उदयपुर. झीलों की नगरी उदयपुर में 10 दिवसीय लोक संस्कृति के अनूठे पर्व शिल्पग्राम महोत्सव का आगाज हो चुका है. ऐसे में देश के कोने-कोने से आए कलाकार और शिल्पकार अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं. शिल्पग्राम महोत्सव में ही चार चांद लगा रहे हैं 82 वर्ष के छह फुट लंबी मूंछ वाले रामनाथ चौधरी (Bassoon player Ramnath Chowdhary in Shilpgram) जो अपनी अद्भुत कला से सभी को मुग्ध करने के साथ हैरान भी कर रहे हैं. रामनाथ चौधरी नाक से अलगोजा बजा रहे हैं जिसे देखकर शिल्पग्राम आने वाले पर्यटक दंग रह जा रहा हैं. रामनाथ नाक से अलगोजा बजाकर कई धुनें भी निकाल रहे हैं.
अक्सर आपने कलाकारों को मुंह से अलगोजा या बांसुरी बजाते हुए सुना होगा लेकिन जयपुर के गांव बाड़ा पदमपुरा निवासी और अंतरराष्ट्रीय कलाकार रामनाथ चौधरी इस वाद्य यंत्र को ना से बजा रहे हैं. पिछले 60 सालों से वे नाक से अलगोजा बजा रहे हैं. इस कला को संजोने के लिए इनकी तीन पीढ़ियां वर्षों से काम कर रही है. ऐसे में इनकी कला के दीवाने आम आदमी से लेकर कई बड़े राजनेता तक हैं.
सुर सुनकर आप भी हो जाएंगे मोहित
उदयपुर के शिल्पग्राम में भी इनकी इस अनूठी कला को देखकर हर कोई मंत्र मुग्ध हो जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय कलाकार रामनाथ चौधरी ने जब नाक से अलगोजा बजाना शुरू किया तो शिल्पग्राम आने वाले पर्यटक उनके हुनर को देख दंग रह गए. उनके आसपास भीड़ जुट गई. युवाओं की टोली भी उनके हुनर की तारीफ करते नहीं थकता था. रामनाथ ने मुंह और नाक से अलगोजा बजाने में महारत हासिल कर रखी है. इसके साथ ही रामनाथ की छह-छह फुट लंबी मूंछों के प्रति मेलार्थियों का खास आकर्षण बना हुआ है.
8 वर्ष की उम्र में रामनाथ चौधरी ने इस कला को सिखा
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान रामनाथ चौधरी ने बताया कि उनकी तीन पीढ़ियां अलगोजा बजाने का काम करती है. उन्हें यह कला उनके दादा ने सिखाई थी. पुराना दिनों को याद करते हुए रामनाथ बताते हैं कि जब मैं 8 वर्ष का था तो एक बाद खेत में गया था. तब मेरे दादाजी अलगोजा बजा रहे थे. तब मैंने दादा जी से अलगोजा सीखने की जिद्द की. उस उम्र में मैं भेड़ बकरी चराया करता था, लेकिन कठिन लगन और राज अभ्यास करते रहने से उस उम्र में भी अलगोजा बजाना सीख गया.
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नाक से अलगोजा बजाने की ऐसे हुई शुरुआत
रामनाथ चौधरी ने बताया कि एक दिन खेत में काम करने के दौरान वह अलगोजा बजा रहे थे. अलगोजा मुंह के पास में नहीं जाकर नाक में चला गया. जैसे ही सांस खींची तो अलगोजा बज गया. उसके बाद मैंने अलगोजा नाक से बजाना शुरू कर दिया. उन्होंने बताया कि अलगोजा बजाना इतना (Ramnath play Bassoon from nose) आसान नहीं था क्योंकि मुंह से बजाने और नाक से बजाने में बहुत अंतर होता है. नाक से अलगोजा बजाने में बार-बार नाक से खून निकलना और अन्य कई समस्याएं आती थीं, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने इस कला में पारंगत हासिल कर ली. यही वजह है कि आज देश दुनिया में अलगोजा बजाने में उनका नाम सबसे ऊपर आता है.
दुनिया भर में रामनाथ का डंका
रामनाथ चौधरी अब तक अमेरिका, जर्मनी, दुबई, ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित एक दर्जन से ज्यादा देशों में अलगोजा के सुरों और अपनी मूंछों का प्रदर्शन कर चुके हैं. इतनी लंबी मूंछों के बारे में रामनाथ बताते हैं कि जब में 11 साल का था तब एक दिन हम सब परिवार के लोग एक साथ बैठे हुए थे. अलग-अलग मुद्दों पर वहां बातें हो रहीं थी. तभी अचानक मेरे दादा ने मेरी तरफ देखकर कहा बेटा रामनाथ इन मूछों को तू कभी मत काटना, ये मूछें तुझे देश-विदेश में विशेष स्थान दिलाएगी.
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मुख्यमंत्री गहलोत व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी हुए थे मुरीद
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के सामने इनकी कला का प्रदर्शन करवाया था. प्रदर्शनी में मैंने मेरी दोनों तरफ की मूंछें तेरह-तेरह फुट खोल कर दिखाई और अलगोजा वादन का प्रदर्शन किया. उस प्रोग्राम में मेरा घोड़ी के ऊपर दोनों तरफ लहराती मूछें, सिर पर साफा, नाक से अलगोजा वादन किसी अजूबे से कम नहीं दिख रहा था. इसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मेरे परिवार के बारे में पूरी जानकारी ली. अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को मेरी कला ने इतना मोहा कि वह अपने साथ मुझे अमेरिका लेकर गए.
अलग-अलग सुर और भजन निकालते हैं...
इस अद्भुत कला के धनी रामनाथ अलगोजा से अलग-अलग धुन निकालते हैं. इसमें वीर तेजाजी महाराज, भेरुजी, माताजी और डिग्गी कल्याण के साथ अलग-अलग कहानियां भी वह शिल्पग्राम आने वाले पर्यटकों को गा-गाकर सुनाते हैं.
राज्य वाद्य यंत्र है अलगोजा
दरअसल अलगोजा राजस्थान का राज्य वाद्ययंत्र है. यह बांसुरी की तरह ही होता है जिसे बांस, पीतल या अन्य किसी भी धातु से बनाया जा सकता है. अलगोजा में स्वरों के लिए 6 छेद होते हैं जिनकी दूरी स्वरों की शुद्धता के लिए निश्चित होती है. रामनाथ दो अलगोजा मुंह में रखकर उन्हें एक साथ बजाता है. एक अलगोजे पर स्वर कायम रखे जाते हैं और दूसरे पर स्वर बताए जाते हैं.