कोझिकोड: केरल में 2018 में भयंकर बाढ़ आई थी. इस बाढ़ में कई लोगों के घर बर्बाद हो गए थे. सभी लोग मुसीबतों का सामना कर रहे थे. इस बाढ़ में मलप्पुरम के चेरुवदिकादावु की रहने वाली सुहराभि के घर को भी काफी नुकसान पहुंचा था. उसका घर चारों तरफ से पानी से घिर गया. उसके पास वहां से निकलने का कोई विकल्प नहीं था. सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि उसे नाव चलानी नहीं आती थी, लेकिन कहते हैं कि मुसीबत सब कुछ सीखा देती है. ऐसा ही सुहराभि के साथ भी हुआ. उसने हिम्मत नहीं हारी और मुसीबत का सामना किया.
बता दें, केरल में 2018 की बाढ़ ने विकराल रूप ले लिया था. हर कोई अपनी जान बचाने को जूझ रहा था. ऐसे में सुहराभि ने अपनी और अपने आस-पास के लोगों की जान बचाने का बीड़ा उठाया. उसने हिम्मत दिखाते हुए नाव चलानी सीखी. उसने किसी से नाव ली और अभ्यास करने लगी. बता दें, नाव चलाने में उसकी मदद को कोई तैयार नहीं हुआ. उसका जीवन बहुत कष्टप्रद हो गया था. किसी तरह उसका जीवन पटरी पर लौट रहा था कि कोरोना से उसका सामना हुआ. कोरोना के चलते उसका जीवन एकदम ठप्प हो गया, लेकिन उसने मुसीबत में भी नाव चलाना सीखना जारी रखा.
जानकारी के मुताबिक वह चलियार नदी में नाव चलाती रही. वह धीरे-धीरे नाव चलाने में परिपक्व होती जा रही थी. इसी बीच उसका एक दोस्त भी आ गया, जो उसकी मदद करने लगा. वह अब एक किनारे से दूसरे किनारे तक लोगों को ले जाती है. सुहराभि ने किसी तरह पैसे जोड़कर एक फाइबर की नाव खरीदी और अब छात्रों समेत स्थानीय लोगों की मदद करने लगी. वह सुबह से लेकर शाम तक नाव से लोगों की मदद कर रही है और अपनी गृहस्थी भी चला रही है. बता दें, उसका पति अब्दुल सलाम, एक दिहाड़ी मजदूर हैं. वह भी कभी-कभी सुहराभि को सहयोग करता है.
सुहराभि उन लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है जो वजक्कड़ क्षेत्र से चेरुवाड़ी पहुंचना चाहते हैं. क्योंकि वहां जाने का कोई अन्य साधन नहीं है. सुहराभि की नाव अभी भी स्कूली बच्चों समेत कई लोगों को एक किनारे से दूसरे किनारे तक छोड़ती है.
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सुहराभि कहती है कि मैंने बाढ़ के दौरान नाव चलाना सीखना शुरू किया. उसने कहा मेरे घर सहित हमारा पूरा इलाका बाढ़ में डूब गया था. मैंने नावों चलाना जारी रखा क्योंकि मुझे एडवन्नापारा जैसे क्षेत्रों तक पहुंचने में यह सबसे आसान लगा क्योंकि मेरे कई रिश्तेदार वहां रहते हैं. उसने बताया कि वहीं, मुक्कम से कई श्रमिक आते हैं. जब वे यहां सुबह करीब साढ़े सात बजे पहुंचते हैं तो मुझे नदी के दूसरी तरफ से बुलाते हैं. मुझे उनकी मदद करने पर खुशी मिलती है. इस तरह मैं अपनी गृहस्थी भी अच्छी तरह से चला रही हूं.