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जानें, सहकारी बैंकों में हो रहे घोटालों पर नकेल कसने के लिए सरकार की तैयारी

भारत में 'बैंक' शब्द लोगों में अविवादित विश्वास रखता है. इसलिए, वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में एक या दो प्रतिशत अधिक ब्याज दर जैसे फैक्टरों से आकर्षित लाखों लोग लंबे समय से सहकारी बैंकों का संरक्षण कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने सहकारी बैंकिंग प्रणाली में हो रहे घोटालों पर नकेल कसने के लिए बैंकिंग विनियमन कानून का मसौदा तैयार किया.

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Published : Jun 26, 2020, 9:34 PM IST

हैदराबाद : भारत में 'बैंक' शब्द लोगों में अविवादित विश्वास रखता है. इसलिए, वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में एक या दो प्रतिशत अधिक ब्याज दर जैसे फैक्टरों से आकर्षित, लाखों लोग लंबे समय से सहकारी बैंकों का संरक्षण कर रहे हैं. पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक (पीएमसी) घोटाले ने पिछले साल पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. सहकारी बैंक की दिवालियेपन की कोई भी खबर लोगों के मन में तनाव पैदा कर देती है.

पीएमसी बैंक, जिसमें सात राज्यों में नौ लाख जमाकर्ताओं के 11,617 करोड़ रुपये जमा थे. उसने गैर-कानूनी तरीके से इस जमा राशि की 70 प्रतिशत रकम 6,500 करोड़ रुपये केवल एक ग्राहक (HDIL) को दे दिए. इस फर्जीवाडे़ को अंजाम देने के लिए बैंक ने एक हजार फर्जी खाते बनाए.

8.6 करोड़ जमाकर्ताओं से पांच लाख करोड़ के साथ 1540 शहरी सहकारी बैंकों के भविष्य को देखते हुए, केंद्र सरकार ने सहकारी बैंकिंग प्रणाली में हो रहे घोटोलों पर नकेल कसने के लिए बैंकिंग विनियमन कानून का मसौदा तैयार किया.

इस बिल के माध्यम से केंद्र ने सरकार सहकारी बैंकों की व्यावसायिकता बढ़ाने और आरबीआई की सख्त निगरानी में उनके प्रबंधन में सुधार लाने के लिए विधेयक का मसौदा तैयार किया. इसे सरकार द्वारा संसद बजट सत्र में पेश किया.

सहकारी पंजीयक पहले की तरह सहकारी बैंकों के सांपातिक पहलुओं को देखेंगे, लेकिन सहकारी बैंकों को अपने विनियमन के लिए आरबीआई द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करना होगा.

गौरतलब है कि इस विधेयक को लागू नहीं किया जा सका था, इसलिए मोदी सरकार ने नवीनतम अध्यादेश को मंजूरी दे दी.

सहकारी बैंकों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की नियुक्ति के लिए आरबीआई की मंजूरी से ऑडिटिंग प्रक्रिया, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ने की उम्मीद है. अब यह आरबीआई पर निर्भर करता है कि वह बिना किसी प्रणालीगत विफलताओं के सहकारी बैंकिंग को आगे बढ़ाएगी.

उन स्थानों पर, जहां कोई वाणिज्यिक बैंक नहीं हैं, वहां लोगों की बैंकिंग आवश्यकताओं को पूरा करना, शहरी सहकारी बैंकों को लघु उद्योगों, खुदरा विक्रेताओं, पेशेवरों, कुशल पेशेवरों और निश्चित आय समूहों को वित्त देने के लिए स्थापित किया गया था. हालांकि, बैंकों के प्रबंधन में जहां विश्वास और प्रतिबद्धता की कमी है, वहां बैंकों में संकट जारी है.

आंध्र प्रदेश में भाग्यनगर बैंक, कृषि बैंक, वासवी बैंक, चारमीनार बैंक, मेगासिटी बैंक आदि जैसे बैंकों के अचानक बंद होने के बाद, नरसिम्हामूर्ति समिति ने बैंकों के बंद होने के मूल कारणों का पता लगाया और उपचारात्मक कदमों को लागू करने का सुझाव भी दिया.

गुजरात में मधेपुरा मर्केंटाइल को-ऑपरेटिव बैंक के समर्थन से केतन पारिख द्वारा किए गए महाघोटाले ने देश को हिलाकर रख दिया. इसके बाद, आरबीआई ने शहरी सहकारी बैंकों के बहुमत वाले राज्यों के साथ मिलकर एक समझ बनाने के लिए कार्य बल समूह बनाने का प्रस्ताव पेश किया, पर कुछ नहीं हुआ.

भले ही केंद्र ने 2003 में यह मान लिया कि घोटोलों का मूल कारण राज्यों की ओर से सहकारी पंजीयक और केंद्र की ओर से आरबीआई का संयुक्त नियंत्रण है, फिर भी मामला बिना किसी निवारण के आज भी ज्यों का त्यों है.

सात हफ्ते पहले संवैधानिक पीठ ने एक पिछले फैसले को खारिज कर दिया कि जिसमें कहा गया था कि महाराष्ट्र सहकारी समिती अधिनियम 1960 और 1964 के एपी बैंकिंग अधिनियम के तहत स्थापित बैंकिंग व्यवसाय में कंपनियां 1949 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम के दायरे में नहीं आएंगी.

पढ़ें- साइबर हमलों से बचने के लिए आईटी सेक्टर में आत्मनिर्भरता जरूरी, जानिए भारत की स्थिति

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर बैंकिंग विनियमन अधिनियम उन पर लागू नहीं होता है, तो उन्हें लाइसेंस नहीं दिया जाना चाहिए.

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ आरबीआई के पास सहकारी बैंकों को विनियमित करने और उन पर लाखों ग्राहकों का विश्वास जगाने की जिम्मेदारी है.

हैदराबाद : भारत में 'बैंक' शब्द लोगों में अविवादित विश्वास रखता है. इसलिए, वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में एक या दो प्रतिशत अधिक ब्याज दर जैसे फैक्टरों से आकर्षित, लाखों लोग लंबे समय से सहकारी बैंकों का संरक्षण कर रहे हैं. पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक (पीएमसी) घोटाले ने पिछले साल पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. सहकारी बैंक की दिवालियेपन की कोई भी खबर लोगों के मन में तनाव पैदा कर देती है.

पीएमसी बैंक, जिसमें सात राज्यों में नौ लाख जमाकर्ताओं के 11,617 करोड़ रुपये जमा थे. उसने गैर-कानूनी तरीके से इस जमा राशि की 70 प्रतिशत रकम 6,500 करोड़ रुपये केवल एक ग्राहक (HDIL) को दे दिए. इस फर्जीवाडे़ को अंजाम देने के लिए बैंक ने एक हजार फर्जी खाते बनाए.

8.6 करोड़ जमाकर्ताओं से पांच लाख करोड़ के साथ 1540 शहरी सहकारी बैंकों के भविष्य को देखते हुए, केंद्र सरकार ने सहकारी बैंकिंग प्रणाली में हो रहे घोटोलों पर नकेल कसने के लिए बैंकिंग विनियमन कानून का मसौदा तैयार किया.

इस बिल के माध्यम से केंद्र ने सरकार सहकारी बैंकों की व्यावसायिकता बढ़ाने और आरबीआई की सख्त निगरानी में उनके प्रबंधन में सुधार लाने के लिए विधेयक का मसौदा तैयार किया. इसे सरकार द्वारा संसद बजट सत्र में पेश किया.

सहकारी पंजीयक पहले की तरह सहकारी बैंकों के सांपातिक पहलुओं को देखेंगे, लेकिन सहकारी बैंकों को अपने विनियमन के लिए आरबीआई द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करना होगा.

गौरतलब है कि इस विधेयक को लागू नहीं किया जा सका था, इसलिए मोदी सरकार ने नवीनतम अध्यादेश को मंजूरी दे दी.

सहकारी बैंकों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की नियुक्ति के लिए आरबीआई की मंजूरी से ऑडिटिंग प्रक्रिया, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ने की उम्मीद है. अब यह आरबीआई पर निर्भर करता है कि वह बिना किसी प्रणालीगत विफलताओं के सहकारी बैंकिंग को आगे बढ़ाएगी.

उन स्थानों पर, जहां कोई वाणिज्यिक बैंक नहीं हैं, वहां लोगों की बैंकिंग आवश्यकताओं को पूरा करना, शहरी सहकारी बैंकों को लघु उद्योगों, खुदरा विक्रेताओं, पेशेवरों, कुशल पेशेवरों और निश्चित आय समूहों को वित्त देने के लिए स्थापित किया गया था. हालांकि, बैंकों के प्रबंधन में जहां विश्वास और प्रतिबद्धता की कमी है, वहां बैंकों में संकट जारी है.

आंध्र प्रदेश में भाग्यनगर बैंक, कृषि बैंक, वासवी बैंक, चारमीनार बैंक, मेगासिटी बैंक आदि जैसे बैंकों के अचानक बंद होने के बाद, नरसिम्हामूर्ति समिति ने बैंकों के बंद होने के मूल कारणों का पता लगाया और उपचारात्मक कदमों को लागू करने का सुझाव भी दिया.

गुजरात में मधेपुरा मर्केंटाइल को-ऑपरेटिव बैंक के समर्थन से केतन पारिख द्वारा किए गए महाघोटाले ने देश को हिलाकर रख दिया. इसके बाद, आरबीआई ने शहरी सहकारी बैंकों के बहुमत वाले राज्यों के साथ मिलकर एक समझ बनाने के लिए कार्य बल समूह बनाने का प्रस्ताव पेश किया, पर कुछ नहीं हुआ.

भले ही केंद्र ने 2003 में यह मान लिया कि घोटोलों का मूल कारण राज्यों की ओर से सहकारी पंजीयक और केंद्र की ओर से आरबीआई का संयुक्त नियंत्रण है, फिर भी मामला बिना किसी निवारण के आज भी ज्यों का त्यों है.

सात हफ्ते पहले संवैधानिक पीठ ने एक पिछले फैसले को खारिज कर दिया कि जिसमें कहा गया था कि महाराष्ट्र सहकारी समिती अधिनियम 1960 और 1964 के एपी बैंकिंग अधिनियम के तहत स्थापित बैंकिंग व्यवसाय में कंपनियां 1949 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम के दायरे में नहीं आएंगी.

पढ़ें- साइबर हमलों से बचने के लिए आईटी सेक्टर में आत्मनिर्भरता जरूरी, जानिए भारत की स्थिति

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर बैंकिंग विनियमन अधिनियम उन पर लागू नहीं होता है, तो उन्हें लाइसेंस नहीं दिया जाना चाहिए.

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ आरबीआई के पास सहकारी बैंकों को विनियमित करने और उन पर लाखों ग्राहकों का विश्वास जगाने की जिम्मेदारी है.

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