताल में आया था. जिसमें बच्चे की काउंसिलिंग के दौरान उसकी आपबीती सुनकर हम खुद भावुक हो गए. दरअसल बच्चे के माता-पिता बच्चे के साथ बहुत भेदभाव करते थे. दरअसल वह दो भाई थे. उसका भाई गोरा था और वह काला था. काला होने की वजह से माता-पिता की बहुत खरी-खोटी सुननी पड़ती थी और काले रंग की वजह से उसके माता-पिता उसे बहुत पीटते थे. मारपीट और इतना खरी-खोटी सुनने के बाद बच्चा डिप्रेशन में चला गया और इस स्थिति में आया कि वह सुसाइड तक के बारे में सोचने लगा. अस्पताल आकर बच्चे ने काउंसिलिंग के दौरान कहा कि 'मैं मर क्यों नहीं जाता हूं' फिर इसके बाद बच्चे ने अपनी पूरी कहानी बताई. बच्चे की काउंसिलिंग की गई. इस समय वह बच्चा ठीक है. फिलहाल अब भी बच्चे का इलाज यहां से चल रहा है.

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