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BHU के वैज्ञानिक की ब्रिटेन से मांग, बताएं 1857 क्रांति के 282 अज्ञात शहीदों के नाम व गांव, PM MODI को भी लिखा पत्र - 282 अज्ञात शहीदों

अजनाला हत्याकांड को दुनिया के सामने लाने वाली रिसर्च टीम में से एक काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश एंबेसी को एक पत्र लिखा है.

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Published : Aug 4, 2023, 12:12 PM IST

वाराणसी : 1857 की क्रांति के दौरान पंजाब के अमृतसर स्थित अजनाला में एक वीभत्स हत्याकांड हुआ था. ब्रिटिश इंडिया की 26वीं बंगाल इंफैट्री के इंडियन जवानों ने भी विद्रोह कर दिया था, जिन्हें घेरकर पत्थरों और गोलियों से मार दिया गया था. इस हत्याकांड में 282 जवान शहीद हुए थे. तब से इनका अंतिम संस्कार नहीं हो सका है. अब एक बार यह उम्मीद जगी है कि उन सभी शहीदों के नाम व गांव भारत को पता चलेंगे और उनका ससम्मान अंतिम संस्कार किया जा सकेगा. BHU के जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने एक पत्र लिखकर यह उम्मीद जगाई है.

साल 1857 की बगावत की कहानी में एक नाम आता है हवलदार आलम बेग का. उन्होंने बगावत में हिस्सा लिया था, जिसकी सजा ये मिली कि उन्हें तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया गया था. त्रिम्मु घाट की लड़ाई में हिस्सा लेने वालों में आलम बेग भी एक थे. आलम बेग की खोपड़ी कैप्टन AR कॉस्टेलो ने अपने पास रख ली और ब्रिटेन ले गया. वहां से होते हुए खोपड़ी लंदन के एक पब में गई उसके बाद पब मालिक ने एक इतिहासकार को सौंप दी. फिर खोपड़ी इतिहासकार वैग्नर के पास पहुंची.

BHU के वैज्ञानिक की ब्रिटेन से मांग
BHU के वैज्ञानिक की ब्रिटेन से मांग

282 जवानों का किया गया था नरसंहार : प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि 'इंग्लैंड में भारतीय मूल के ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन 282 जवानों को न्याय मिलने की आशा है. 166 साल पहले ये जवान शहीद हुए थे. उन्होंने बताया कि 1857 की क्रांति के दौरान पंजाब के अमृतसर स्थित अजनाला में यह हत्याकांड हुआ था. यहां तैनात ब्रिटिश इंडिया की 26वीं बंगाल इंफैट्री के इंडियन जवानों ने विद्रोह कर दिया था. इन जवानों को पत्थर और गोलियों से मार दिया गया. फिर एक कुएं में फेंककर ढक दिया गया था. इसका जिक्र हत्याकांड को अंजाम देने वाले ब्रिटिश कमिश्नर फेडरिक हेनरी कूपर ने अपनी किताब 'द क्राइसिस ऑफ पंजाब' में किया था.'

BHU के वैज्ञानिक की ब्रिटेन से मांग
BHU के वैज्ञानिक की ब्रिटेन से मांग



साल 2014 में जांच में जुड़े BHU के वैज्ञानिक : प्रो. चौबे ने बताया कि 'साल 2014 में उस कुएं को खोला गया. यहां पर मिले 282 लोगों के नर कंकालों का DNA टेस्ट किया गया, जिसके बाद ये पता चला कि ये सभी जवान गंगा घाटी के रहने वाले थे. पंजाब के इतिहासकार सुरेंदर कोचर ने 2003 में इसकी छानबीन शुरू कराई. कंकाल मिलने पर पंजाब के प्रो. सेहरावत ने CCMB हैदराबाद से DNA टेस्ट कराया. फिर 2014 में BHU समेत कई विश्वविद्यालयों के जीन वैज्ञानिक जुड़े. वैज्ञानिकों का दल इन सैनिकों का अंतिम संस्कार कराना चाहता था, लेकिन उनके नाम व गांव का पता नहीं था.'

यह भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद समिति ने ASI सर्वेक्षण के HC के आदेश का विरोध किया

'द क्राइसिस ऑफ पंजाब' में इस घटना का जिक्र : 'द क्राइसिस ऑफ पंजाब' किताब के लेखक ब्रिटिश कमिश्नर फेडरिक हेनरी कूपर ने उस हत्याकांड के बारे में लिखा है. उसी ने अजनाला में ब्रिटिश रेजीमेंट को लीड किया था, जिसमें इन भारतीय सैनिकों को मार दिया गया था. इस किताब में इसे कलियांवाला नरसंहार भी लिखा गया है. किताब में यह भी लिखा गया है कि यह यूपी के बनारस और कानपुर में अंग्रेजों के खिलाफ भड़के गुस्से का बदला था. यदि ये घटनाएं न होतीं तो कलियांवाला नरसंहार भी नहीं होता. इस हत्याकांड के तमाम साक्ष्य भी मिलते चले गए, जिसके बाद इन शहीदों के अंतिम संस्कार की बात की जा रही है.'

यह भी पढ़ें : Gyanvapi ASI Survey: ज्ञानवापी में एएसआई का सर्वे जारी, मुस्लिम पक्ष नहीं हुआ शामिल

वाराणसी : 1857 की क्रांति के दौरान पंजाब के अमृतसर स्थित अजनाला में एक वीभत्स हत्याकांड हुआ था. ब्रिटिश इंडिया की 26वीं बंगाल इंफैट्री के इंडियन जवानों ने भी विद्रोह कर दिया था, जिन्हें घेरकर पत्थरों और गोलियों से मार दिया गया था. इस हत्याकांड में 282 जवान शहीद हुए थे. तब से इनका अंतिम संस्कार नहीं हो सका है. अब एक बार यह उम्मीद जगी है कि उन सभी शहीदों के नाम व गांव भारत को पता चलेंगे और उनका ससम्मान अंतिम संस्कार किया जा सकेगा. BHU के जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने एक पत्र लिखकर यह उम्मीद जगाई है.

साल 1857 की बगावत की कहानी में एक नाम आता है हवलदार आलम बेग का. उन्होंने बगावत में हिस्सा लिया था, जिसकी सजा ये मिली कि उन्हें तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया गया था. त्रिम्मु घाट की लड़ाई में हिस्सा लेने वालों में आलम बेग भी एक थे. आलम बेग की खोपड़ी कैप्टन AR कॉस्टेलो ने अपने पास रख ली और ब्रिटेन ले गया. वहां से होते हुए खोपड़ी लंदन के एक पब में गई उसके बाद पब मालिक ने एक इतिहासकार को सौंप दी. फिर खोपड़ी इतिहासकार वैग्नर के पास पहुंची.

BHU के वैज्ञानिक की ब्रिटेन से मांग
BHU के वैज्ञानिक की ब्रिटेन से मांग

282 जवानों का किया गया था नरसंहार : प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि 'इंग्लैंड में भारतीय मूल के ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन 282 जवानों को न्याय मिलने की आशा है. 166 साल पहले ये जवान शहीद हुए थे. उन्होंने बताया कि 1857 की क्रांति के दौरान पंजाब के अमृतसर स्थित अजनाला में यह हत्याकांड हुआ था. यहां तैनात ब्रिटिश इंडिया की 26वीं बंगाल इंफैट्री के इंडियन जवानों ने विद्रोह कर दिया था. इन जवानों को पत्थर और गोलियों से मार दिया गया. फिर एक कुएं में फेंककर ढक दिया गया था. इसका जिक्र हत्याकांड को अंजाम देने वाले ब्रिटिश कमिश्नर फेडरिक हेनरी कूपर ने अपनी किताब 'द क्राइसिस ऑफ पंजाब' में किया था.'

BHU के वैज्ञानिक की ब्रिटेन से मांग
BHU के वैज्ञानिक की ब्रिटेन से मांग



साल 2014 में जांच में जुड़े BHU के वैज्ञानिक : प्रो. चौबे ने बताया कि 'साल 2014 में उस कुएं को खोला गया. यहां पर मिले 282 लोगों के नर कंकालों का DNA टेस्ट किया गया, जिसके बाद ये पता चला कि ये सभी जवान गंगा घाटी के रहने वाले थे. पंजाब के इतिहासकार सुरेंदर कोचर ने 2003 में इसकी छानबीन शुरू कराई. कंकाल मिलने पर पंजाब के प्रो. सेहरावत ने CCMB हैदराबाद से DNA टेस्ट कराया. फिर 2014 में BHU समेत कई विश्वविद्यालयों के जीन वैज्ञानिक जुड़े. वैज्ञानिकों का दल इन सैनिकों का अंतिम संस्कार कराना चाहता था, लेकिन उनके नाम व गांव का पता नहीं था.'

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'द क्राइसिस ऑफ पंजाब' में इस घटना का जिक्र : 'द क्राइसिस ऑफ पंजाब' किताब के लेखक ब्रिटिश कमिश्नर फेडरिक हेनरी कूपर ने उस हत्याकांड के बारे में लिखा है. उसी ने अजनाला में ब्रिटिश रेजीमेंट को लीड किया था, जिसमें इन भारतीय सैनिकों को मार दिया गया था. इस किताब में इसे कलियांवाला नरसंहार भी लिखा गया है. किताब में यह भी लिखा गया है कि यह यूपी के बनारस और कानपुर में अंग्रेजों के खिलाफ भड़के गुस्से का बदला था. यदि ये घटनाएं न होतीं तो कलियांवाला नरसंहार भी नहीं होता. इस हत्याकांड के तमाम साक्ष्य भी मिलते चले गए, जिसके बाद इन शहीदों के अंतिम संस्कार की बात की जा रही है.'

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