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मंदिर का कपाट खुला, पुलिस ने 10 महिला श्रद्धालुओं को वापस भेजा

सबरीमाला मंदिर के कपाट खुल गए हैं. केरल सरकार ने अपनी ओर से साफ कर दिया है कि, जिन महिलाओं को अंदर प्रवेश करना है, वह अदालती आदेश लेकर आएं. जानें विस्तार से

फाइल फोटो
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Published : Nov 16, 2019, 9:44 AM IST

Updated : Nov 16, 2019, 6:43 PM IST

तिरूवनंतपुरम : केरल में सबरीमला स्थित भगवान अयप्पा के मंदिर के कपाट दो महीने चलने वाली तीर्थयात्रा मंडला-मकरविलक्कू के लिए शनिवार को कड़ी सुरक्षा के बीच खोल दिए गए. मंदिर के तंत्री (मुख्य पुरोहित) कंडरारू महेश मोहनरारू ने सुबह पांच बजे मंदिर के गर्भगृह के कपाट खोले और पूजा अर्चना की.

केरल के पथनमथिट्टा जिले में पश्चिमी घाट के आरक्षित वन क्षेत्र में स्थित मंदिर में केरल, तमिलनाडु और अन्य पड़ोसी राज्यों के सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे.

मंदिर के कपाट खुले

इसी बीच सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा के दर्शन करने जा रहीं 10 महिलाओं को पुलिस ने पम्बा से वापस भेज दिया है. ये सभी महिलाएं 10 से 50 साल की उम्र थीं. महिलाएं आंध्र प्रदेश से आई हुई हैं.

केरल सरकार ने कहा है कि जो महिलायें मंदिर में प्रवेश करना चाहती है उन्हें 'अदालती आदेश' लेकर आना होगा.

दर्शन के लिए जाते श्रद्धालु

तंत्री के पदी पूजा करने के बाद श्रद्धालु, जिन्हे दो बजे दोपहर को पहाड़ी पर चढ़ने की अनुमति दी गई, वे इरुमुडीकेट्टू (प्रसाद की पवित्र पोटली) के साथ मंदिर के पवित्र 18 सोपन पर चढ़ कर भगवान अयप्पा के दर्शन कर सकेंगे.

नए तंत्री एके सुधीर नम्बूदिरी (सबरीमाल) और एमएस परमेश्वरन नम्बूदिरी (मलिकापुरम) ने बाद में पूजापाठ की जिम्मेदारी ली.

पिछले साल 28 सितंबर को उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी आयुवर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने और राज्य की वाम मोर्चे की सरकार द्वारा इसका अनुपालन करने की प्रतिबद्धता जताने के बाद दक्षिणपंथी संगठनों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया था.

हालांकि, इस साल उच्चतम न्यायालय ने 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने संबंधी अपने फैसले पर रोक नहीं लगाई. लेकिन इस फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेज दिया. साथ ही, सरकार भी इस विषय पर सावधानी बरत रही है.

देवस्वाओम मंत्री कडकम्पल्ली सुरेंद्रन ने स्पष्ट कर दिया है कि सबरीमला कार्यकर्ताओं के अपनी सक्रियता दिखाने का स्थान नहीं है और प्रचार पाने के लिए मंदिर आने वाली महिलाओं को सरकार प्रोत्साहित नहीं करेगी. वहीं, 10 से 50 आयुवर्ग की जो महिला सबरीमला मंदिर में दर्शन करना चाहती हैं, वे अदालत का आदेश लेकर आएं.

पिछले साल एलडीएफ सरकार ने 28 सितंबर, 2018 को उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू करने का फैसला किया था, जिसमें सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में पूजा करने की इजाजत दी गई है. फैसले के बाद राज्य भर में और मंदिर के आस-पास दक्षिणपंथी संगठनों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था.

सदियों से 10 से 50 वर्ष के रजस्वला उम्र वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने पर रोक लगी थी. इस साल, शीर्ष अदालत ने इस मामले में अपना फैसला नहीं सुनाते हुये मामले को एक वृहद पीठ के पास भेज दिया, लेकिन सरकार पूरी सतर्कता बरत रही है. सरकार ने 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर तक पहुंचने के लिए पुलिस सुरक्षा नहीं देने का फैसला किया है.

शीर्ष अदालत ने इस धार्मिक मामले को बृहद पीठ में भेजने का निर्णय किया था. शीर्ष अदालत ने पहले पिछले साल रजस्वला उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी.

उच्चतम न्यायालय ने गुरूवार को इस मामले पर फैसला देते हुए इसे वृहद पीठ को सौंपने का निर्णय किया है, इसी परिप्रेक्ष्य में संवाददाताओं के पूछे गए सवाल का जवाब सुरेंद्रन दे रहे थे.

पढ़ें: सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रशंसनीय : एसजेआर कुमार

कानून मंत्री एके बाला ने कहा कि सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले में मौजूद 'भ्रम' पर सक्षम कानूनी विशेषज्ञों की राय लेगी. उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन ने शुक्रवार को कहा कि सरकार को सबरीमाला मामले में 3:2 के बहुमत से दिये गए फैसले में 'असहमति का बेहद महत्वपूर्ण आदेश' पढ़ना चाहिए.

न्यायमूर्ति नरिमन ने अपनी और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की ओर से गुरुवार को दिये गए फैसले में असहमति का आदेश लिखा था. न्यायमूर्ति नरिमन ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा, 'कृपया अपनी सरकार को सबरीमला मामले में कल सुनाये गये असहमति के फैसले को पढ़ने के लिये कहें, जो बेहद महत्वपूर्ण है...अपने प्राधिकारी और सरकार को इसे पढ़ने के लिये कहिये.'

न्यायमूर्ति नरिमन और न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ सबरीमाला मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य थे ओर उन्होंने सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी सितंबर, 2018 के शीर्ष अदालत के फैसले पर पुनर्विचार की याचिकाओं को खारिज करते हुये बृहस्पतिवार को बहुमत के फैसले से असहमति व्यक्त की थी.

न्यायमूर्ति नरिमन ने मेहता से यह उस वक्त कहा जब न्यायालय धन शोधन के एक मामले में कर्नाटक के कांग्रेस नेता डी के शिवकुमार को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली प्रवर्तन निदेशालय की अपील पर सुनवाई कर रहा था.

उच्चतम न्यायालय ने ईडी की अर्जी को खारिज कर दिया. सबरीमाला मंदिर में 'निहत्थी महिलाओं' को प्रवेश से रोके जाने को 'दुखद स्थिति' करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को अपने अल्पमत के फैसले में कहा कि 2018 की व्यवस्था पर अमल को लेकर कोई बातचीत नहीं हो सकती है और कोई भी व्यक्ति अथवा अधिकारी इसकी अवज्ञा नहीं कर सकता है.

इसमें कहा गया कि शीर्ष अदालत के फैसले को लागू करने वाले अधिकारियों को संविधान ने बिना किसी ना नुकुर के व्यवस्था दी है क्योंकि यह कानून के शासन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है. शीर्ष अदालत के सितंबर 2018 के फैसले का कड़ाई से अनुपालन करने का आदेश दिया गया है जिसमें सभी आयु वर्ग की लड़कियों और महिलाओं को केरल के इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी.

पढ़ें: सबरीमाला में तीर्थयात्रियों के लिए कतार की बुकिंग शुरू

फैसले में कहा गया, '...फैसले का अनुपालन वैकल्पिक मामला नहीं है. अगर ऐसा होता, तो अदालत का प्राधिकार उन लोगों द्वारा वैकल्पिक तौर पर कम किया जा सकता था जो उसके फैसलों के अनुपालन के लिये बाध्य हैं.' फैसले में कहा गया, 'आज कोई व्यक्ति या प्राधिकार खुले तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों या आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकता, जैसा की संविधान की व्यवस्था है.'

हालांकि, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा के बहुमत के फैसले ने इस मामले को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने का निर्णय किया. इसमें सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति से संबंधित शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले की पुनर्विचार की मांग की गयी थी. सबरीमाला मंदिर 17 नवंबर को खुल रहा है.

दरअसल, बहुमत के फैसले ने समीक्षा याचिका को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के लिए लंबित रखा है और 28 सितंबर 2018 के फैसले पर रोक नहीं लगायी है इसलिए सभी आयु वर्ग की लड़कियां और महिलायें मंदिर में जाने की पात्र हैं.

न्यायमूर्ति नरिमन ने कहा कि दस वर्ष से 50 वर्ष की आयु के बीच की निहत्थी महिलाओं को मंदिर में पूजा करने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित रखने की दुखद स्थिति के आलोक में यह संवैधानिक कर्त्तव्य को फिर से रेखांकित कर रहा है. इसमें आगे कहा गया कि जो भी शीर्ष अदालत के निर्णयों का अनुपालन नहीं करता है, 'वह अपने जोखिम पर ऐसा करता है.'

तिरूवनंतपुरम : केरल में सबरीमला स्थित भगवान अयप्पा के मंदिर के कपाट दो महीने चलने वाली तीर्थयात्रा मंडला-मकरविलक्कू के लिए शनिवार को कड़ी सुरक्षा के बीच खोल दिए गए. मंदिर के तंत्री (मुख्य पुरोहित) कंडरारू महेश मोहनरारू ने सुबह पांच बजे मंदिर के गर्भगृह के कपाट खोले और पूजा अर्चना की.

केरल के पथनमथिट्टा जिले में पश्चिमी घाट के आरक्षित वन क्षेत्र में स्थित मंदिर में केरल, तमिलनाडु और अन्य पड़ोसी राज्यों के सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे.

मंदिर के कपाट खुले

इसी बीच सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा के दर्शन करने जा रहीं 10 महिलाओं को पुलिस ने पम्बा से वापस भेज दिया है. ये सभी महिलाएं 10 से 50 साल की उम्र थीं. महिलाएं आंध्र प्रदेश से आई हुई हैं.

केरल सरकार ने कहा है कि जो महिलायें मंदिर में प्रवेश करना चाहती है उन्हें 'अदालती आदेश' लेकर आना होगा.

दर्शन के लिए जाते श्रद्धालु

तंत्री के पदी पूजा करने के बाद श्रद्धालु, जिन्हे दो बजे दोपहर को पहाड़ी पर चढ़ने की अनुमति दी गई, वे इरुमुडीकेट्टू (प्रसाद की पवित्र पोटली) के साथ मंदिर के पवित्र 18 सोपन पर चढ़ कर भगवान अयप्पा के दर्शन कर सकेंगे.

नए तंत्री एके सुधीर नम्बूदिरी (सबरीमाल) और एमएस परमेश्वरन नम्बूदिरी (मलिकापुरम) ने बाद में पूजापाठ की जिम्मेदारी ली.

पिछले साल 28 सितंबर को उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी आयुवर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने और राज्य की वाम मोर्चे की सरकार द्वारा इसका अनुपालन करने की प्रतिबद्धता जताने के बाद दक्षिणपंथी संगठनों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया था.

हालांकि, इस साल उच्चतम न्यायालय ने 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने संबंधी अपने फैसले पर रोक नहीं लगाई. लेकिन इस फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेज दिया. साथ ही, सरकार भी इस विषय पर सावधानी बरत रही है.

देवस्वाओम मंत्री कडकम्पल्ली सुरेंद्रन ने स्पष्ट कर दिया है कि सबरीमला कार्यकर्ताओं के अपनी सक्रियता दिखाने का स्थान नहीं है और प्रचार पाने के लिए मंदिर आने वाली महिलाओं को सरकार प्रोत्साहित नहीं करेगी. वहीं, 10 से 50 आयुवर्ग की जो महिला सबरीमला मंदिर में दर्शन करना चाहती हैं, वे अदालत का आदेश लेकर आएं.

पिछले साल एलडीएफ सरकार ने 28 सितंबर, 2018 को उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू करने का फैसला किया था, जिसमें सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में पूजा करने की इजाजत दी गई है. फैसले के बाद राज्य भर में और मंदिर के आस-पास दक्षिणपंथी संगठनों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था.

सदियों से 10 से 50 वर्ष के रजस्वला उम्र वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने पर रोक लगी थी. इस साल, शीर्ष अदालत ने इस मामले में अपना फैसला नहीं सुनाते हुये मामले को एक वृहद पीठ के पास भेज दिया, लेकिन सरकार पूरी सतर्कता बरत रही है. सरकार ने 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर तक पहुंचने के लिए पुलिस सुरक्षा नहीं देने का फैसला किया है.

शीर्ष अदालत ने इस धार्मिक मामले को बृहद पीठ में भेजने का निर्णय किया था. शीर्ष अदालत ने पहले पिछले साल रजस्वला उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी.

उच्चतम न्यायालय ने गुरूवार को इस मामले पर फैसला देते हुए इसे वृहद पीठ को सौंपने का निर्णय किया है, इसी परिप्रेक्ष्य में संवाददाताओं के पूछे गए सवाल का जवाब सुरेंद्रन दे रहे थे.

पढ़ें: सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रशंसनीय : एसजेआर कुमार

कानून मंत्री एके बाला ने कहा कि सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले में मौजूद 'भ्रम' पर सक्षम कानूनी विशेषज्ञों की राय लेगी. उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन ने शुक्रवार को कहा कि सरकार को सबरीमाला मामले में 3:2 के बहुमत से दिये गए फैसले में 'असहमति का बेहद महत्वपूर्ण आदेश' पढ़ना चाहिए.

न्यायमूर्ति नरिमन ने अपनी और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की ओर से गुरुवार को दिये गए फैसले में असहमति का आदेश लिखा था. न्यायमूर्ति नरिमन ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा, 'कृपया अपनी सरकार को सबरीमला मामले में कल सुनाये गये असहमति के फैसले को पढ़ने के लिये कहें, जो बेहद महत्वपूर्ण है...अपने प्राधिकारी और सरकार को इसे पढ़ने के लिये कहिये.'

न्यायमूर्ति नरिमन और न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ सबरीमाला मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य थे ओर उन्होंने सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी सितंबर, 2018 के शीर्ष अदालत के फैसले पर पुनर्विचार की याचिकाओं को खारिज करते हुये बृहस्पतिवार को बहुमत के फैसले से असहमति व्यक्त की थी.

न्यायमूर्ति नरिमन ने मेहता से यह उस वक्त कहा जब न्यायालय धन शोधन के एक मामले में कर्नाटक के कांग्रेस नेता डी के शिवकुमार को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली प्रवर्तन निदेशालय की अपील पर सुनवाई कर रहा था.

उच्चतम न्यायालय ने ईडी की अर्जी को खारिज कर दिया. सबरीमाला मंदिर में 'निहत्थी महिलाओं' को प्रवेश से रोके जाने को 'दुखद स्थिति' करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को अपने अल्पमत के फैसले में कहा कि 2018 की व्यवस्था पर अमल को लेकर कोई बातचीत नहीं हो सकती है और कोई भी व्यक्ति अथवा अधिकारी इसकी अवज्ञा नहीं कर सकता है.

इसमें कहा गया कि शीर्ष अदालत के फैसले को लागू करने वाले अधिकारियों को संविधान ने बिना किसी ना नुकुर के व्यवस्था दी है क्योंकि यह कानून के शासन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है. शीर्ष अदालत के सितंबर 2018 के फैसले का कड़ाई से अनुपालन करने का आदेश दिया गया है जिसमें सभी आयु वर्ग की लड़कियों और महिलाओं को केरल के इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी.

पढ़ें: सबरीमाला में तीर्थयात्रियों के लिए कतार की बुकिंग शुरू

फैसले में कहा गया, '...फैसले का अनुपालन वैकल्पिक मामला नहीं है. अगर ऐसा होता, तो अदालत का प्राधिकार उन लोगों द्वारा वैकल्पिक तौर पर कम किया जा सकता था जो उसके फैसलों के अनुपालन के लिये बाध्य हैं.' फैसले में कहा गया, 'आज कोई व्यक्ति या प्राधिकार खुले तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों या आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकता, जैसा की संविधान की व्यवस्था है.'

हालांकि, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा के बहुमत के फैसले ने इस मामले को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने का निर्णय किया. इसमें सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति से संबंधित शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले की पुनर्विचार की मांग की गयी थी. सबरीमाला मंदिर 17 नवंबर को खुल रहा है.

दरअसल, बहुमत के फैसले ने समीक्षा याचिका को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के लिए लंबित रखा है और 28 सितंबर 2018 के फैसले पर रोक नहीं लगायी है इसलिए सभी आयु वर्ग की लड़कियां और महिलायें मंदिर में जाने की पात्र हैं.

न्यायमूर्ति नरिमन ने कहा कि दस वर्ष से 50 वर्ष की आयु के बीच की निहत्थी महिलाओं को मंदिर में पूजा करने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित रखने की दुखद स्थिति के आलोक में यह संवैधानिक कर्त्तव्य को फिर से रेखांकित कर रहा है. इसमें आगे कहा गया कि जो भी शीर्ष अदालत के निर्णयों का अनुपालन नहीं करता है, 'वह अपने जोखिम पर ऐसा करता है.'

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Print Printपीटीआई-भाषा संवाददाता 23:13 HRS IST



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सबरीमाला में आज खुलेंगे मंदिर के कपाट



सबरीमला मंदिर 16 नवंबर को खुलेगा, आंदोलन का स्थल नहीं : मंत्री

तिरूवनंतपुरम, 15 नवंबर (भाषा) सबरीमला मामले को उच्चतम न्यायालय के वृहद पीठ में भेजे जाने के शीर्ष अदालत के फैसले की पृष्ठभूमि में, भगवान अयप्पा मंदिर शनिवार को खुलेगा और केरल सरकार ने कहा है कि जो महिलायें मंदिर में प्रवेश करना चाहती है उन्हें ‘अदालती आदेश’ लेकर आना होगा।



शीर्ष अदालत ने इस धार्मिक मामले को बृहद पीठ में भेजने का निर्णय किया था । शीर्ष अदालत ने पहले पिछले साल रजस्वला उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी ।



17 नवंबर से शुरू होने वाले दो महीने की लंबी वार्षिक तीर्थयात्रा सत्र के लिए शनिवार को मंदिर खुल रहा है ।



केरल के देवस्वओम मंत्री के सुरेंद्रन ने शुक्रवार को कहा कि सबरीमला आंदोलन करने का स्थान नहीं है और राज्य की एलडीएफ सरकार उनलोगों का समर्थन नहीं करेगी जिन लोगों ने प्रचार पाने के लिए मंदिर में प्रवेश करने का ऐलान किया है।



भगवान अयप्पा मंदिर में प्रवेश करने वाली महिला कार्यकर्ताओं को पुलिस सुरक्षा प्रदान किये जाने संबंधी खबरों को खारिज करते हुए सुरेंद्रन ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले को ले कर ‘‘कुछ भ्रम’’ है और सबरीमला मंदिर जाने की इच्छुक महिलाओं को ‘अदालत का आदेश’ लेकर आना चाहिए।



उच्चतम न्यायालय ने गुरूवार को इस मामले पर फैसला देते हुए इसे वृहद पीठ को सौंपने का निर्णय किया है, इसी परिप्रेक्ष्य में संवाददाताओं के पूछे गए सवाल का जवाब सुरेंद्रन दे रहे थे।



मंत्री ने कहा, ‘‘सबरीमला आंदोलन करने वालों के लिए स्थान नहीं है। कुछ लोगों ने संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर मंदिर में प्रवेश करने की घोषणा की है। वे लोग केवल प्रचार के लिए ऐसा कर रहे हैं। सरकार इस तरह की चीजों का समर्थन नही करेगी।’’



कुछ कार्यकर्ताओं के इस कथन के बारे में पूछे जाने पर कि शीर्ष अदालत ने 28 सितंबर 2018 के फैसले पर रोक नहीं लगायी है, मंत्री ने कहा, ‘‘वे लोग शीर्ष अदालत का रूख कर सकते हैं और वहां से आदेश लेकर आयें और मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं।’’



उन्होंने कहा, ‘‘आदेश में अब भी कुछ भ्रम है। सरकार कानूनी विशेषज्ञों की राय लेगी।’’



राज्य माकपा नेतृत्व के करीबी ने प्रेट्र को बताया कि माकपा राज्य सचिवालय की आज यहां बैठक हुई जिसमें अदालत के फैसले पर चर्चा हुई।



उन्होंने बताया कि सचिवालय की आम भावना यह थी कि शीर्ष अदालत अपने फैसले को जबतक अंतिम रूप न हीं दे देती है तबतक महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देने की है ।



उन्होंने कहा कि जो मंदिर में प्रवेश करना चाहती हैं वह अदालत जायें और अपने पक्ष वहां से फैसला लेकर आयें ।



कानून मंत्री ए के बाला ने कहा कि सरकार उच्चतम न्यायालय के फैसले में मौजूद ‘भ्रम’ पर सक्षम कानूनी विशेषज्ञों की राय लेगी ।



उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन ने शुक्रवार को कहा कि सरकार को सबरीमला मामले में 3:2 के बहुमत से दिये गए फैसले में “असहमति का बेहद महत्वपूर्ण आदेश” पढ़ना चाहिए।



न्यायमूर्ति नरिमन ने अपनी और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की ओर से गुरुवार को दिये गए फैसले में असहमति का आदेश लिखा था।



न्यायमूर्ति नरिमन ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘कृपया अपनी सरकार को सबरीमला मामले में कल सुनाये गये असहमति के फैसले को पढ़ने के लिये कहें, जो बेहद महत्वपूर्ण है...अपने प्राधिकारी और सरकार को इसे पढ़ने के लिये कहिये।’’



न्यायमूर्ति नरिमन और न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ सबरीमला मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य थे ओर उन्होंने सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी सितंबर, 2018 के शीर्ष अदालत के फैसले पर पुनर्विचार की याचिकाओं को खारिज करते हुये बृहस्पतिवार को बहुमत के फैसले से असहमति व्यक्त की थी।



न्यायमूर्ति नरिमन ने मेहता से यह उस वक्त कहा जब न्यायालय धन शोधन के एक मामले में कर्नाटक के कांग्रेस नेता डी के शिवकुमार को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली प्रवर्तन निदेशालय की अपील पर सुनवाई कर रहा था।



उच्चतम न्यायालय ने ईडी की अर्जी को खारिज कर दिया।



सबरीमला मंदिर में ‘निहत्थी महिलाओं’ को प्रवेश से रोके जाने को ‘दुखद स्थिति’ करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को अपने अल्पमत के फैसले में कहा कि 2018 की व्यवस्था पर अमल को लेकर कोई बातचीत नहीं हो सकती है और कोई भी व्यक्ति अथवा अधिकारी इसकी अवज्ञा नहीं कर सकता है।



इसमें कहा गया कि शीर्ष अदालत के फैसले को लागू करने वाले अधिकारियों को संविधान ने बिना किसी ना नुकुर के व्यवस्था दी है क्योंकि यह कानून के शासन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। शीर्ष अदालत के सितंबर 2018 के फैसले का कड़ाई से अनुपालन करने का आदेश दिया गया है जिसमें सभी आयु वर्ग की लड़कियों और महिलाओं को केरल के इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी।



फैसले में कहा गया, “...फैसले का अनुपालन वैकल्पिक मामला नहीं है। अगर ऐसा होता, तो अदालत का प्राधिकार उन लोगों द्वारा वैकल्पिक तौर पर कम किया जा सकता था जो उसके फैसलों के अनुपालन के लिये बाध्य हैं।”





फैसले में कहा गया, “आज कोई व्यक्ति या प्राधिकार खुले तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों या आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकता, जैसा की संविधान की व्यवस्था है।”





हालांकि, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा के बहुमत के फैसले ने इस मामले को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने का निर्णय किया जिसमें सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति से संबंधित शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले की पुनर्विचार की मांग की गयी थी । सबरीमला मंदिर 17 नवंबर को खुल रहा है ।



चूंकि, बहुमत के फैसले ने समीक्षा याचिका को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के लिए लंबित रखा है और 28 सितंबर 2018 के फैसले पर रोक नहीं लगायी है इसलिए सभी आयु वर्ग की लड़कियां और महिलायें मंदिर में जाने की पात्र हैं ।



न्यायमूर्ति नरिमन ने कहा कि दस वर्ष से 50 वर्ष की आयु के बीच की निहत्थी महिलाओं को मंदिर में पूजा करने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित रखने की दुखद स्थिति के आलोक में यह संवैधानिक कर्त्तव्य को फिर से रेखांकित कर रहा है।



इसमें आगे कहा गया कि जो भी शीर्ष अदालत के निर्णयों का अनुपालन नहीं करता है, ‘‘वह अपने जोखिम पर ऐसा करता है ।’’




Conclusion:
Last Updated : Nov 16, 2019, 6:43 PM IST
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