सादुलशहर (श्रीगंगानगर ). एक तरफ तो प्रदेश सरकार राजस्थान को शिक्षा का हब बनाने का दावा करती है. वहीं दूसरी तरफ शिक्षा विभाग की अनदेखी और अधिकारियों की लापरवाही के चलते सादुलशहर का सार्वजनिक पुस्तकालय दुर्दशा का शिकार हो गया है. सादुलशहर में राजकीय उच्च माध्यमिक विधालय में दो पुस्तकालय हैं, एक स्कूल के अंदर है. जिससे विद्यार्थियों को पुस्तके दी जाती है. तो दूसरा विद्यालय के बाहर स्तिथ है. जिससे आमजन सुविधा प्राप्त करते है. लेकिन उचित देखभाल के अभाव में हालत बद से बदतर हो चुके हैं.
लोग तनाव दूर करने के लिए वाचनालय आते हैं, लेकिन सादुलशहर के पुस्तकालय में उन्हें वह सामग्री नहीं मिलती, जिसकी उन्हें जरूरत है. सौम्य शांत वातावरण और अच्छी पुस्तकें कहीं उपलब्ध नहीं हैं. छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में भी पीछे हैं. ऐसे में राजभाषा एवं पुस्तकालय विभाग जयपुर द्वारा साल 2007 में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के परिसर के बाहर राजकीय सार्वजनिक पुस्तकालय शुरू किया गया था. जिसका उद्देश्य समाज मे शिक्षा चेतना को बढ़ावा देना और आम लोगों को पढ़ने के लिए पुस्तकें और स्थान उपलब्ध करवाना था.
पूरी तरह से अव्यवस्थित इस पुस्तकालय में जहां पुस्तकें जमीन पर रखी हैं, वहीं उसमें एक परत मोटी धूल जम गई है. इस पुस्तकालय के संचालन का दायित्व पुस्तकालय अध्यक्ष, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय और नियंत्रण अधिकारी का दायित्व प्रधानाचार्य, राजकीय उच्च माध्यमिक विधालय को सौंपा गया था. इस पुस्तकालय हेतु विभाग द्वारा हर साल बजट भी भिजवाया जाता है.
लेकिन इन सबके होने के बावजूद भी आलम यह है कि ना तो यह पुस्तकालय कभी खुलता है और ना ही इसमे पढ़ने के लिए किसी प्रकार की कोई पाठ्य सामग्री की उपलब्धता है, जबकि विभाग द्वारा समय-समय पर इस पुस्तकालय हेतु पुस्तकें भी भिजवाई जाती रही हैं. जब नियन्त्रण अधिकारी प्रधानाचार्य आदराम लिम्बा से बात की गई तो उन्होंने स्टाफ नहीं होने की बात कही और कहा कि पुस्तकालय की पुस्तके अंदर वाले पुस्तकालय में रखी जाती है.
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बार-बार शिकायतों और निवेदनों के बाद भी यहां की दुर्दशा को ठीक करने के लिए कोई भी कदम उठाए नहीं जा रहे हैं. भवन में प्रवेश द्वार पर गंदगी जमा है. वहीं इस भवन में ना तो कोई साफ-सफाई है ना ही बैठने की कोई समुचित व्यवस्था है, यहां तक की बैठने की कुर्सियों और वहां रखे अलमारी और मेज तक धुल-मिट्टी से अटे पड़े है.
समुचित सार सम्भाल और रख-रखाव की व्यवस्था ना होने के कारण भवन की खिडकियां टूट चुकी है और इसके अन्दर लगे उपकरण और आन्तरिक सुसज्जा के सामान भी नकारा हो चुके है. पुस्तकालय में लगे वाश बेसिन भी कई महीनो से प्रयोग में नहीं लाए गए हैं. एडवोकेट रविंद्र मोदी का कहना है कि जिस सोच के साथ पुस्कालय शुरू किया गया था. वह सफल होता नहीं दिख रहा है.
वहीं मजे की बात यह है कि पुस्तकालय के दूसरे तरफ एक और एसडीएम और तहसीलदार के आफिस है. ऐसे समय-समय पर स्कूलों का निरीक्षण करने वाले इन अधिकारियों को इस पुस्कालय की दुर्दशा नहीं दिखती है. बहरहाल जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी कहें लेकिन तस्वीरें तो कुछ और भी ब्यान कर रही हैं, कुप्रबंध व्यवस्था के चलते सरकार के इस भवन पर लगाए लाखों रुपयों व्यर्थ हो रहे हैं. शिक्षा विभाग और प्रशासन को प्राथमिकता के आधार पर समय रहते इन पुस्तकालयों की सुध लेनी चाहिए, जिससे ज्ञान की इस अमूल्य धरोहर को बचाया जा सके.