उदयपुर. प्रदेश में होली का पर्व नजदीक आने के साथ ही अब होली का रंग भी चढ़ने लगा है.मेवाड़ में भी होली का अपना एक विशेष इतिहास और महत्व है.झीलों की नगरी उदयपुर में होली मनाने के लिए देश-दुनिया से सैलानी पहुंचते हैं.यहां की होली में चार-चांद लगाती है सिटी पैलेस होली.जिसे देखने के लिए देश-दुनिया से लोग पहुंचते हैं. उदयपुर के सिटी पैलेस में होली का अपना एक विशेष महत्व और इतिहास है. जहां आज भी प्राचीन संस्कृति का निर्वहन विधि-विधान के साथ किया जा रहा हैं.यहां हजारों वर्ष पुरानी होली की परंपरा निर्वहन आज भी पूरे शाही ठाठ-बाट के साथ निभाया जा रहा है.
उदयपुर के सिटी पैलेस में होता शाही आयोजनः उदयपुर की सिटी पैलेस में होली की तैयारियां कुछ महीने पहले से ही शुरू हो जाती है. इस शाही होली में शामिल होने के लिए न सिर्फ भारत से बल्कि दुनिया से लोग इसे देखने के लिए पहुंचते हैं. इसके लिए पूर्व राजघराने के सदस्य भी अपनी परंपरागत वेशभूषा में सज-धज कर होली के कार्यक्रम में शिरकत करते हैं. वहीं शाही लवाजमे के साथ मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के सदस्य माणक चौक पहुंचते हैं.यहां आज भी हजारों वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वहन उसी शाही ठाठ-बाट से निभाया जा रहा है. जैसे सदियों पुरानी परंपरा चली आ रही है. इस आयोजन में मेवाड़ की संस्कृति सभ्यता और यहां के रीति-रिवाज की झलक देखने को मिलती है. यहां घोड़ों पर सिपाही सजी-धजी पोशाक में घुड़सवारी सेना का नेतृत्व करते हैं.
होली के आयोजन में झूम उठते हैं विदेशी सैलानीः उदयपुर के सिटी पैलेस में होली के आयोजन में बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी भी पहुंचते हैं. होलिका के दहन के बाद सिटी पैलेस के माणक चौक में गैर नृत्य का आयोजन किया जाता है. जिसमें विदेशी सैलानी भी झूमते नाचते हुए नजर आते हैं.राजस्थानी और मेवाड़ की संस्कृति में सरोबकार करते हुए दिखाई देते हैं. इससे पहले म्यूजिक बैंड बाजों के साथ शाही लवाजमा शंभू निवास पैलेस से शुरू होता और मानक चौक शाही निवास तक आता है. शाही लवाजमे के साथ पूर्व राजघराने के सदस्य शाही सवारी में सवार होकर माणक चौक पहुंचते हैं. इस दौरान ढोल-नगाड़े की गूंज सुनाई देती है. शाही बग्गी में राजघराने के सदस्य बैठे रहते हैं.जिसके बाद होली की विशेष पूजा आराधना करने के बाद होलिका दहन का कार्यक्रम शुरू होता है. होली दहन के बाद जमकर आतिशबाजी की जाती है.
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विशेष इतिहास और महत्व है मेवाड़ की होली काः इतिहासकार श्रीकृष्ण जुगनू ने बताया कि मेवाड़ में होली का अपना एक विशेष इतिहास और महत्व है. इसे महाराणा की होली के रूप में देखा जाता है. इसके लिए विशेष सम्मान और महत्व रहता है. होली को मांह पूर्णिमा पर खड़ा किया जाता है. जबकि फागण की पूर्णिमा पर इसका दहन किया जाता है. इसके लिए विशेष मुहूर्त देखा जाता है. जिसमें बदरा तिथि को डालते हुए विशेष मुहूर्त में दहन होता है. इसके पीछे यही मकसद कि पूरी रियासत और प्रजा में सुख समृद्धि का वास हो.