उदयपुर. आज के आधुनिक चकाचौंध के दौर में मोबाइल और सिनेमा ने लोगों को अपनी और आकर्षित किया है. मगर वक्त के साथ लोग फिर थिएटर और लोक कलाओं से जुड़ने लगे हैं. एक तरफ जहां ग्रीष्मकालीन छुट्टियां होने के कारण स्कूलों में सन्नाटा पसरा हुआ है. दूसरी ओर अब उदयपुर की लोक कला मंडल में 10 दिवसीय समर कैंप को लेकर महिलाओं, बच्चों और पुरुषों में काफी उत्साह देखा जा रहा है. यहां पर पारंपरिक लोकगीत, लोक नृत्य, लोक वादन और कठपुतली कला को सीखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं. इसमें खास बात यह है कि इसमें ना सिर्फ बच्चे बल्कि उनके माता-पिता भी रुचि ले रहे हैं. यहां पर 10 साल के बच्चों से लेकर 45 साल तक के लोग अलग-अलग कलाओं को सीख रहे हैं.
मोबाइल से दूर अब कला का आनंद : मोबाइल को लेकर बच्चों में मोबाइल गेम खेलने में विशेष चलन नजर आ रहा है. वहीं, झीलों की नगरी उदयपुर में अब बच्चे 10 दिवसीय समर कैंप में अपने माता-पिता के साथ अलग-अलग थिएटर में कलाएं सीख रहे हैं. इसमें बच्चे ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता भी बढ़-चढ़कर इन लोक कलाओं को सीखने में रुचि दिखा रहे हैं. वही कैंप में लोक कला मंडल के कलाकारों के द्वारा यहां आने वाले लोगों को नृत्य, लोकगीत, लोक वादन, दस्ताना कठपुतली से जुड़ी हुई कला सिखा रहे हैं.
लोक कला मंडल में 9 से 11 के बीच क्लास : ग्रीष्मकालीन छुट्टियों में भले ही स्कूलों में क्लास नहीं चल रहे हो, लेकिन उदयपुर के लोक कला मंडल में सुबह 9 से लेकर 11 के बीच लोक कलाओं को बढ़ाने की क्लास चल रही है. संस्था निदेशक डॉ. लईक हुसैन ने बताया कि ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण शिविर में 10 वर्ष से अधिक सभी आयु वर्ग के प्रतिभागीयों को लोक नृत्य, लोक गीत, लोक वादन एवं दस्ताना कठपुतली निमार्ण का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि संस्था द्वारा आयोजित किये जा रहे ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने लिए इच्छुक सभी आयु वर्ग के प्रतिभागी प्रातः 9 बजे से 11 बजे तक पहुंच रहे हैं. उन्होंने बताया कि शिविर के समापन अवसर पर समापन समारोह का आयोजन किया जाएगा, जिसमें प्रतिभागियों को प्रशिक्षण के पश्चात रंगमंच पर प्रदर्शन देने का अवसर मिलेगा.
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थिएटर पहुंचे लोगों का क्या कुछ कहना : जयपुर से उदयपुर के लोक कला मंडल पहुंची अदिति जैन ने बताया कि किसी भी बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए कोई भी परफॉर्मिंग आर्ट को जानना जरूरी होता है. उन्होंने बताया कि थिएटर एक ऐसी कला है, जो आपको किसी किरदार को जानने और समझने की शक्ति प्रदान करता है. उन्होंने कहा कि आज के दौर में बच्चे मोबाइल और टेलीविजन पर काफी समय व्यतीत करते हैं. जिससे उनकी सेहत और आंखों पर काफी गहरा असर पड़ता है. इतना समय देने के बावजूद भी बच्चे कुछ ऐसा नहीं सीख पाते.
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एक अलग सुकून देता थिएटर : राजस्थान मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रमेश बोराणा ने बताया कि जीवंत मीडिया का भले ही अपना एक प्रभाव होता है. लेकिन थिएटर एक जीवंत विधा है. जब दर्शक और कलाकार थिएटर में आमने-सामने होते हैं, तो दोनों के बीच एक अलग सी केमिस्ट्री और सुकून देखने को मिलता है. उन्होंने कहा कि टेलीविजन और मोबाइल और अन्य उपकरण भले ही मनोरंजन कर सकते हो, लेकिन आनंद की अनुभूति रंगमंच और ऐसे जीवंत माध्यम से ही मिल सकती है.