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जहां चाह वहां राह: घर में फोटो नहीं थी, मिट्टी से ही बना डाली महाराणा प्रताप की मूर्ति और मनाई जयंती - khareda village

महाराणा प्रताप की जयंती पर जब लॉकडाउन के दौरान किसी समारोह में शिरकत न कर सके. न ही घर या अपने गांव में महाराणा प्रताप की तस्वीर मिली, तो टोंक जिले के खरेड़ा गांव में रहने वाले तरुण राज सिंह राजावत ने काली मिट्टी लेकर अपने हाथों से प्रतिमा बनाकर संदेश दिया कि 'जहां चाह है वहां है राह' और 'आवश्यकता आविष्कार की जननी' है.

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मिट्टी से ही बना डाली महाराणा प्रताप की मूर्ति
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Published : May 25, 2020, 5:39 PM IST

टोंक. खरेड़ा गांव के रहने वाले पेशे से शिक्षक तरुण राज सिंह राजावत हर बार महाराणा प्रताप की जयंती मनाने के लिए या तो किसी समारोह में आमंत्रित होते थे, या वे अपने स्कूल में जयंती मनाते थे. महाराणा प्रताप के जीवन पर अपने विचार व्यक्त करते थे, लेकिन इस बार कोराना महामारी के चलते लॉकडाउन के कारण कहीं भी जयंती समारोह का आयोजन नहीं हुआ.

मिट्टी से ही बना डाली महाराणा प्रताप की मूर्ति

ऐसे में राजावत ने अपने आस-पास से काली मिट्टी इकट्ठा करके महाराणा प्रताप की मूर्ति बनाने का कार्य शुरू किया. महज कुछ घंटों में ही महाराणा प्रताप की मूर्ति बनाई. आश्चर्य की बात यह है कि राजावत ने इससे पहले कोई मूर्ति नहीं बनाई और न ही किसी प्रकार की मूर्ति बनाने के औजार काम में लिए. उन्होंने अपने हाथों को ही औजार बनाकर मूर्ति को एक जीवंत रूप प्रदान किया. इस मूर्ति को देखने के बाद लोगों ने कहा कि यह किसी दक्ष मूर्तिकार ने बनाई है.

यह भी पढ़ेंः लॉकडाउनः टोंक में खरबूज-तरबूज की खेती पर लगा 'कोरोना ग्रहण', किसान परेशान

राजावत का महाराणा प्रताप कि मूर्ति बनाने के पीछे यह उद्देश्य है कि हम घर पर रहें सुरक्षित रहें. सरकार के आदेशों की पालन करें और महापुरुषों को याद करें. उनके विचारों को आगे बढ़ाएं. राष्ट्र सबसे पहले है और कोई कार्य असंभव नहीं है. व्यक्ति अगर निश्चय कर ले तो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद ही व दम लेता है. जैसे राजावत ने दीप प्रज्जवलित और पुष्पअर्पित कर महाराणा प्रताप की 480वीं जयंती पर नमन किया तथा ये संदेश दिया है कि ठान लो तो जीत है और मान लो तो हार है.

टोंक. खरेड़ा गांव के रहने वाले पेशे से शिक्षक तरुण राज सिंह राजावत हर बार महाराणा प्रताप की जयंती मनाने के लिए या तो किसी समारोह में आमंत्रित होते थे, या वे अपने स्कूल में जयंती मनाते थे. महाराणा प्रताप के जीवन पर अपने विचार व्यक्त करते थे, लेकिन इस बार कोराना महामारी के चलते लॉकडाउन के कारण कहीं भी जयंती समारोह का आयोजन नहीं हुआ.

मिट्टी से ही बना डाली महाराणा प्रताप की मूर्ति

ऐसे में राजावत ने अपने आस-पास से काली मिट्टी इकट्ठा करके महाराणा प्रताप की मूर्ति बनाने का कार्य शुरू किया. महज कुछ घंटों में ही महाराणा प्रताप की मूर्ति बनाई. आश्चर्य की बात यह है कि राजावत ने इससे पहले कोई मूर्ति नहीं बनाई और न ही किसी प्रकार की मूर्ति बनाने के औजार काम में लिए. उन्होंने अपने हाथों को ही औजार बनाकर मूर्ति को एक जीवंत रूप प्रदान किया. इस मूर्ति को देखने के बाद लोगों ने कहा कि यह किसी दक्ष मूर्तिकार ने बनाई है.

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राजावत का महाराणा प्रताप कि मूर्ति बनाने के पीछे यह उद्देश्य है कि हम घर पर रहें सुरक्षित रहें. सरकार के आदेशों की पालन करें और महापुरुषों को याद करें. उनके विचारों को आगे बढ़ाएं. राष्ट्र सबसे पहले है और कोई कार्य असंभव नहीं है. व्यक्ति अगर निश्चय कर ले तो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद ही व दम लेता है. जैसे राजावत ने दीप प्रज्जवलित और पुष्पअर्पित कर महाराणा प्रताप की 480वीं जयंती पर नमन किया तथा ये संदेश दिया है कि ठान लो तो जीत है और मान लो तो हार है.

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