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Special : अपनों के लिए नेताओं में 'कुर्सी' की होड़, मेहनत करने वाले कार्यकर्ता दरकिनार !

सीकर जिले में कई दिग्गज नेता हैं, जिन्होंने इस पंचायत चुनाव में अपने बेटे, बहू या पुत्रवधू को चुनाव में उतारा है और उनका सीधा निशाना जिला प्रमुख और प्रधान की कुर्सी पर है. ऐसे में पार्टी या नेता के लिए काम करने वाले आम कार्यकर्ताओं को कहीं ना कहीं दरकिनार किया जा रहा है, स्थिति और परिस्थिति को देखें तो ये सही भी लगता है. देखिये ये रिपोर्ट...

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Published : Nov 16, 2020, 5:19 PM IST

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पार्टियों के बड़े नेता सत्ता की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते हैं.

सीकर. सियासत में भला शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो सत्ता की मलाई चखने के बाद उसे छोड़ना चाहता हो. खुद की कुर्सी तो छोड़ना नहीं चाहते, लेकिन इसके बाद अगर और कोई कुर्सी बचती है तो वह भी अपने ही घर में रखना चाहते हैं. विधायक और मंत्री पद तक पर रहने वाले नेता भी यह चाहते हैं कि उनके इलाके में अगर प्रधान और जिला प्रमुख बने तो उनके परिवार से ही बने. राजनीतिक पंडितों के मुताबिक यह कतई जायज नहीं है कि सब कुछ एक ही परिवार के हाथ में रहे, लेकिन पार्टियों के बड़े नेता इन पदों को छोड़ना नहीं चाहते हैं. जो नेता बड़े पावर सेंटर रहे हैं और वर्तमान में अच्छे पदों पर हैं वह भी अपने परिवार के लिए प्रधान और जिला प्रमुख की कुर्सी के सपने देख रहे हैं. सीकर जिले की बात करें तो यहां पर कई दिग्गज नेता हैं, जिन्होंने इस पंचायत चुनाव में अपने बेटे-बहू को चुनाव में उतारा है और उनका सीधा निशाना जिला प्रमुख और प्रधान की कुर्सी पर है. केवल मात्र सदस्य बनाने के लिए यह उन्हें चुनाव नहीं लड़ा रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि जो कार्यकर्ता दिन-रात पार्टियों के लिए मेहनत करते हैं वह तो केवल नेताओं के पीछे घूमने तक सीमित रह गए हैं.

इस पंचायत चुनाव में नेताओं का सीधा निशाना जिला प्रमुख और प्रधान की कुर्सी पर है....

प्रधान और प्रमुख की कुर्सी पर नजरें...

बंशीधर खंडेला: बंशीधर खंडेला प्रदेश की पिछली वसुंधरा सरकार में चिकित्सा राज्य मंत्री रह चुके हैं. लगातार दो बार खंडेला से विधायक रह चुके हैं और इनके पिता भी विधायक थे. इस बार खंडेला की प्रधान की सीट सामान्य है. इन्होंने यहां से अपनी पत्नी विनोद बाजिया और पुत्र राहुल बाजिया को पंचायत समिति सदस्य का उम्मीदवार भाजपा से बनाया है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि केवल मात्र पंचायत समिति सदस्य के लिए यह अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव नहीं लड़ रहे हैं सामने प्रधान की कुर्सी दिख रही है.

यह भी पढ़ें: नगर निगम चुनावों में RLP का ऐसा हाल तो खुद हनुमान बेनीवाल ने भी नहीं सोचा होगा!

महादेव सिंह खंडेला: महादेव सिंह खंडेला सीकर के खंडेला विधानसभा क्षेत्र से 6 बार विधायक चुने गए हैं. एक बार सीकर से सांसद रह चुके हैं और मनमोहन सिंह सरकार में केंद्र में मंत्री भी रहे हैं और फिलहाल भी खंडेला से विधायक हैं. इनकी पत्नी खंडेला से प्रधान रह चुकी है और एक बार बेटे को खंडेला से विधानसभा का कांग्रेस का टिकट दिलवा चुके हैं. राजनीति में इतना कुछ हासिल करने के बाद भी इनकी नजर एक बार फिर खंडेला के प्रधान पद पर टिकी है. खंडेला पंचायत समिति से इनके बेटे गिर्राज और पुत्र वधु मीनाक्षी सिंह पंचायत समिति सदस्य का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे हैं.

झाबर सिंह खर्रा: श्रीमाधोपुर से भाजपा के विधायक रहे झाबर सिंह खर्रा खुद सीकर भाजपा के जिला अध्यक्ष रह चुके हैं. इनके पिता हरलाल सिंह खर्रा 5 बार श्रीमाधोपुर से विधायक रहे और प्रदेश में मंत्री रहे. इनकी मां श्रीमाधोपुर से प्रधान रह चुकी है और खुद झाबर सिंह भी पहले प्रधान रह चुके हैं. इसके बाद भी इस बार झाबर सिंह खर्रा ने अपनी पत्नी शांति देवी और पुत्र दुर्गा सिंह खर्रा को पंचायत समिति सदस्य के लिए चुनाव मैदान में उतारा है. इतने सालों से श्रीमाधोपुर और सीकर जिले की सियासत में दबदबा रखने वाले परिवार के सदस्य जाहिर है कि पंचायत समिति सदस्य के लिए लिए नहीं प्रधान के लिए चुनाव लड़ रहे हैं.

यह भी पढ़ें: दिवाली की रामा-श्यामा पर कोरोना का असर...नेताओं के आवास पर नहीं दिखी भीड़

प्रेम सिंह बाजोर: प्रेम सिंह बाजोर सीकर के भाजपा नेताओं में सबसे कद्दावर नेता है और पार्टी के पंचायत चुनाव में जिला संयोजक भी है. खुद नीमकाथाना से विधायक और प्रदेश में सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं और राज्य मंत्री का दर्जा था. इसके बाद भी इन्होंने इस बार के चुनाव में अपनी पुत्रवधू और भतीजे की बहू को जिला परिषद के लिए उतारा है. जाहिर है कि इनकी नजर भी जिला प्रमुख की कुर्सी पर है. सीकर जिले की जिला परिषद के सभी 39 टिकट भी प्रेम सिंह बाजोर ने ही आखिर में फाइनल की है. जब इनसे पूछा गया कि कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगाने वाली भाजपा भी इससे अछूती नहीं है तो इनका कहना था कि गांव के चुनाव में कोई वंशवाद नहीं होता है.

नारायण सिंह ने किसी को नहीं उतारा...

सीकर जिले में वंशवाद की राजनीति की बात करें तो जिले के दिग्गज जाट नेता और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चौधरी नारायण सिंह भी कभी पीछे नहीं रहे हैं. एक बार अपने पुत्र वीरेंद्र सिंह को दांतारामगढ़ से प्रधान बना चुके हैं और वर्तमान में भी इनके पुत्र विधायक हैं. अपनी पुत्रवधू रीटा सिंह को सीकर जिले की जिला प्रमुख बना चुके हैं. पिछले चुनाव में भी अपने पुत्र वीरेंद्र सिंह को पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लड़वाया था और बेटी को जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़ाया था. लेकिन पिछले चुनाव में दोनों ही हार गए थे इसके बाद इस बार किसी को मैदान में नहीं उतारा है.

सीकर. सियासत में भला शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो सत्ता की मलाई चखने के बाद उसे छोड़ना चाहता हो. खुद की कुर्सी तो छोड़ना नहीं चाहते, लेकिन इसके बाद अगर और कोई कुर्सी बचती है तो वह भी अपने ही घर में रखना चाहते हैं. विधायक और मंत्री पद तक पर रहने वाले नेता भी यह चाहते हैं कि उनके इलाके में अगर प्रधान और जिला प्रमुख बने तो उनके परिवार से ही बने. राजनीतिक पंडितों के मुताबिक यह कतई जायज नहीं है कि सब कुछ एक ही परिवार के हाथ में रहे, लेकिन पार्टियों के बड़े नेता इन पदों को छोड़ना नहीं चाहते हैं. जो नेता बड़े पावर सेंटर रहे हैं और वर्तमान में अच्छे पदों पर हैं वह भी अपने परिवार के लिए प्रधान और जिला प्रमुख की कुर्सी के सपने देख रहे हैं. सीकर जिले की बात करें तो यहां पर कई दिग्गज नेता हैं, जिन्होंने इस पंचायत चुनाव में अपने बेटे-बहू को चुनाव में उतारा है और उनका सीधा निशाना जिला प्रमुख और प्रधान की कुर्सी पर है. केवल मात्र सदस्य बनाने के लिए यह उन्हें चुनाव नहीं लड़ा रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि जो कार्यकर्ता दिन-रात पार्टियों के लिए मेहनत करते हैं वह तो केवल नेताओं के पीछे घूमने तक सीमित रह गए हैं.

इस पंचायत चुनाव में नेताओं का सीधा निशाना जिला प्रमुख और प्रधान की कुर्सी पर है....

प्रधान और प्रमुख की कुर्सी पर नजरें...

बंशीधर खंडेला: बंशीधर खंडेला प्रदेश की पिछली वसुंधरा सरकार में चिकित्सा राज्य मंत्री रह चुके हैं. लगातार दो बार खंडेला से विधायक रह चुके हैं और इनके पिता भी विधायक थे. इस बार खंडेला की प्रधान की सीट सामान्य है. इन्होंने यहां से अपनी पत्नी विनोद बाजिया और पुत्र राहुल बाजिया को पंचायत समिति सदस्य का उम्मीदवार भाजपा से बनाया है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि केवल मात्र पंचायत समिति सदस्य के लिए यह अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव नहीं लड़ रहे हैं सामने प्रधान की कुर्सी दिख रही है.

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महादेव सिंह खंडेला: महादेव सिंह खंडेला सीकर के खंडेला विधानसभा क्षेत्र से 6 बार विधायक चुने गए हैं. एक बार सीकर से सांसद रह चुके हैं और मनमोहन सिंह सरकार में केंद्र में मंत्री भी रहे हैं और फिलहाल भी खंडेला से विधायक हैं. इनकी पत्नी खंडेला से प्रधान रह चुकी है और एक बार बेटे को खंडेला से विधानसभा का कांग्रेस का टिकट दिलवा चुके हैं. राजनीति में इतना कुछ हासिल करने के बाद भी इनकी नजर एक बार फिर खंडेला के प्रधान पद पर टिकी है. खंडेला पंचायत समिति से इनके बेटे गिर्राज और पुत्र वधु मीनाक्षी सिंह पंचायत समिति सदस्य का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे हैं.

झाबर सिंह खर्रा: श्रीमाधोपुर से भाजपा के विधायक रहे झाबर सिंह खर्रा खुद सीकर भाजपा के जिला अध्यक्ष रह चुके हैं. इनके पिता हरलाल सिंह खर्रा 5 बार श्रीमाधोपुर से विधायक रहे और प्रदेश में मंत्री रहे. इनकी मां श्रीमाधोपुर से प्रधान रह चुकी है और खुद झाबर सिंह भी पहले प्रधान रह चुके हैं. इसके बाद भी इस बार झाबर सिंह खर्रा ने अपनी पत्नी शांति देवी और पुत्र दुर्गा सिंह खर्रा को पंचायत समिति सदस्य के लिए चुनाव मैदान में उतारा है. इतने सालों से श्रीमाधोपुर और सीकर जिले की सियासत में दबदबा रखने वाले परिवार के सदस्य जाहिर है कि पंचायत समिति सदस्य के लिए लिए नहीं प्रधान के लिए चुनाव लड़ रहे हैं.

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प्रेम सिंह बाजोर: प्रेम सिंह बाजोर सीकर के भाजपा नेताओं में सबसे कद्दावर नेता है और पार्टी के पंचायत चुनाव में जिला संयोजक भी है. खुद नीमकाथाना से विधायक और प्रदेश में सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं और राज्य मंत्री का दर्जा था. इसके बाद भी इन्होंने इस बार के चुनाव में अपनी पुत्रवधू और भतीजे की बहू को जिला परिषद के लिए उतारा है. जाहिर है कि इनकी नजर भी जिला प्रमुख की कुर्सी पर है. सीकर जिले की जिला परिषद के सभी 39 टिकट भी प्रेम सिंह बाजोर ने ही आखिर में फाइनल की है. जब इनसे पूछा गया कि कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगाने वाली भाजपा भी इससे अछूती नहीं है तो इनका कहना था कि गांव के चुनाव में कोई वंशवाद नहीं होता है.

नारायण सिंह ने किसी को नहीं उतारा...

सीकर जिले में वंशवाद की राजनीति की बात करें तो जिले के दिग्गज जाट नेता और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चौधरी नारायण सिंह भी कभी पीछे नहीं रहे हैं. एक बार अपने पुत्र वीरेंद्र सिंह को दांतारामगढ़ से प्रधान बना चुके हैं और वर्तमान में भी इनके पुत्र विधायक हैं. अपनी पुत्रवधू रीटा सिंह को सीकर जिले की जिला प्रमुख बना चुके हैं. पिछले चुनाव में भी अपने पुत्र वीरेंद्र सिंह को पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लड़वाया था और बेटी को जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़ाया था. लेकिन पिछले चुनाव में दोनों ही हार गए थे इसके बाद इस बार किसी को मैदान में नहीं उतारा है.

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