नई दिल्ली: विपक्ष दलों ने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए शनिवार को कहा कि भाजपा की अगुवाई वाली सरकार सशस्त्र रणनीति का उपयोग कर रही है क्योंकि वह नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पर कोई राजनीतिक बहस नहीं कर सकती.
ईटीवी भारत से बात करते हुए, सीपीएम नेता नीलुत्पल बसु ने कहा कि अगर बीजेपी को लगता है कि वह CAA के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को दबा सकते हैं, तो यह उनकी भूल है.
बसु ने कहा, 'जहां भी बीजेपी कोई राजनीतिक तर्क देने की स्थिति में नहीं है, इसलिए वह सशस्त्र रणनीति का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसका कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है.'
बसु असम स्थित कृषक मुक्ति संग्राम समिति (KMSS) के अध्यक्ष अखिल गोगोई की हालिया गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए कहा कि गोगोई को हाल ही में राष्ट्रीय जांच ब्यूरो (NIA) ने असम से गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया था, वह CAA के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे.
KMSS के सदस्यों ने हाल ही में दिल्ली का दौरा किया और सीपीएम सहित कई राजनीतिक नेताओं से मुलाकात की . जहां उन्होनें नेताओं से सरकार पर दबाव बनाने को कहा है ताकि अखिल गोगोई को रिहा किया जा सके.
बसु ने कहा हाल के चुनावी नतीजों ने भी वास्तविकता का प्रभाव देखने को मिला. इस कारण हाल ही में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा.
वहीं बासू ने अमित शाह के उस बयान में जिसमें उन्होंने कहा था कि एनआरसी और एनपीआर में कोई संबंध नहीं है को लेकर कहा कि शाह का यह बयान पूरी तरह से गलत है.
बसु ने कहा कि 2003 में नागरिकता अधिनियम में संशोधन किया गया था. प्रत्येक निकाय को पता है कि एनपीआर और एनआरसी को जोड़ने के लिए दिशानिर्देश दिए गए थे.
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CPM नेता ने NRC और NPR पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रुख के बारे में भी बात करते हुए कहा कि यह उनका (ममता बनर्जी) ही थी, जिन्होंने कहा था कि एनपीआर बेहतर प्रशासन के लिए है जरूरी है.
बसु ने कहा कि पूरे भारत के 13 मुख्यमंत्रियों ने NRC का विरोध किया है. बसु ने कहा, 'कुछ मुख्यमंत्री एनडीए के साथी हैं. उनकी पार्टी सरकार का समर्थन कर रही है ... इसलिए सरकार मुश्किल में है.'
हालांकि, यह अच्छा है कि ममता बनर्जी को एनआरसी मुद्दे के संबंध में कुछ ज्ञान मिला है और अब वामपंथियों के हस्तक्षेप के मद्देनजर, उनके पास एनआरसी का विरोध करने अलावा और कोई विकल्प नहीं है.