आज की प्रेरणा - हनुमान भजन
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योगाभ्यास के द्वारा सिद्धि या समाधि की अवस्था में मनुष्य का मन संयमित हो जाता है. और तब मनुष्य शुद्ध मन से अपने को देख सकता है, अपने आप में ही आनन्द उठा सकता है. समाधि की आनन्दमयी स्थिति में स्थापित मनुष्य कभी सत्य से विपथ नहीं होता और इस सुख की प्राप्ति हो जाने पर वह इससे बड़ा कोई दूसरा लाभ नहीं मानता. समाधि की आनन्ददायी स्थिति को पाकर मनुष्य किसी भी कठिनाई में भी विचलित नहीं होता. यह निस्सन्देह भौतिक संसर्ग से उत्पन्न होने वाले दुःखों से वास्तविक मुक्ति है. जिस प्रकार वायुरहित स्थान में दीपक हिलता-डुलता नहीं, उसी तरह जिस योगी का मन वश में होता है, वह आत्मतत्त्व के ध्यान में सदैव स्थिर रहता है. मनुष्य को चाहिए कि मनोधर्म से उत्पन्न समस्त इच्छाओं को निरपवाद रूप से त्याग दे और मन के द्वारा सभी ओर से इन्द्रियों को वश में करे. धीरे-धीरे, क्रमशः पूर्ण विश्वासपूर्वक बुद्धि के द्वारा समाधि में स्थित होना चाहिए और इस प्रकार मन को आत्मा में ही स्थित करना चाहिए तथा अन्य कुछ भी नहीं सोचना चाहिए. मन अपनी चंचलता तथा अस्थिरता के कारण जहाँ कहीं भी विचरण करता हो, मनुष्य को चाहिए कि उसे वहां से खींचे और अपने वश में लाए. जिस योगी का मन परमात्मा में स्थिर रहता है, वह निश्चय ही दिव्य सुख की सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त करता है. वह रजोगुण से परे होकर, वह परमात्मा के साथ अपनी गुणात्मक एकता को समझता है. योगाभ्यास में निरन्तर लगा रहकर आत्मसंयमी योगी समस्त भौतिक कल्मष से मुक्त हो जाता है और भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में परमसुख प्राप्त करता है. वास्तविक योगी समस्त जीवों में परमात्मा को तथा परमात्मा को समस्त जीवों में देखता है. निस्संदेह स्वरूपसिद्ध व्यक्ति परमेश्वर को सर्वत्र देखता है. जो परमात्मा को सर्वत्र देखता है और सब कुछ परमात्मा में देखता है उसके लिए न तो परमात्मा कभी अदृश्य है और न ही वह परमात्मा के लिए अदृश्य होता है. यहां आपको हर रोज मोटिवेशनल सुविचार पढ़ने को मिलेंगे. जिनसे आपको प्रेरणा मिलेगी.