नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की नजरबंदी को चुनौती देने वाली याचिका को 15 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दिया है. केंद्र ने संशोधित याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा है.
उच्चतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से जन सुरक्षा अधिनियम के तहत महबूबा मुफ्ती की हिरासत के खिलाफ दायर उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती की नई याचिका पर मंगलवार को जवाब मांगा. न्यायालय ने कहा कि किसी को हमेशा हिरासत में नहीं रखा जा सकता और कोई बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति एस. के. कॉल और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती को पार्टी की बैठकों में हिस्सा लेने के लिए अधिकारियों से अनुरोध करना चाहिए.
उच्चतम न्यायालय ने इल्तिजा मुफ्ती और उनके मामा को महबूबा मुफ्ती से हिरासत में मिलने की अनुमति दी.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने संबंधी संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान समाप्त करने और राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभक्त करने के पिछले साल पांच अगस्त के सरकार के फैसले के पहले से हिरासत में रखा गया है.
महबूबा मुफ्ती इल्तिजा मुफ्ती की बेटी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी मां के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी. इल्तिजा ने पीएसए के आदेश को चुनौती दी है और नजरबंदी के विस्तार को भी. बता दें कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद महबूबा मुफ्ती को हिरासत में रखा गया था. महबूबा को पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया था. तब से वह हिरासत में ही हैं.
23 सितंबर को फोन पर ईटीवी भारत से बात करते हुए इल्तिजा ने कहा कि मेरी मां की नजरबंदी गैरकानूनी है. उनकी बाहरी दुनिया में बहुत कम पहुंच है और यहां तक कि उनका लैंडलाइन फोन भी गैरकानूनी और अनुचित तरीके से काट दिया गया है.
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जुलाई में सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत मुफ्ती की नजरबंदी तीन महीने बढ़ा दी गई थी.
फारूक अब्दुल्ला सहित मुफ्ती और कश्मीर के कई अन्य नेताओं को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के उल्लंघन के बाद हिरासत में ले लिया गया था, जो तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा देते थे. 2019 में जिस दिन सरकार ने धारा 370 को रद्द कर दिया, उसके कुछ समय बाद महबूबा को निवारक हिरासत में लिया गया था.