उदयपुर. प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल मनोनीत किया गया है. लेकिन कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद अब मेवाड़ में पार्टी की सियासी कमान संभालने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि कटारिया मेवाड़ भाजपा के कद्दावर नेताओं में शामिल रहे हैं. उनका उदयपुर संभाग के सभी 28 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रहा है और इसका भाजपा को चुनाववार लाभ भी मिलता रहा है. लेकिन अब कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद मेवाड़ के सियासी समीकरण में बदलाव के आसार पर चर्चा शुरू हो गई है.
इसी साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, जिसको लेकर सत्ताधारी कांग्रेस के साथ ही भाजपा व अन्य विपक्षी पार्टियों की ओर से तैयारियां शुरू हो गई हैं. वहीं, साल 2003 से ही उदयपुर शहर विधानसभा सीट से कटारिया चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचते रहे हैं. लेकिन अब उनके राज्यपाल बनने के बाद इस सीट से पार्टी किसे प्रत्याशी बनाएंगी, इसको लेकर भी सियासी चर्चाएं चरम पर है.
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क्या अब बदलेंगे मेवाड़ के सियासी समीकरण - दक्षिणी राजस्थान का ये आदिवासी बाहुल्य इलाका मेवाड़ की सियासत में अपना विशेष महत्व रखता है. इस इलाके से आने वाले भाजपा के कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया अब असम के राज्यपाल मनोनीत हो गए हैं. कहा जाता है कि कटारिया इस क्षेत्र की सियासी नब्ज को बखूबी समझते हैं. वे अपने विधानसभा सीट के इतर अन्य सीटों पर भी खासा प्रभाव रखते थे और 2003 से लगातार 8 बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचते रहे. उदयपुर संभाग में कुल 28 विधानसभा सीटें हैं. इसमें से करीब 20 सीटें ऐसी हैं, जिस पर कटारिया की पसंद और ना पसंद खासा महत्व रखती है. आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में कटारिया के अथक प्रयासों से पार्टी मजबूत हुई है. लेकिन किसी समय यहां कांग्रेस का बोलबाला था.
कांग्रेस को फायदे की उम्मीद - दरअसल, मेवाड़ की उदयपुर विधानसभा सीट भाजपा का अभेद्य किला है. यहां से नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया 2003 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. यहां उनके सामने कोई भी कांग्रेसी नेता टीक नहीं पाता. लेकिन अब कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद भाजपा में भी उनके कद का कोई नेता उदयपुर में दिखाई नहीं दे रहा है. हालांकि, पार्टी में टिकट के दावेदारों की संख्या जरूर बढ़ गई है. साथ ही कटारिया के विरोधी भी सक्रिय हो गए हैं.
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क्या रणधीर सिंह भींडर की होगी भाजपा में वापसी - नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के धुर सियासी विरोधी रहे रणधीर सिंह भींडर की भाजपा में वापसी के चर्चे तेज हैं. दोनों नेताओं की पुरानी सियासी अदावत है. जनता सेना सुप्रीमो रणधीर सिंह भींडर पिछले लंबे समय से कटारिया का विरोध करते रहे हैं. हालांकि, फिलहाल उनको लेकर सियासी गलियारों तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं. लेकिन अभी तक भींडर की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. भींडर वसुंधरा राजे के करीबी नेताओं में से एक हैं. लेकिन इस बार के उपचुनाव में रणधीर सिंह भींडर को भी हार मिली थी. इससे पहले भी उन्हें भाजपा में लाने को लेकर कई नेताओं के बयान सुर्खियों में रहे, लेकिन नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया की सहमति न होने की सूरत में उनकी पार्टी में वापसी संभव नहीं हो पाई.
कटारिया का सियासी प्रभुत्व - प्रदेश के सियासी जानकार बताते हैं कि उदयपुर संभाग की सभी विधानसभा सीटों की नब्ज कटारिया बखूबी समझते हैं. यही कारण है कि चुनावों में टिकट वितरण से पहले पार्टी उनसे राय लेती रही है. उदयपुर संभाग के राजसमंद, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा और उदयपुर की विधानसभा सीटों के साथ ही पांच लोकसभा सीटों पर भी कटारिया का सियासी प्रभुत्व माना जाता है.
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आदिवासी सीटें अहम - मेवाड़ आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है. आदिवासी बाहुल्य मेवाड़ में पांच लोकसभा सीटें और सात जिले हैं. विधानसभा के लिहाज से मेवाड़ में 28 विधानसभा सीटें हैं. जिनमें 17 सीटें अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. इनमें उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर शामिल हैं. राजस्थान की राजनीति में मेवाड़ का अपना दबदबा रहा है. अगर कोई पार्टी यहां 18-20 सीटें भी जीत लेती है तो बहुमत के आंकड़े यानी 101 पर पहुंचना आसान हो जाता है. यही वजह है कि भाजपा अपना किला बचाने की जुगत में लगी है. जबकि कांग्रेस भी अपने पैर मजबूती से जमाने की कोशिश में जुटी है. इन परिस्थितियों में मेवाड़ और खासकर उदयपुर अहम है.
साल 1998 से लेकर अब तक - 2008 में परिसीमन के बाद उदयपुर संभाग की विधानसभा सीटें घटकर 28 हो गई. इससे पहले सीटों की संख्या 30 थी. साल 1998 में कुल सीटें 30 थीं, जिसमें कांग्रेस को 23, भाजपा को 4 और अन्य के खाते में 3 सीटें गईं थी. वहीं, 2003 में कांग्रेस को 7, भाजपा को 21 और अन्य को दो सीटों पर जीत मिली थी. 2008 में कुल सीटें सिमट कर 28 हो गई, जिनमें कांग्रेस को 20, भाजपा को 6 और अन्य को 2 सीटें हासिल हुई थीं. इसके बाद 2013 में यहां कांग्रेस को 2, भाजपा को 25 और अन्य के खाते में 1 सीट गई थी. पिछले विधानसभा यानी 2018 में यहां कांग्रेस को 10, भाजपा को 15 और अन्य को 3 सीटों पर जीत मिली थी.