गर्भपात और मृत जन्म या स्टिलबर्थ ना सिर्फ माता- पिता, बल्कि पूरे परिवार के लिए एक दुखद अनुभव होता है. गर्भावस्था के दौरान, जन्म के समय या उसके तुरंत उपरांत मृत्यु के शिकार हुए बच्चों की याद में तथा गर्भपात के कारणों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल अक्टूबर महीने को 'गर्भावस्था तथा शिशु हानि स्मरण माह' (प्रेगनेंसी एंड इन्फेंट लॉस रिमेंबरेंस मंथ) के रूप में मनाया जाता है.
गर्भावस्था और शिशु हानि स्मरण दिवस का इतिहास
गर्भावस्था और शिशु हानि स्मरण दिवस की स्थापना सर्वप्रथम संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में की गई थी. संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने पहली बार 25 अक्टूबर,1988 को गर्भावस्था और शिशु हानि स्मरण दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी. जिसके उपरांत वर्ष 2000 में रॉबिन बेयर, लिसा ब्राउन और टैमी नोवाक ने 15 अक्टूबर को गर्भावस्था और शिशु हानि स्मरण दिवस के रूप में मान्यता देने के लिए संघीय सरकार को याचिका दी थी. तबसे हर साल पूरे विश्व में 15 अक्टूबर को इस विशेष दिवस के उपलक्ष में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, और अक्टूबर महीने को गर्भावस्था और शिशु हानि स्मरण माह के रूप में मनाया जाता है.
मृत जन्म और गर्भपात में अंतर
रोग नियंत्रण तथा बचाव केंद्र (सीडीसी) के अनुसार मृत जन्म वह अवस्था है, जब शिशु जन्म से पहले मां के गर्भ में या जन्म के दौरान उसकी मृत्यु हो जाती है. वहीं गर्भपात वह अवस्था है, जब गर्भ के दौरान 9 महीनों के बीच किसी भी कारण से भ्रूण की मृत्यु हो जाए. संयुक्त राष्ट्र में प्रचलित गर्भपात की परिभाषा के अनुसार गर्भावस्था के 20 हफ्ते से पहले यदि भ्रूण की मृत्यु हो जाती है, तो वह गर्भपात कहलाती है. वहीं बीसवें हफ्ते के बाद यह मृत जन्म कहलाती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 में लगभग 2.6 मिलियन मृत जन्म के मामले संज्ञान में आए थे, जिनमें मृत्यु का प्रतिदिन का आंकड़ा लगभग 7 हजार 178 था. इनमें से ज्यादातर मामले विकासशील देशों में चिन्हित किए गए थे.
गर्भ में भ्रूण की मृत्यु तथा नवजात मृत्यु के मुख्य कारण
डब्ल्यूएचओ के अनुसार आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान कई ऐसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं, जिनके चलते भ्रूण की मृत्यु माता के गर्भ में ही हो जाती है. इनमें से कुछ मुख्य कारण इस प्रकार से हैं.
बच्चे के जन्म के समय या उससे पहले होने वाली समस्याएं;
⦁ 9 महीने के बाद भी बच्चे का जन्म ना होना.
⦁ गर्भावस्था के दौरान माता को मलेरिया, सिफलिस या एचआईवी जैसे संक्रमण या बीमारी होना.
⦁ माता में हाइपरटेंशन, मोटापा, या मधुमेह जैसे विकारों का होना.
⦁ भ्रूण का सही तरीके से विकास ना होना.
⦁ जन्म के समय बच्चे में पैदाइशी असामान्यता.
⦁ इसके अलावा जन्म के दौरान भी कई बच्चे विभिन्न कारणों से अपनी जान गवां देते हैं.
गर्भपात के कारण
गर्भपात के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार है;
⦁ जीन में असामान्यता.
⦁ क्रोमोजोम में असमानता.
⦁ शराब या ड्रग्स जैसे नशीले पदार्थों का सेवन.
⦁ धूम्रपान.
⦁ हार्मोन संबंधी समस्याएं.
⦁ किसी प्रकार का संक्रमण.
⦁ मधुमेह थायराइड जैसी समस्याएं.
गर्भपात के लक्षण
गर्भावस्था के किसी भी चरण में यदि माता को रक्तस्राव की समस्या होती है, तो उसे तुरंत चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए. इस दौरान बहुत जरूरी है कि बच्चे की सक्रियता यानी शरीर में उसके हिलने डुलने की प्रक्रिया पर ध्यान रखा जाए. यदि पेट में बच्चा बहुत समय तक हिलता डुलता नहीं है, तो भी चिकित्सक से तुरंत परामर्श बहुत जरूरी हो जाता है. इसके अतिरिक्त पेट में या कमर में दर्द तथा कमर में तेज दर्द जैसे लक्षण भी गर्भपात जैसी अवस्था पैदा होने की तरफ इशारा करते हैं.
माता के स्वास्थ्य पर असर
गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की मृत्यु या जन्म के तुरंत उपरांत नवजात की मृत्यु उसके माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों को भावनात्मक तौर पर काफी प्रभावित करती है. सबसे ज्यादा असर बच्चे की माता पर देखा जाता है. ज्यादातर देखा गया है कि बच्चे को खोने के उपरांत उसकी मां में नींद ना आना, भूख ना लगना जैसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण नजर आते हैं. यह अवस्था माता के शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती है. इसलिए बहुत जरूरी है कि यदि मां में पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण नजर आ रहे हैं, तो तुरंत चिकित्सीय सलाह ली जाए.