सिरोही. धर्म शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य को अंतिम संस्कार जैसी रस्म में शामिल होने से पुण्य मिलता हैं. देश और प्रदेश में आज भी लोग अपने परिचित की मौत होने पर उनकी अंतिम यात्रा में शामिल जरूर होता हैं. लेकिन पिछले एक वर्ष से, जब से ये कोरोना महामारी आई हैं, ये ट्रेंड बदलता जा रहा हैं. किसी और की तो बात ही दूर, आजकल तो खुद अपने अंतिम संस्कार करने से मना कर देते हैं. ऐसे में शवों के अंतिम संस्कार में सरकारी कारिंदे सिर्फ औपचारिकता निभाकर इतिश्री कर देते हैं.
इस घोर कलियुग और इस वैश्विक महामारी के दौर में भी एक ऐसा व्यक्ति हैं, जो शव को पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर अपना फर्ज निभा रहा हैं. जी हां ये सुनने में भले ही अजीब लगता हो, पर यह सौ फीसदी सत्य बात हैं. प्रदेश के एक छोटे से जिले सिरोही के जिला मुख्यालय पर रहने वाले समाजसेवी प्रकाश प्रजापति ने पिछले साढ़े आठ महीनों से लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार करने का बीड़ा उठाया हुआ हैं.
इन्होंने अब तक 754 शवों का पूरे विधि विधान से अंतिम संस्कार करवाया हैं. इस कोरोना काल की बात करें तो प्रकाश प्रजापति ने पिछले एक साल में जब से कोरोना ने दस्तक दी हैं, तब से अब तक 175 शवों को उनके गन्तव्य तक पहुंचाकर अंतिम संस्कार करवाया हैं. वहीं अगर कोरोना की इस दूसरी लहर की बात करें, तो पिछले 7 दिनों ने इन्होंने 27 शवों का अंतिम संस्कार करवाकर अपने मानव होने का धर्म निभाया हैं.
प्रकाश प्रजापति, शव वाहिनी संचालक और समाजसेवी की है. शव वाहिनी का संचालन करने वाले प्रकाश खुद इसके चालक है और ईंधन का जुगाड़ भी खुद ही करते हैं. यहां कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट चलाने वाले प्रकाश प्रजापति की प्रेरणा से एक भामाशाह ने यह वाहन मुहैया कराया था. शव ले जाने में किसी का पैसा खर्च ना हो इसके लिए वे खुद ही चालक बन गए. जब भी किसी जरूरतमंद का फोन आता है, वे तत्काल ही निकल पड़ते हैं. वे रक्तदान से लेकर शवों को घर तक पहुंचाने और लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराने तक के विभिन्न सेवा कार्यों से लगातार जुड़े हुए हैं.
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कैसे मिली प्रेरणा
करीब साढ़े आठ वर्ष पूर्व सिरोही शहर के एक फुटपाथ पर एक भिखारिन की मौत हो गई थी. नगरपालिका में जब इसकी सूचना दी गई, तो नगरपालिका ने कचरा उठाने वाली ट्रेक्टर ट्रॉली भेजी जो गंदगी से अटी पड़ी थी. ये दृश्य देखकर प्रकाश प्रजापति का अंतर्मन तार तार हो गया. उन्होंने नगरपालिका के कर्मचारियों को ट्रॉली को धोने का आग्रह कर पूरी ट्रॉली को साफ पानी से धुलवाया और शव को ट्रॉली में रखकर खुद भी श्मसान घाट तक साथ में गए. वहां लकड़ियों पर शव को डालकर आग के हवाले करते पूरी प्रक्रिया को देखा, जो असहनीय थी.
उसी दिन से प्रकाश प्रजापति ने ठान लिया कि सिरोही में कोई भी लावारिस या बेसहारा मृतक की अंतिम संस्कार की समस्त सामग्री जुटाकर उसके धर्म के अनुसार पूरे विधि विधान के साथ शव यात्रा निकाल उनकी अंतिम क्रिया करेंगे. तब से लेकर आज तक वो अपना फर्ज निभा रहे हैं. अब ये सिरोही शहर के आसपास के 35 किलोमीटर तक के क्षेत्र में किसी भी लावारिस शव के मिलने पर उनका पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करते हैं.
मरणोपरांत लिया देहदान का संकल्प
लावारिस लाशों को अंतिम संस्कार करने वाले समाजसेवी प्रकाश प्रजापति ने मरने के बाद अपने पूरे शरीर का देहदान करने का फैसला लिया. यानी जीवनभर समाजसेवा का बीड़ा उठाने वाले व्यक्ति ने मरने के बाद भी अपने शरीर के अंगो से जरूरतमन्दों की सेवा करने की ठान रखी हैं.
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पिता की स्मृति में बनाया मोक्षरथ
कोरोना काल में जब लोग किसी भी शव के अंतिम संस्कार में शामिल होने से डर रहे हैं. शव को हाथ लगाने से डर रहे हैं. तो ऐसे में प्रकाश प्रजापति के सामने शव की अंतिम यात्रा निकालने में बड़ी समस्या खड़ी होने लगी. इन्होंने अपने पिता स्वर्गीय हरजीरामजी ने नाम से एक मोक्ष रथ तैयार करवाया. जिस पर शव को रखकर उनकी अंतिम यात्रा निकालते हुए श्मसान घाट ले जाकर अंतिम संस्कार कर रहे हैं.