नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने नाबालिग लड़की से दुष्कर्म और उसकी हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को यह कहते हुए रिहा करने का आदेश दिया है कि वह नाबालिग घोषित होने के बावजूद करीब 19 साल से जेल में है.
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के प्रावधानों के अनुसार किसी नाबालिग को तीन साल से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता. पीठ ने कहा, 'याचिकाकर्ता लगभग 18 साल नौ महीने से जेल में बंद है. इस बारे में कोई विवाद नहीं है.'
इसने कहा, 'प्रतिवादी-राज्य की ओर से पेश हुए वकील ने मामले को देखने के लिए समय मांगा है. चूंकि 2014 में किशोर न्याय बोर्ड का एक आदेश पारित हुआ था, जिसमें याचिकाकर्ता को नाबालिग घोषित किया गया था, इसलिए याचिकाकर्ता को और हिरासत में रखने का सवाल ही नहीं उठता.' शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को तुरंत निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत दी जाए. इसने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता सप्ताह में एक बार स्थानीय थाने में उपस्थिति दर्ज कराए.
न्यायालय को बताया गया कि याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया गया था और मौत की सजा सुनाई गई थी. पीठ को यह भी बताया गया कि शीर्ष अदालत ने दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा था. राष्ट्रपति को दया याचिका भेजे जाने के बाद मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था.
शीर्ष अदालत को बताया गया कि जिस समय सुनवाई हुई थी या जब इस अदालत के समक्ष रिट याचिका लंबित थी या राष्ट्रपति को भेजी गई दया याचिका में भी याचिकाकर्ता ने नाबालिग होने का दावा नहीं किया था और बाद में उसने दावा किया कि अपराध के समय वह नाबालिग था. पीठ ने हालांकि उत्तर प्रदेश के आगरा स्थित किशोर न्याय बोर्ड द्वारा पांच फरवरी, 2014 को पारित आदेश के आधार पर व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया. निचली अदालत ने मामले में व्यक्ति को 2003 में दोषी ठहराया था और मौत की सजा सुनाई थी.
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(पीटीआई-भाषा)