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SPECIAL: उदयपुर में 500 साल से पानी पर बन रही जल सांझी, भगवान कृष्ण की लीलाओं को देखने आते हैं विदेशी सैलानी

उदयपुर में पिछले 500 सालों से (500 years old art of Udaipur) एक ऐसी कला को संवारा जा रहा है, जिसे देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे. आपने कैनवास और दीवारों पर चित्रकारी तो दिखी होगी, लेकिन आज हम बात करेंगे पानी में की जाने वाली पेंटिंग की.

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500 साल से पानी पर बन रही जल सांझी
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Published : Sep 25, 2022, 12:05 AM IST

Updated : Sep 25, 2022, 12:13 AM IST

उदयपुर: झीलों की नगरी उदयपुर (city ​​of lakes udaipur) में पिछले 500 सालों से एक ऐसी कला को संवारा जा रहा है, जिसे देखकर आप भी इसके दीवाने हो जाएंगे. खैर, आप कैनवास और दीवारों पर चित्रकारी देखे होंगे, लेकिन आज हम उदयपुर की उस अनोखी व अद्भुत कला की बात करने जा रहे हैं, जो पिछले 500 सालों से जिले की समृद्ध विरासत (Udaipur rich art heritage) को खुद में समेटे हुए हैं. यहां पानी के बर्तन में चित्र बनाया जाता है, जो ना सिर्फ अद्भुत दिखाई देता है, बल्कि पात्र के हिलने पर लहरों सा तैरता प्रतीत होता है.

वर्तमान में इस कला को जिले के दो परिवारों ने संभाल रखा है. इस काम में संलिप्त परिवार के लोगों ने बताया कि उनकी 18 पीढ़ियां इसी काम को कर अपना भरण-पोषण करते आई हैं और यह काम अब उनकी जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है. दरअसल, श्राद्ध पक्ष के दौरान उदयपुर में पानी में तैरती कलाकृतियां (Artifacts floating in the water of Udaipur) देखने को मिलती है. जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की अलग-अलग चित्र बनाए होते हैं.

उदयपुर में 500 साल से पानी पर बन रही जल सांझी.

साथ ही पानी पर बनने वाली इस कला को सांझी कहा जाता है. हालांकि, पानी में पेंटिंग बनाना इतना आसान नहीं है. जल पात्र में पानी को स्थिर रखना और इसके बाद पानी पर कोयले और सूखे रंगों के परत बिछाई जाती है. वहीं, एक जल सांझी तैयार करने में 6 से 10 घंटे तक लग जाते हैं.

इन 2 मंदिरों में बनाई जाती सांझी: शहर के जगदीश चौक में स्थित गोवर्धन नाथजी के मंदिर (Govardhan Nathji Temple) और जगदीश मार्ग स्थित राधावल्लभ जी मंदिर में बरसों से जल सांझी बन रही है. 60 साल के राजेश वैष्णव बताते हैं कि जल सांझी में कृष्ण लीलाओं का चित्रांकन किया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण के बाल लीलाओं की पेंटिंग को बनाना आसान नहीं होता है, क्योंकि जल पात्र में पानी को स्थिर रखना होता है. जरा सी भी हवा चली तो पूरी मेहनत बर्बाद हो जाती है. जल सांझी तैयार करने से पहले मंदिर के सभी दरवाजे, खिड़कियां बंद कर दी जाती है. वहीं, पर्दे लगा दिए जाते हैं.

इसे भी पढ़ें - SPECIAL : बीकानेर की उस्ता कला पर उदासीनता की गर्द..रियासतकालीन आर्ट को संरक्षण की दरकार

चित्रकार राजेश वैष्णव ने बताया कि उनकी 18 पीढ़ियां इस कला को संवारने के साथ ही सांझी बनाने का काम कर रही है. उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी इसी काम में लगी रही है. यह सांझी श्राद्ध पक्ष में ही बनती है, क्योंकि श्राद्ध पक्ष में कोई शुभ कार्य नहीं होता है. इस दौरान कुंवारी कन्या अच्छे वर के लिए गोबर की सांझी बनाती है. लेकिन उदयपुर के इन मंदिरों में पानी पर सांझी बनाई जाती है. सांझी में कृष्ण के जन्म से लेकर सभी लीलाओं को दर्शाया जाता है. जिसे देखने के लिए विदेशों से भी भारी संख्या में लोग यहां आते हैं.

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500 साल से पानी पर बन रही जल सांझी

5 दिन तक बनाई जाती है सांझी: भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर अश्विनी मास की अमावस्या तक यह बनाई जाती है. इन 5 दिनों में अलग-अलग चित्र पानी में बनाए जाते हैं. हालांकि, अमावस्या के अंतिम दिन जल सांझी को बर्तन के पेंदे में उकेरा जाता है. ऐसे पानी भर दिया जाता है. जिससे पहले 4 दिनों तक ये चित्र बर्तन के ऊपरी हिस्से में दिखाई देती है तो अंतिम दिन बर्तन के पेंदे में चित्र को उकेरा जाता है.

इसे बनाने में लग जाता है 7-9 घंटे का वक्त: इसको बनाने में करीब 7 से 9 घंटे लग जाते हैं. वहीं, इसके लिए विशेष सावधानी भी बरतनी पड़ती है. पेंटिंग बनाने से पहले जल पात्र में पानी को स्थिर रखना होता है. ऐसे में जरा सी हवा पूरी मेहनत को बर्बाद करने को काफी होती है.

ऐसे हुई परंपरा की शुरुआत: यह परंपरा गुजरात के ब्रज से शुरू हुई, जो आगे चलकर गुजरात में एक पर्व बन गया. जिसका खास तौर पर श्राद्ध पक्ष में आयोजन होता है. वहीं गुजरात से 500 साल पहले यह परंपरा मेवाड़ आई. ऐसे में हर साल यहां श्राद्ध पक्ष के दौरान 5 दिनों तक विशेष कार्यक्रम होता है.

धर्म और कला का संगम है सांझी: वरिष्ठ पत्रकार सनत जोशी ने सांझी को धर्म और कला का संगम करार दिया. उन्होंने कहा कि आज इस कला को बचाने और संवारने के लिए सरकार को खास तौर पर कदम उठाने जरूरत है. एक पूरी सांझी बनाने के लिए 2500 तक का खर्च आता है. साथ इसे बनाने में 7-9 घंटे तक लग जाते हैं.

उदयपुर: झीलों की नगरी उदयपुर (city ​​of lakes udaipur) में पिछले 500 सालों से एक ऐसी कला को संवारा जा रहा है, जिसे देखकर आप भी इसके दीवाने हो जाएंगे. खैर, आप कैनवास और दीवारों पर चित्रकारी देखे होंगे, लेकिन आज हम उदयपुर की उस अनोखी व अद्भुत कला की बात करने जा रहे हैं, जो पिछले 500 सालों से जिले की समृद्ध विरासत (Udaipur rich art heritage) को खुद में समेटे हुए हैं. यहां पानी के बर्तन में चित्र बनाया जाता है, जो ना सिर्फ अद्भुत दिखाई देता है, बल्कि पात्र के हिलने पर लहरों सा तैरता प्रतीत होता है.

वर्तमान में इस कला को जिले के दो परिवारों ने संभाल रखा है. इस काम में संलिप्त परिवार के लोगों ने बताया कि उनकी 18 पीढ़ियां इसी काम को कर अपना भरण-पोषण करते आई हैं और यह काम अब उनकी जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है. दरअसल, श्राद्ध पक्ष के दौरान उदयपुर में पानी में तैरती कलाकृतियां (Artifacts floating in the water of Udaipur) देखने को मिलती है. जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की अलग-अलग चित्र बनाए होते हैं.

उदयपुर में 500 साल से पानी पर बन रही जल सांझी.

साथ ही पानी पर बनने वाली इस कला को सांझी कहा जाता है. हालांकि, पानी में पेंटिंग बनाना इतना आसान नहीं है. जल पात्र में पानी को स्थिर रखना और इसके बाद पानी पर कोयले और सूखे रंगों के परत बिछाई जाती है. वहीं, एक जल सांझी तैयार करने में 6 से 10 घंटे तक लग जाते हैं.

इन 2 मंदिरों में बनाई जाती सांझी: शहर के जगदीश चौक में स्थित गोवर्धन नाथजी के मंदिर (Govardhan Nathji Temple) और जगदीश मार्ग स्थित राधावल्लभ जी मंदिर में बरसों से जल सांझी बन रही है. 60 साल के राजेश वैष्णव बताते हैं कि जल सांझी में कृष्ण लीलाओं का चित्रांकन किया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण के बाल लीलाओं की पेंटिंग को बनाना आसान नहीं होता है, क्योंकि जल पात्र में पानी को स्थिर रखना होता है. जरा सी भी हवा चली तो पूरी मेहनत बर्बाद हो जाती है. जल सांझी तैयार करने से पहले मंदिर के सभी दरवाजे, खिड़कियां बंद कर दी जाती है. वहीं, पर्दे लगा दिए जाते हैं.

इसे भी पढ़ें - SPECIAL : बीकानेर की उस्ता कला पर उदासीनता की गर्द..रियासतकालीन आर्ट को संरक्षण की दरकार

चित्रकार राजेश वैष्णव ने बताया कि उनकी 18 पीढ़ियां इस कला को संवारने के साथ ही सांझी बनाने का काम कर रही है. उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी इसी काम में लगी रही है. यह सांझी श्राद्ध पक्ष में ही बनती है, क्योंकि श्राद्ध पक्ष में कोई शुभ कार्य नहीं होता है. इस दौरान कुंवारी कन्या अच्छे वर के लिए गोबर की सांझी बनाती है. लेकिन उदयपुर के इन मंदिरों में पानी पर सांझी बनाई जाती है. सांझी में कृष्ण के जन्म से लेकर सभी लीलाओं को दर्शाया जाता है. जिसे देखने के लिए विदेशों से भी भारी संख्या में लोग यहां आते हैं.

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500 साल से पानी पर बन रही जल सांझी

5 दिन तक बनाई जाती है सांझी: भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर अश्विनी मास की अमावस्या तक यह बनाई जाती है. इन 5 दिनों में अलग-अलग चित्र पानी में बनाए जाते हैं. हालांकि, अमावस्या के अंतिम दिन जल सांझी को बर्तन के पेंदे में उकेरा जाता है. ऐसे पानी भर दिया जाता है. जिससे पहले 4 दिनों तक ये चित्र बर्तन के ऊपरी हिस्से में दिखाई देती है तो अंतिम दिन बर्तन के पेंदे में चित्र को उकेरा जाता है.

इसे बनाने में लग जाता है 7-9 घंटे का वक्त: इसको बनाने में करीब 7 से 9 घंटे लग जाते हैं. वहीं, इसके लिए विशेष सावधानी भी बरतनी पड़ती है. पेंटिंग बनाने से पहले जल पात्र में पानी को स्थिर रखना होता है. ऐसे में जरा सी हवा पूरी मेहनत को बर्बाद करने को काफी होती है.

ऐसे हुई परंपरा की शुरुआत: यह परंपरा गुजरात के ब्रज से शुरू हुई, जो आगे चलकर गुजरात में एक पर्व बन गया. जिसका खास तौर पर श्राद्ध पक्ष में आयोजन होता है. वहीं गुजरात से 500 साल पहले यह परंपरा मेवाड़ आई. ऐसे में हर साल यहां श्राद्ध पक्ष के दौरान 5 दिनों तक विशेष कार्यक्रम होता है.

धर्म और कला का संगम है सांझी: वरिष्ठ पत्रकार सनत जोशी ने सांझी को धर्म और कला का संगम करार दिया. उन्होंने कहा कि आज इस कला को बचाने और संवारने के लिए सरकार को खास तौर पर कदम उठाने जरूरत है. एक पूरी सांझी बनाने के लिए 2500 तक का खर्च आता है. साथ इसे बनाने में 7-9 घंटे तक लग जाते हैं.

Last Updated : Sep 25, 2022, 12:13 AM IST
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