नई दिल्ली : राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणापत्र में 'मुफ्त' (freebies) का वादा करने पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका में एक नया हस्तक्षेप आवेदन (Intervention Application) दायर किया गया है. हस्तक्षेप आवेदन (IA) पहल इंडिया फाउंडेशन (Pahle India Foundation) की ओर से दायर किया गया है.
आवेदक का तर्क है कि राज्यों द्वारा मुफ्त की पेशकश करने के कारण ऊर्जा क्षेत्र, बिजली क्षेत्र सभी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक छत्तीसगढ़, पंजाब, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना राज्यों को उच्चतम सब्सिडी की पेशकश के कारण आर्थिक रूप से कमजोर बताया गया है.
आवेदन में कहा गया है कि 'इन राज्यों में समय के साथ बड़े पैमाने पर बकाया देनदारियां हैं, जिसका असर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) पर पड़ रहा है.' इसमें उत्तरदायी विकास: इक्सीसवीं सदी के लिए एक ऋण और राजकोषीय शीर्षक (Responsive Growth: A Debt and Fiscal Framework for 21st Century India) वाली रिपोर्ट का भी जिक्र किया गया है.
आवेदक ने कहा कि हालांकि फ्रीबीज शब्द को संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन मतदाता को लुभाने के इरादे से किया गया कोई भी वादा धोखाधड़ी है और इसकी व्याख्या इस तरह की जानी चाहिए. याचिकाकर्ता ने अपील की है कि 'कई राज्यों में मुफ्त बिजली का असर दूसरे राज्यों पर पड़ रहा है. इस प्रकार, मुफ्त बिजली को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 के दायरे में लाया जाना चाहिए.'
इसके अलावा उसने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 171बी और धारा 171सी के तहत फ्रीबीज वादों को अपराध के रूप में कवर करने के निर्देश मांगे हैं. इस पर न्यायपालिका, अर्थशास्त्र और सार्वजनिक नीति के विशेषज्ञ सदस्यों सहित उच्चाधिकार प्राप्त समिति से एक रिपोर्ट मांगी गई है.
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