नई दिल्ली : मेघालय में खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (KHADC) की आपत्ति के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय हाल ही हुए असम मेघालय बॉर्डर समझौते की कानूनी समीक्षा कर सकती है. मेघालय के खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद का दावा है कि जिन इलाकों में असम और मेघालय के बीच सीमा विवाद है, वह लोगों की निजी संपत्ति है. इस कारण मेघालय सरकार के पास उस प्रॉपर्टी को किसी को देने का अधिकार नहीं है. इस तरह मेघालय सरकार उस इलाके को समझौते के तहत असम को नहीं सौंप सकती है.
खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (KHADC) के मुख्य कार्यकारी सदस्य टिटोस्स्टारवेल चाइन ने कहा कि विवादित क्षेत्र संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं, इसलिए सरकार को इस तरह की किसी भी प्रक्रिया से पहले उचित मुआवजा देना होगी. इसके लिए भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 की धारा 41 के अनुसार परिषदों की सहमति लेने की जरूरत पड़ेगी. उन्होंने कहा कि विवादित भूमि का किसी की निजी संपत्ति है, इसलिए कोई भी समाधान भूमि मालिक की सहमति से किया जाना चाहिए. हम अदालत में सीमा भूमि के मुद्दे पर याचिकाकर्ता के पक्षकार होंगे.
गौरतलब है कि पूर्वोत्तर में खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद का गठन संविधान की छठी अनुसूची के तहत किया गया है. यह परिषद क्षेत्र में सरकार के रूप में कार्य करती है. कई संगठन पहले ही असम और मेघालय सरकार के बीच हुए समझौते का विरोध करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने की धमकी दे चुके हैं. 29 मार्च को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और मेघालय के सीएम कोनराड संगमा ने दोनों राज्यों के बीच दशकों के सीमा विवाद को समाप्त करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (memorandum of understanding) पर हस्ताक्षर किए. पहले चरण में कुल 12 में से छह विवादित क्षेत्रों पर राज्यों के बीच अदला-बदली का समझौता हो गया है.
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एस पी सिंह ने कहा कि यह संवेदनशील मुद्दा है, जिसे बड़ी सावधानी से हैंडल करना चाहिए. मेघालय की खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद निश्चित रूप से अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है कि विवादित क्षेत्र संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आता है और ऐसी भूमि पर कोई भी निर्णय स्वायत्त परिषद और भूमि के मालिकों की उचित सहमति से लिया जाना चाहिए.भले ही असम और मेघालय दोनों ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, लेकिन इस सौदे की संसद और दोनों राज्यों की विधानसभाओं की ओर से पुष्टि की जानी बाकी है. एस पी सिंह ने कहा कि इस मुद्दे को न्यायालय और संसद दोनों में चुनौती दी जा सकती है. हालांकि, इससे पहले कि केंद्र सरकार असम मेघालय समझौते के समर्थन के लिए संसद में सीमा विधेयक लाए, सर्वे ऑफ इंडिया को बाउंड्री मैप को फिर से तैयार करने के लिए अंतर-राज्यीय सीमा का उचित निरीक्षण करने की जरूरत है.