मेरठ: एक तरफ अयोध्या में बन रहे श्री राम के भव्य मंदिर के लिए दुनियाभर से लोग न सिर्फ दिल खोलकर दान कर रहे हैं, बल्कि प्रतीक्षा की जा रही है कि कब मंदिर का निर्माण पूर्ण हो और लोग उनके दर्शन करें. पूजा अर्चना करें. वहीं, रावण की ससुराल के नाम से प्रसिद्ध मेरठ में भगवान श्रीराम का एक ऐसा मंदिर है, जिसमें साढ़े तीन दशक से कोई भी व्यक्ति एक दीपक तक जलाने आज तक नहीं गया.
हालांकी जो मंदिर के पुजारी हैं, वह प्रतिदिन उस धर्मस्थल पर जाते हैं और पूजा अर्चना से लेकर मंदिर की साफ सफाई भी करते हैं. मंदिर के पुजारी आचार्य बाल गोविंद जोशी बताते हैं कि 1989 में उनका परिवार राम मंदिर में आया था. पहले पिताजी मंदिर में पूजा पाठ करते थे, सेवा करते थे. उसके बाद 2014 में पिता के स्वर्गवास के बाद से वह यहां सेवा कर रहे हैं.
हिंदू परिवारों ने क्यों छोड़ दी कॉलोनीः पुजारी आचार्य बाल गोविंद जोशी बताते हैं कि मेरठ के हापुड़ रोड स्थित स्टेट बैंक कॉलोनी में स्थित इस मंदिर के आसपास पहले कई घर हिंदू परिवारों के थे. उसके बाद जब मेरठ में 1987 में दंगे हुए तब से कॉलोनी उजड़नी शुरू हो गई. देखते ही देखते हिंदू यहां से अपनी-अपनी कोठी बेचकर या तो शहर छोड़कर चले गए या फिर शहर में अन्यत्र कहीं और शिफ्ट हो गए.
मंदिर के आसपास कौन लोग रहते हैंः अब मंदिर के आसपास में सिर्फ समुदाय विशेष के ही घर हैं. वह बताते हैं कि पूरी कॉलोनी में सिर्फ एक ही हिंदू परिवार है. पहले कॉलोनी शहर की सबसे महत्वपूर्ण कॉलोनियों में शुमार थी. यहां स्टेट बैंक के कर्मचारी ही रहते थे, लेकिन दंगों के बाद से धीरे -धीरे लोग इस सोसायटी से शिफ्ट होने शुरू हो गए. अब सिर्फ एक ही परिवार कोठी नंबर 26 में रहता है.
कब बना था मेरठ का मंदिरः उन्होंने बताया कि यहां कभी कोई एक दीपक भी जलाने नहीं आया. न कभी किसी ने सुध ही ली. जिस वजह से मंदिर धीरे-धीरे अपनी लोकप्रियता खोता चला गया इस धर्मस्थल का जीर्णोद्धार भी नहीं हो पाया. मंदिर के पुजारी ने बताया कि भगवान श्रीराम का यह भव्य मंदिर 1962 में बना था, जिसमें श्रीराम, लक्ष्मण जी सीता जी के साथ ही हनुमान जी भी विराजमान हैं. साथ ही शेरावाली मां से लेकर भगवान राधा जी और श्री कृष्ण के अलावा मंदिर में शिवलिंग भी स्थापित है.
दंगों का दंश झेल रहा मंदिरः मंदिर के पुजारी बताते हैं कि उन्होंने मंदिर में कभी किसी भक्त को आते कभी नहीं देखा. कह सकते हैं कि दंगों का दंश यह मंदिर झेल रहा है. जिस तरह से 32 दातों के बीच में जीभ रहती है ठीक उसी तरह से वह यहां रहते हैं. मंदिर के पास ही इस्लामाबाद, रहमतपुरा, हापुड़ रोड इलाका है, यहां से दो से तीन किलोमीटर की दूरी तक चारों ओर सिर्फ मुस्लिम आबादी है.
मंदिर में चल रहा है रंग-रोगन का कामः मंदिर में 1987 के बाद कभी पूजा अर्चना के लिए तो कोई आया ही नहीं. इसकी रंगाई पुताई या जीर्णोद्धार के लिए भी कभी कोई आगे नहीं आया. पिछले दिनों एक मुस्लिम परिवार के यहां हलवाई राधेदास भोजन बनाने के लिए अपने साथियों के साथ पहुंचे थे. मुस्लिम बाहुल्य इलाके में मंदिर की चोटी को देखकर उत्सुकता वश वे उसे देखने पहुंचे. इसके बाद पुजारी से राधेदास ने पूरी जानकारी की. जिसके बाद अब राधेदास मंदिर में रंग रोगन करा रहे हैं.
एक हलवाई मंदिर का करा रहा जीर्णोद्धारः मंदिर के पुजारी ने बताया कि उन्होंने राधेदास जी को सहज ही इसके लिए अनुमति दे दी और अब 1987 से जिस मंदिर में कभी कोई पूजा करने ही नहीं गया वहां राधेदास अपने साथियों के साथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने की कोशिश करते देखे जा सकते हैं. राधेदास का कहना है कि उनकी जो भी सामर्थ्य है, उसके अनुसार वह यहां कार्य कराएंगे. राधेदास के भाई भी उनके निर्णय का साथ दे रहे हैं.
क्या अब भक्त आने लगेंगेः हालांकी मंदिर अब बदलाव के बाद अपनी तरफ सभी को आकर्षित कर रहा है, लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि क्या अब यहां भक्त आने लगेंगे. मंदिर के पुजारी का कहना है कि जो लोग मंदिर कमेटी में हैं वह भी दूर-दूर रहते हैं, ऐसे में उन्हीं पर सारी जिम्मेदारी है, वह कोशिश करते हैं कि सुबह शाम नियमित मंदिर खुले, तो उसके लिए वह हमेशा ऐसा करते हैं.