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महानदी में डूबा 500 साल पुराना मंदिर मिला

ओडिशा स्थित महानदी में डूबा एक पांच सौ साल पुराना मंदिर मिला है, जिसके बारे में ओडिशा में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट ऐंड कल्चर हेरिटेज (इनटैक) के परियोजना समन्वयक अनिल धीर ने बताया कि 60 फीट ऊंचा मंदिर माना जा रहा है कि करीब 500 साल पुराना है और हाल में परियोजना के तहत इसका पता लगाया गया. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर...

500 साल पुराना मंदिर मिला
500 साल पुराना मंदिर मिला
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Published : Jun 14, 2020, 11:48 PM IST

भुवनेश्वर : ओडिशा स्थित महानदी में डूबा एक पांच सौ साल पुराना मंदिर मिला है. नदी घाटी में मौजूद ऐतिहासिक विरासत का दस्तावेजीकरण कर रहे विशेषज्ञों ने यह जानकारी दी. ओडिशा में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट ऐंड कल्चर हेरिटेज (इनटैक) के परियोजना समन्वयक अनिल धीर ने बताया कि 60 फीट ऊंचा मंदिर माना जा रहा है कि करीब 500 साल पुराना है और हाल में परियोजना के तहत इसका पता लगाया गया.

उन्होंने रविवार को बताया कि मंदिर कटक के पद्मावती इलाके के बैदेश्वर के नजदीक बीच नदी में मिला है.

धीर ने बताया कि मस्तक की निर्माण शैली और मंदिर को बनाने में इस्तेमाल सामग्री से प्रतीत होता है कि 15 वीं या 16वीं सदी के शुरुआत में इसका निर्माण किया गया है.

उन्होंने कहा कि इंटैक मंदिर को दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से संपर्क करेगा.

धीर ने कहा कि हम जल्द ही एएसआई को पत्र लिख कर मंदिर को उचित स्थान पर स्थानांतरित करने का अनुरोध करेंगे क्योंकि उनके पास इसकी तकनीक है. राज्य सरकार को भी इस मामले को एएसआई के समक्ष उठाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि अब तक इंटैक ने दस्तावेजीकरण परियोजना के तहत महानदी में मौजूद 65 प्राचीन मंदिरों का पता लगाया है. धीर ने बताया कि इनमें से कई मंदिर हीराकुंड जलाश्य में हैं जिन्हें वहां से हटा कर उनका पुर्निर्माण किया जा सकता है.

इंटैक के परियोजना सहायक दीपक कुमार नायक ने स्थानीय विरासत जानकार रविंद्र राणा की मदद से मंदिर का पता लगाया. उन्होंने कहा कि उन्हें मंदिर की मौजूदगी की जानकारी है. यह मंदिर गोपीनाथ देव को समर्पित है.

नायक ने कहा, प्राचीन काल में इस इलाके को ‘सप्तपाटन’ के नाम से जाना जाता था. हालांकि, प्रलयकारी बाढ़ के कारण नदी के रास्ता बदलने से पूरा गांव ही डूब गया.

उन्होंने बताया कि 19वीं सदी में मंदिर में स्थापित अराध्य देवता की मूर्ति को स्थानांतरित कर ऊंचे स्थान पर स्थापित किया गया और मौजूदा समय में वह प्रतिमा पद्मावती गांव के गोपीनाथ देव मंदिर में स्थापित है.

धीर ने बताया कि इंटैक ओडिशा ने अपनी परियोजना के तहत महानदी घाटी स्थित विरासतों के दस्तावेजीकरण का काम पिछले साल शुरू किया था.

उन्होंने बताया कि महानदी के उद्गम स्थल से लेकर समुद्र में मिलने तक के 1,700 किलोमीटर के रास्ते में मौजूद सभी स्पष्ट और गैर स्पष्ट विरासत का विधिवत सर्वेक्षण किया जा रहा है और यह अंतिम चरण में है.

धीर ने बताया कि अगले साल कई भागों में करीब 800 स्मारकों पर रिपोर्ट जारी की जाएगी.

पढ़ें - असम बागजान आग घटना को लेकर भारत-अमेरिकी विशेषज्ञों के बीच बातचीत

इंटैक की राज्य समन्वयक अमिया भूषण त्रिपाठी ने बताया कि भारत में किसी नदी का इस तरह का यह पहला अध्ययन है और न्यास ने पायलट परियोजना के तहत यह किया है.

पुरानी जगन्नाथ सड़क और प्राची घाटी के दस्तावेजीकरण परियोजना का नेतृत्व कर चुके धीर ने कहा कि महानदी की संपन्नता और विविधिता का अभी तक ठीक से अध्ययन नहीं किया गया है.

उन्होंने कहा कि कई प्राचीन स्मारक या तो नष्ट हो गए हैं जर्जर अवस्था में हैं. धीर ने कहा कि हीराकुड बांध की वजह से करीब 50 प्राचीन मंदिर नष्ट हो गए हैं.

भुवनेश्वर : ओडिशा स्थित महानदी में डूबा एक पांच सौ साल पुराना मंदिर मिला है. नदी घाटी में मौजूद ऐतिहासिक विरासत का दस्तावेजीकरण कर रहे विशेषज्ञों ने यह जानकारी दी. ओडिशा में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट ऐंड कल्चर हेरिटेज (इनटैक) के परियोजना समन्वयक अनिल धीर ने बताया कि 60 फीट ऊंचा मंदिर माना जा रहा है कि करीब 500 साल पुराना है और हाल में परियोजना के तहत इसका पता लगाया गया.

उन्होंने रविवार को बताया कि मंदिर कटक के पद्मावती इलाके के बैदेश्वर के नजदीक बीच नदी में मिला है.

धीर ने बताया कि मस्तक की निर्माण शैली और मंदिर को बनाने में इस्तेमाल सामग्री से प्रतीत होता है कि 15 वीं या 16वीं सदी के शुरुआत में इसका निर्माण किया गया है.

उन्होंने कहा कि इंटैक मंदिर को दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से संपर्क करेगा.

धीर ने कहा कि हम जल्द ही एएसआई को पत्र लिख कर मंदिर को उचित स्थान पर स्थानांतरित करने का अनुरोध करेंगे क्योंकि उनके पास इसकी तकनीक है. राज्य सरकार को भी इस मामले को एएसआई के समक्ष उठाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि अब तक इंटैक ने दस्तावेजीकरण परियोजना के तहत महानदी में मौजूद 65 प्राचीन मंदिरों का पता लगाया है. धीर ने बताया कि इनमें से कई मंदिर हीराकुंड जलाश्य में हैं जिन्हें वहां से हटा कर उनका पुर्निर्माण किया जा सकता है.

इंटैक के परियोजना सहायक दीपक कुमार नायक ने स्थानीय विरासत जानकार रविंद्र राणा की मदद से मंदिर का पता लगाया. उन्होंने कहा कि उन्हें मंदिर की मौजूदगी की जानकारी है. यह मंदिर गोपीनाथ देव को समर्पित है.

नायक ने कहा, प्राचीन काल में इस इलाके को ‘सप्तपाटन’ के नाम से जाना जाता था. हालांकि, प्रलयकारी बाढ़ के कारण नदी के रास्ता बदलने से पूरा गांव ही डूब गया.

उन्होंने बताया कि 19वीं सदी में मंदिर में स्थापित अराध्य देवता की मूर्ति को स्थानांतरित कर ऊंचे स्थान पर स्थापित किया गया और मौजूदा समय में वह प्रतिमा पद्मावती गांव के गोपीनाथ देव मंदिर में स्थापित है.

धीर ने बताया कि इंटैक ओडिशा ने अपनी परियोजना के तहत महानदी घाटी स्थित विरासतों के दस्तावेजीकरण का काम पिछले साल शुरू किया था.

उन्होंने बताया कि महानदी के उद्गम स्थल से लेकर समुद्र में मिलने तक के 1,700 किलोमीटर के रास्ते में मौजूद सभी स्पष्ट और गैर स्पष्ट विरासत का विधिवत सर्वेक्षण किया जा रहा है और यह अंतिम चरण में है.

धीर ने बताया कि अगले साल कई भागों में करीब 800 स्मारकों पर रिपोर्ट जारी की जाएगी.

पढ़ें - असम बागजान आग घटना को लेकर भारत-अमेरिकी विशेषज्ञों के बीच बातचीत

इंटैक की राज्य समन्वयक अमिया भूषण त्रिपाठी ने बताया कि भारत में किसी नदी का इस तरह का यह पहला अध्ययन है और न्यास ने पायलट परियोजना के तहत यह किया है.

पुरानी जगन्नाथ सड़क और प्राची घाटी के दस्तावेजीकरण परियोजना का नेतृत्व कर चुके धीर ने कहा कि महानदी की संपन्नता और विविधिता का अभी तक ठीक से अध्ययन नहीं किया गया है.

उन्होंने कहा कि कई प्राचीन स्मारक या तो नष्ट हो गए हैं जर्जर अवस्था में हैं. धीर ने कहा कि हीराकुड बांध की वजह से करीब 50 प्राचीन मंदिर नष्ट हो गए हैं.

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