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जानें क्यों गिलगित-बाल्टिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण चाहता है पाकिस्तान

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Published : Oct 2, 2020, 10:25 AM IST

Updated : Oct 2, 2020, 3:45 PM IST

गिलगित-बाल्टिस्तान को एक प्रांतीय स्तर तक पहुंचाने का मतलब स्पष्ट रूप से उस क्षेत्र के पुराने असंतुष्ट रक्षकों की आवाज बंद करना है, जो कभी नहीं चाहते कि गिलगित-बाल्टिस्तान को जम्मू-कश्मीर का हिस्सा माना जाए. गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान का प्रांत बनाने के ख्याल ने इस क्षेत्र के बाहर हलचल पैदा कर दी है. पढ़ें ईटीवी भारत के न्यूज एडिटर बिलाल भट की रिपोर्ट...

Gilgit baltistan
Gilgit baltistan

हैदराबाद : गिलगित-बाल्टिस्तान को पूरी तरह से पाकिस्तान का प्रांत बनाने के ख्याल ने इस क्षेत्र के बाहर हलचल पैदा कर दी है. गिलगित-बाल्टिस्तान के प्रवासी इस कदम को जम्मू-कश्मीर से भारत के अनुच्छेद- 370 और अनुच्छेद- 35 ए को रद्द करने के फैसले के प्रत्युत्तर के रूप में देखते हैं. संविधान के तहत इन अनुच्छेदों से जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा दिया गया था.

यह मुद्दा तब सुर्खियों में आया जब कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान (जीबी) मामलों के मंत्री अली अमीन गंडापुर ने संवाददाताओं के सामने गिलगित-बाल्टिस्तान को अपना पांचवां प्रांत बनाकर कश्मीर पर पाकिस्तान का राजनीतिक दर्जा को बदलने के पाकिस्तान के इरादे का खुलासा किया. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके ) के अन्य हिस्से के विपरीत इसे प्रांत बनाने के बाद जीबी का पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में प्रतिनिधित्व होगा. गिलगित-बाल्टिस्तान को एक प्रांतीय स्तर तक पहुंचाने का मतलब स्पष्ट रूप से उस क्षेत्र के पुराने असंतुष्ट रक्षकों की आवाज बंद करना है, जो कभी नहीं चाहते कि गिलगित-बाल्टिस्तान को जम्मू-कश्मीर का हिस्सा माना जाए. उनका यह तर्क है कि जम्मू-कश्मीर से अलग इस क्षेत्र का अपना राजनीतिक इतिहास है. वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान जब गुलाब सिंह ने अंग्रेजों के साथ अमृतसर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे तब इस समझौते का हिस्सा नहीं था. यह जम्मू कश्मीर का हिस्सा बाद में बना.

कागजों में जम्मू-कश्मीर का हिस्सा

उत्तरी क्षेत्र स्थित गिलगित एजेंसी का प्रशासन ब्रिटिश सीधे एक राजनीतिक एजेंट के माध्यम से चलाते थे, ताकि उसकी सीमा के उस पार के साम्यवाद के प्रभाव को रोका जा सके. जीबी नेतृत्वकर्ताओं का मानना है कि इस क्षेत्र को कश्मीर के साथ जोड़कर इसका दर्जा कम किया गया है. कागजों पर यह क्षेत्र जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है, लेकिन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के शेष हिस्से की तरह इसे उतनी स्वायत्तता नहीं है.

गिलगित-बाल्टिस्तान के उलट पीओके में एक अलग राष्ट्रपति, एक प्रधानमंत्री और एक विधानसभा है. गिलगित-बाल्टिस्तान पर शासन सीधे पाकिस्तान की एक विधानसभा के माध्यम से किया जाता है जो 2018 में पाकिस्तान की ओर से आदेश जारी किए जाने के बाद वजूद में आया.

पीओके का अपना सर्वोच्च न्यायालय है, जिसके अधिकार क्षेत्र में जीबी का कोई हिस्सा नहीं है, लेकिन पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले और पाकिस्तान-चीन करार के अनुसार जम्मू-कश्मीर की अंतिम व्यवस्था खुद ब खुद जीबी पर लागू होगी, लेकिन यदि इस क्षेत्र को पाकिस्तान का एक और प्रांत बनाया जाता है तो इससे इस इलाके का राजनीतिक स्वरूप पूरी तरह से बदल जाएगा.

पंडित नेहरू ने बताया था विवादित क्षेत्र

यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) नाम के एक यूरोपीय थिंक टैंक का कहना है कि फैसला रावलपिंडी ने लिया है, इस्लामाबाद ने नहीं. मुहावरे के रूप से पाकिस्तान की सैन्य राजधानी रावलपिंडी को कहा जाता है.

कई ये तर्क देते हैं कि विवादित क्षेत्र में चीन का आर्थिक निवेश है, जिसके कारण चीन जीबी की स्थिति में बदलाव के लिए जोर दे रहा है. चीन के व्यापार का प्रमुख रास्ता चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) जीबी से होकर गुजरता है, जो अविभाजित जम्मू-कश्मीर के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त क्षेत्र है. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाते समय गिलगित एजेंसी (जो अब गिलगित-बाल्टिस्तान है) को विवादित क्षेत्र के तहत उल्लेख किया था.

एक बार जब यह प्रांत बन जाएगा तो पाकिस्तान इसकी भूमि और अन्य संसाधनों का बेझिझक उपयोग करके परिस्थिति का फायदा उठाएगा. इस मामले में जैसा कि जाहिर है किसी भी देश (चीन) के लिए इस क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों को अंजाम देना आसान होगा.

चीनियों ने सीपीईसी पर बहुत अधिक निवेश किया है. कुछ भी असामान्य होना उसके अपने हितों को खतरे में डाल सकता है. विशेषज्ञों का तर्क है कि चीन अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए पाकिस्तान से कानूनी सुरक्षा उपाय चाहता है और यह तभी संभव है, जब पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान पर पूर्ण कानूनी नियंत्रण हासिल कर ले.

ऐसा माना जाता है कि लद्दाख में नियंत्रण रेखा के साथ चीन की सेना की ओर से निर्माण कार्य अनुच्छेद 370 और 35 ए के रद्द करने की प्रतिक्रिया थी. चीनियों के लिए 5 अगस्त से पहले की स्थिति सबसे अनुकूल होती. सीमा पर आक्रामकता के अलावा चीन के आदेश पर जीबी में जैसे को तैसा की तर्ज पर संवैधानिक परिवर्तन 5 अगस्त के परिवर्तनों का जवाब लग रहा है.

एलएसी पर चीन की आक्रामकता तेज

इसके अलावा यह भी ध्यान देने की बात है कि भारत की ओर से जीबी की स्थिति में किसी भी संभावित बदलाव के खिलाफ आवाज उठाने के बाद एलएसी पर चीन की आक्रामकता और तेज हो गई. बलूचिस्तान के अलगाववादी स्वरों को कथित रूप से भारत सरकार के समर्थन ने पाकिस्तान को नाराज कर दिया है, इसलिए सीमा पर दिन-प्रतिदिन एलएसी और एलओसी गर्म होते जा रहे हैं.

कुल मिलाकर यदि पाकिस्तान अपने निर्णय के साथ आगे बढ़ता है तो वह सिर्फ हुर्रियत के कुछ नेताओं के समर्थन के अलावा कुछ ज्यादा खोने नहीं जा रहा है. हुर्रियत के नेताओं ने कश्मीर मुद्दे के अंतिम समाधान तक जीबी की स्थिति को नहीं बदलने का आग्रह किया है. हुर्रियत सम्मेलन के कट्टरपंथी गुट के प्रतिनिधि अब्दुल्ल गिलानी ने पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल (सेवानिवृत्त) अशफाक कयानी के सामने पाकिस्तान में जीबी विलय का विरोध किया था.

इस कदम से पाकिस्तान में ज्यादा कुछ नहीं बदलेगा, सिवाय इसके कि चीन को जीबी में अपनी परियोजनाएं चलाने में आसानी होगी और उसे मनोवैज्ञानिक तौर पर राहत मिलेगी. गिलगिट-बाल्टिस्तान पीओके का हिस्सा है, इसे लेकर जारी विवाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है और जब तक इसका निपटारा नहीं हो जाता है तब तक यह कोई मायने नहीं रखता कि यह पाकिस्तान का प्रांत बना या नहीं.

हैदराबाद : गिलगित-बाल्टिस्तान को पूरी तरह से पाकिस्तान का प्रांत बनाने के ख्याल ने इस क्षेत्र के बाहर हलचल पैदा कर दी है. गिलगित-बाल्टिस्तान के प्रवासी इस कदम को जम्मू-कश्मीर से भारत के अनुच्छेद- 370 और अनुच्छेद- 35 ए को रद्द करने के फैसले के प्रत्युत्तर के रूप में देखते हैं. संविधान के तहत इन अनुच्छेदों से जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा दिया गया था.

यह मुद्दा तब सुर्खियों में आया जब कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान (जीबी) मामलों के मंत्री अली अमीन गंडापुर ने संवाददाताओं के सामने गिलगित-बाल्टिस्तान को अपना पांचवां प्रांत बनाकर कश्मीर पर पाकिस्तान का राजनीतिक दर्जा को बदलने के पाकिस्तान के इरादे का खुलासा किया. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके ) के अन्य हिस्से के विपरीत इसे प्रांत बनाने के बाद जीबी का पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में प्रतिनिधित्व होगा. गिलगित-बाल्टिस्तान को एक प्रांतीय स्तर तक पहुंचाने का मतलब स्पष्ट रूप से उस क्षेत्र के पुराने असंतुष्ट रक्षकों की आवाज बंद करना है, जो कभी नहीं चाहते कि गिलगित-बाल्टिस्तान को जम्मू-कश्मीर का हिस्सा माना जाए. उनका यह तर्क है कि जम्मू-कश्मीर से अलग इस क्षेत्र का अपना राजनीतिक इतिहास है. वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान जब गुलाब सिंह ने अंग्रेजों के साथ अमृतसर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे तब इस समझौते का हिस्सा नहीं था. यह जम्मू कश्मीर का हिस्सा बाद में बना.

कागजों में जम्मू-कश्मीर का हिस्सा

उत्तरी क्षेत्र स्थित गिलगित एजेंसी का प्रशासन ब्रिटिश सीधे एक राजनीतिक एजेंट के माध्यम से चलाते थे, ताकि उसकी सीमा के उस पार के साम्यवाद के प्रभाव को रोका जा सके. जीबी नेतृत्वकर्ताओं का मानना है कि इस क्षेत्र को कश्मीर के साथ जोड़कर इसका दर्जा कम किया गया है. कागजों पर यह क्षेत्र जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है, लेकिन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के शेष हिस्से की तरह इसे उतनी स्वायत्तता नहीं है.

गिलगित-बाल्टिस्तान के उलट पीओके में एक अलग राष्ट्रपति, एक प्रधानमंत्री और एक विधानसभा है. गिलगित-बाल्टिस्तान पर शासन सीधे पाकिस्तान की एक विधानसभा के माध्यम से किया जाता है जो 2018 में पाकिस्तान की ओर से आदेश जारी किए जाने के बाद वजूद में आया.

पीओके का अपना सर्वोच्च न्यायालय है, जिसके अधिकार क्षेत्र में जीबी का कोई हिस्सा नहीं है, लेकिन पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले और पाकिस्तान-चीन करार के अनुसार जम्मू-कश्मीर की अंतिम व्यवस्था खुद ब खुद जीबी पर लागू होगी, लेकिन यदि इस क्षेत्र को पाकिस्तान का एक और प्रांत बनाया जाता है तो इससे इस इलाके का राजनीतिक स्वरूप पूरी तरह से बदल जाएगा.

पंडित नेहरू ने बताया था विवादित क्षेत्र

यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) नाम के एक यूरोपीय थिंक टैंक का कहना है कि फैसला रावलपिंडी ने लिया है, इस्लामाबाद ने नहीं. मुहावरे के रूप से पाकिस्तान की सैन्य राजधानी रावलपिंडी को कहा जाता है.

कई ये तर्क देते हैं कि विवादित क्षेत्र में चीन का आर्थिक निवेश है, जिसके कारण चीन जीबी की स्थिति में बदलाव के लिए जोर दे रहा है. चीन के व्यापार का प्रमुख रास्ता चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) जीबी से होकर गुजरता है, जो अविभाजित जम्मू-कश्मीर के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त क्षेत्र है. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाते समय गिलगित एजेंसी (जो अब गिलगित-बाल्टिस्तान है) को विवादित क्षेत्र के तहत उल्लेख किया था.

एक बार जब यह प्रांत बन जाएगा तो पाकिस्तान इसकी भूमि और अन्य संसाधनों का बेझिझक उपयोग करके परिस्थिति का फायदा उठाएगा. इस मामले में जैसा कि जाहिर है किसी भी देश (चीन) के लिए इस क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों को अंजाम देना आसान होगा.

चीनियों ने सीपीईसी पर बहुत अधिक निवेश किया है. कुछ भी असामान्य होना उसके अपने हितों को खतरे में डाल सकता है. विशेषज्ञों का तर्क है कि चीन अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए पाकिस्तान से कानूनी सुरक्षा उपाय चाहता है और यह तभी संभव है, जब पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान पर पूर्ण कानूनी नियंत्रण हासिल कर ले.

ऐसा माना जाता है कि लद्दाख में नियंत्रण रेखा के साथ चीन की सेना की ओर से निर्माण कार्य अनुच्छेद 370 और 35 ए के रद्द करने की प्रतिक्रिया थी. चीनियों के लिए 5 अगस्त से पहले की स्थिति सबसे अनुकूल होती. सीमा पर आक्रामकता के अलावा चीन के आदेश पर जीबी में जैसे को तैसा की तर्ज पर संवैधानिक परिवर्तन 5 अगस्त के परिवर्तनों का जवाब लग रहा है.

एलएसी पर चीन की आक्रामकता तेज

इसके अलावा यह भी ध्यान देने की बात है कि भारत की ओर से जीबी की स्थिति में किसी भी संभावित बदलाव के खिलाफ आवाज उठाने के बाद एलएसी पर चीन की आक्रामकता और तेज हो गई. बलूचिस्तान के अलगाववादी स्वरों को कथित रूप से भारत सरकार के समर्थन ने पाकिस्तान को नाराज कर दिया है, इसलिए सीमा पर दिन-प्रतिदिन एलएसी और एलओसी गर्म होते जा रहे हैं.

कुल मिलाकर यदि पाकिस्तान अपने निर्णय के साथ आगे बढ़ता है तो वह सिर्फ हुर्रियत के कुछ नेताओं के समर्थन के अलावा कुछ ज्यादा खोने नहीं जा रहा है. हुर्रियत के नेताओं ने कश्मीर मुद्दे के अंतिम समाधान तक जीबी की स्थिति को नहीं बदलने का आग्रह किया है. हुर्रियत सम्मेलन के कट्टरपंथी गुट के प्रतिनिधि अब्दुल्ल गिलानी ने पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल (सेवानिवृत्त) अशफाक कयानी के सामने पाकिस्तान में जीबी विलय का विरोध किया था.

इस कदम से पाकिस्तान में ज्यादा कुछ नहीं बदलेगा, सिवाय इसके कि चीन को जीबी में अपनी परियोजनाएं चलाने में आसानी होगी और उसे मनोवैज्ञानिक तौर पर राहत मिलेगी. गिलगिट-बाल्टिस्तान पीओके का हिस्सा है, इसे लेकर जारी विवाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है और जब तक इसका निपटारा नहीं हो जाता है तब तक यह कोई मायने नहीं रखता कि यह पाकिस्तान का प्रांत बना या नहीं.

Last Updated : Oct 2, 2020, 3:45 PM IST
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