नई दिल्ली : लोक सभा में कोरोना महामारी पर चर्चा के दौरान विपक्षी दलों के सांसदों ने कहा कि महामारी के दौरान सिर्फ 'कुप्रबंधन' देखने को मिला. वहीं, भाजपा ने कहा कि कोविड-19 महामारी एक युद्ध की तरह था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया और डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी और नर्स सैनिकों की तरह लड़े हैं. जनता भी एकजुटता से सरकार के साथ खड़ी रही.
लोक सभा में नियम 193 के तहत कोविड-19 महामारी पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि सरकार को कोरोना वायरस की जांच और इससे निपटने के उपायों को लेकर अधिक पारदर्शिता का परिचय देना चाहिए.
उन्होंने आरोप लगाया कि कोरोना के कारण सरकार के लिए एक अच्छी बात हो गई कि उसे मुंह छिपाने का बहाना मिल गया. थरूर ने आरोप लगाया कि देश में रोजाना सबसे ज्यादा मामले आ रहे हैं और सबसे अधिक मौतें हो रही हैं. यह चिंता का विषय है. सरकार की तरफ से 'कुप्रबंधन' देखने को मिला है. सरकार की तरफ से उठाए जाने वाले कदमों के संदर्भ में स्पष्टता और तैयारियों की कमी देखने को मिली.
थरूर ने आगे कहा कि हमारे नेता राहुल गांधी ने कोरोना वायरस संकट को लेकर सरकार को आगाह किया था, लेकिन सरकार ने इस समस्या को नजरअंदाज किया.
कांग्रेस सांसद ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना वायरस के खिलाफ 21 दिनों में लड़ाई जीतने की बात कही थी. लेकिन पिछले छह महीने से स्थिति खराब होती जा रही है. बिना तैयारी के लॉकडाउन लगाकर कारोबारी गतिविधियों को रोक दिया गया. अर्थव्यवस्था पहले से खराब स्थिति में थी, जो और खराब हो गई.
उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा, 'हम यह नहीं कहते थे कि महामारी नहीं थी, हम यह बता रहे हैं कि तैयारी नहीं थी.'
चर्चा में हिस्सा लेते हुए भाजपा सांसद किरीट सोलंकी ने कहा कि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस महामारी का प्रकोप सामने आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समय पर लॉकडाउन का निर्णय लिया. उन्होंने कहा कि किसी को नहीं पता कि यह महामारी कब समाप्त होगी. इसकी कोई दवा नहीं है, इसका कोई तय प्रोटोकॉल नहीं है और अनुभव के आधार पर उपचार प्रोटोकॉल विकसित किए जा रहे हैं.
सोलंकी ने कहा कि जहां तक चिकित्सा ढांचे की बात है तो ग्रामीण क्षेत्र में चिकित्सा ढांचे की सीमाओं को देखते हुए भी महामारी में आगे बढ़कर काम करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का परिचायक है.
उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी एक युद्ध की तरह था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया और डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी और नर्स सैनिकों की तरह लड़े हैं तथा जनता एकजुटता के साथ खड़ी रही. दुनिया में सबसे पहले निर्णय लेने वालों में भारत रहा.
भाजपा सांसद ने कहा कि इस महामारी के मद्देनजर चीन की भूमिका भी शंका के दायरे से बाहर नहीं है, क्योंकि यह प्रकोप चीन के वुहान से शुरू हुआ था.
वहीं, डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने चर्चा में भाग लेते हुए लॉकडाउन के दौरान विदेश में फंसे तमिलनाडु और अन्य राज्य के लोगों को वापस लाने में केंद्र सरकार तथा विशेष रूप से विदेश मंत्री एस जयशंकर के प्रयासों की सराहना की. साथ ही उन्होंने देश में इस महामारी से निपटने में सरकार के रवैये को 'लापरवाही' वाला बताया.
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उन्होंने दावा किया कि सरकार ने समय पर उचित निर्णय नहीं लिए, लेकिन सरकार के किसी मंत्री में प्रधानमंत्री से यह कहने का साहस नहीं है कि यह गलत है.
मारन ने कहा कि देश में कोविड-19 का सबसे पहला मामला तीन फरवरी को केरल में आया था. इसके बाद ही सरकार को सीमाएं बंद करनी चाहिए थी और निर्णय लेने चाहिए थे, लेकिन उसके बाद देश में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बड़ा समारोह आयोजित किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोग जमा हुए.
उन्होंने आरोप लगाया कि संसद के बजट सत्र में सदस्यों को कोरोना वायरस महामारी के विषय पर बोलने नहीं दिया गया.
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि वित्त मंत्री ने शनिवार को कहा कि प्रवासी मजदूरों के बारे में पश्चिम बंगाल की ओर से जानकारी नहीं दी गई, जबकि जून महीने में ही प्रवासी मजदूरों के बारे में केंद्र को सूचना दे दी गई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि वित्त मंत्री पश्चिम बंगाल को लेकर बहुत 'क्लोज माइंड' रख रही हैं.
कल्याण बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कोरोना वायरस के मामलों और राज्य सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का उल्लेख किया. बनर्जी ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से जो मदद मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिली.