श्रीगंगानगर. गहलोत सरकार 24 फरवरी को प्रदेश का बजट पेश करेगी. ऐसे में किसानों को बजट से काफी उम्मीदें हैं. श्रीगंगानगर में गाजर की खेती कर रहे किसानों को प्रदेश की गहलोत सरकार से बजट में काफी उम्मीदें है. जिले के किसान गाजर की खेती में भले ही देश और प्रदेश को एक अलग पहचान दिलाई हो, लेकिन यहां के किसान आज भी सुविधाओं से महरूम हैं.
दरअसल, श्रीगंगानगर का गाजर लाल सुर्ख और मिठास के कारण देशभर में अलग पहचान रखता है. करीब 10 साल पहले साधुवाली में ही दो से तीन हजार बीघा में गाजर की खेती होती थी, लेकिन समय के साथ रकबा बढ़ा और अब यह खेती करीब 10 हजार बीघा में होने लगी है. यहां के गाजर उत्पादक किसानों ने भले ही देशभर में खास पहचान दिलाई है, लेकिन किसान अब भी सुविधाओं से महरूम हैं.
गाजर की इतने बड़े क्षेत्रफल में उपज होने के बाद भी किसानों को विपणन के लिए अच्छा बाजार नहीं मिल रहा है, जिसकी बदौलत किसान हर साल ठगी का शिकार होकर लाखों रुपए गंवा बैठता है. यहां के किसानों के लिए गाजर मण्डी की मांग पिछ्ले लम्बे समय से की जा रही है, लेकिन सरकारों की ओर से घोषणाओं के अलावा जमीन पर कुछ नहीं किया गया है. हालांकी, कहने को तो साधुवाली एरिया में गंगनहर के किनारे पर गाजरों की अस्थाई मंडी लग रही है, लेकिन इसमें किसान और सरकार को कोई फायदा नहीं मिलता है, बल्कि बाहर के व्यापारी ठगी करके जरूर निकल जाते हैं.
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गाजर उत्पादक किसानों की मांगों को देखते हुए पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने साल 2016-17 बजट घोषणा में साधुवाली में गाजर मंडी बनाने की घोषणा की थी, लेकिन इसके बावजूद सरकार की ओर से यहां गाजर मंडी स्थापित कर किसानों को गाजर बेचने के लिए उचित प्लेटफार्म उपलब्ध नहीं करवाया गया. सरकार की घोषणा के बाद गाजर मंडी स्थापित करने के लिए जगह का निरीक्षण भी किया गया, लेकिन गाजर मण्डी का प्रपोजल धुल फांक रहा है.
किसानों ने बताया कि सरकार की ओर से अगर नहर के पास इंटरलॉकिंग प्लेटफार्म बनाकर गाजर मण्डी शुरू कर दी जाए, तो किसानों को परेशानी नहीं होगी. गाजर उत्पादक किसानों ने सरकार को सुझाव दिया है कि साधुवाली के पास से निकलने वाली गंगनहर के पास सिंचाई विभाग की खाली जमीन है, जहां पर लम्बी चौड़ी गाजर मण्डी स्थापित की जा सकती है. गाजर उत्पादक किसान इसी जमीन पर गाजर मंडी प्लेटफार्म बनाने की मांग कर रहे हैं. पूर्व में कच्ची गंगनहर यहीं से निकलती थी. बाद में पास में पक्की नहर बनने के बाद यह जगह खाली पड़ी है, जो किसी उपयोग में नहीं है. किसानों को सिस्टम से नाराजगी है.
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किसानों का कहना है कि वे उत्पादन के दम पर अपनी पहचान बना रहे हैं, लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें कोई खास तवज्जो नहीं दी जा रही है. किसानों की ओर से नहर के किनारे अस्थाई मंडी बनाई गई है, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें और व्यापारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. उबड़ खाबड़ रास्ता और शाम होते ही अंधेरा हो जाना यहां परेशानी का सबब बना हुआ है. किसानों की मांग है कि अगर सरकार इस बारे में थोड़ा ध्यान दे तो उन्हें राहत मिल सकती है.
हालांकी किसान कह रहे है की वर्षों पुरानी गाजर मंडी की मांग मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद अब पूरा होने की उम्मीद जगी है, लेकिन जगह पर मतभेद खड़े हो रहे हैं. क्योकिं राजनीति करने वाले कुछ लोग गाजर मंडी को साधुवाली गांव के बीचों बीच स्थित सरकारी स्कूल की खाली 4 बीघा जमीन पर बनाने को सहमत है, लेकिन गाजर उत्पादक किसान संतुष्ट नहीं हैं. गाजर पैदा करने वाले किसानों की इच्छा है कि यह मंडी साधुवाली से लेकर कालूवाला के निकट फ्लाईओवर तक बंद हो चुकी पुरानी एलएनपी नहर की जगह पर बनाई जाए तो ज्यादा फायदा किसानों को मिलेगा. इस जगह पर मंडी बनाने के पीछे तर्क भी मजबूत प्रतीत हो रहे हैं.
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किसानों का कहना है कि साधुवाली गंगनहर के पुल से लेकर नाथावाला तक नहर किनारे करीब 300 मशीनें गाजर धुलाई के लिए स्थापित हैं, क्योंकि गाजर धोने को बड़ी मात्रा में पानी चाहिए. इस जगह पर पानी की उपलब्धता के साथ ही जगह भी खुली है, इसे रोजाना 5 से 6 हजार बोरियां गाजरों की धुलाई होती है. इतनी बड़ी संख्या में किसानों के वाहनों के अलावा गाजर खरीद कर बाहर ले जाने वाले वाहनों की आवाजाही होती है, इसलिए मंडी खुली जगह पर बने तो ही दूरगामी परिणाम बेहतर रहेंगे. वर्तमान में जहां किसान गाजर की धुलाई कर रहे हैं, वह जगह करीब साढे 3 किलोमीटर लंबाई में और 200 मीटर चौड़ाई में है.
वहीं, कुछ लोग गंगनहर के किनारे मंडी बनाना चाहते हैं, यहां गाजर धूलाई, पैकिंग, बोली और परिवहन में भी आसानी हो, जबकि स्कूल की जगह में मंडी बनी तो वहां जगह कम है. एक ही रास्ता है. हादसे होने का डर बना रहेगा. स्कूल की जगह गांव के बीच में है, जहां बच्चे पढ़ते हैं. मंडी बनने से शोर शराबा होगा, पढ़ाई बाधित होगी. गंगनहर के किनारे मंडी पहले से ही संचालित है, किसी को कोई परेशानी भी नहीं है. स्कूल में मंडी बनाना स्कूल के विकास के लिए ही गलत होगा.