नई दिल्ली : अयोध्या के बाबरी विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ की सीबीआई कोर्ट को 31 अगस्त तक फैसला सुनाने का आदेश दिया है. इस मामले में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी आरोपी हैं.
यह मामला छह दिसंबर 1992 का है, जब कारसेवकों ने अयोध्या में मार्च किया था और बाबरी ढांचे को गिरा दिया था.
मामला लखनऊ में विशेष सीबीआई अदालत में चल रहा है. बाबरी केस मस्जिद के विध्वंस के पीछे की कथित आपराधिक साजिश से जुड़ा है.
बाबरी ढांचा विध्वंस से जुड़े मामले में पहली प्राथमिकी छह दिसंबर, 1992 को मस्जिद गिरने के तत्काल बाद दर्ज की गई थी.
यह पहली प्राथमिकी संख्या 197/92, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 और आईपीसी की धाराओं 395, 397, 332, 33, 338, 295, 297, 153ए के तहत अज्ञात 'कारसेवकों' के खिलाफ दर्ज की गई थी.
इसके बाद दूसरी प्राथमिकी संख्या 198/92, आईपीसी की 153ए, 153बी, 505 धाराओं के तहत एल.के.आडवाणी, अशोक सिंहल, गिरिराज किशोर, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, विष्णु हरि डालमिया व साध्वी रितंभरा के खिलाफ दर्ज की गई थी. यह विध्वंस से पहले शत्रुता फैलाने के लिए दिए गए भड़काऊ भाषण से जुड़ा था.
सीबीआई ने बाबरी ढांचा विध्वंस से जुड़े 49 मामलों की जांच की और पांच अक्टूबर, 1993 को लखनऊ के एक विशेष कोर्ट में इन मामलों में 40 लोगों के खिलाफ संयुक्त आरोप पत्र दाखिल किया.
इस मामले में भारतीय राजनीति के कुछ हाई प्रोफाइल नाम आरोपी हैं. यह मामला लगभग तीन दशक से चल रहा है. इस मामले के कुछ आरोपियों का निधन भी हो चुका है.
गौरतलब है कि छह दिसंबर, 1992 को बाबरी ढांचा विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे. घटना के कुछ ही घंटों बाद उनकी सरकार गिर गई थी और कल्याण सिंह को एक दिन के लिए जेल भेज दिया गया था, क्योंकि उन्होंने मस्जिद की रक्षा करने का अदालत में एक हलफनामा दिया था.