सीकर. कोराना काल में सात महीने से स्कूलें बंद हैं और बच्चों की फीस लेने पर भी पाबंदी है. वहीं बिजली विभाग इन स्कूलों पर दोहरी मार डाल रहा है. स्कूलों में लगे सोलर प्लांट से बिजली निगम ने लाखों रुपए की बिजली लेकर उपभोक्ताओं को बेच दी. अब स्कूलों को इस बिजली का भुगतान नहीं किया जा रहा है.
सीकर के अधिकत्तर बड़े शिक्षण संस्थानों में सोलर प्लांट लगे हुए हैं. स्कूलों में लगे इन प्लांट से जितनी भी बिजली का उत्पादन होता है, वह सीधे बिजली निगम तक जाती है. बिजली निगम ने इसके लिए मीटर लगा रखे हैं और जो भी बिजली वहां से आती है, उसका रिकॉर्ड रखा जाता है. इसके बाद जो बिजली स्कूलों में उपयोग में ली जाती है, उसके मीटर अलग से लगे हुए हैं. हर महीने जब स्कूलों को बिजली का बिल भेजा जाता है, तब जितनी बिजली स्कूलों में का में ली गई है. उसमें से सोलर से मिली बिजली की यूनिट को घटा दिया जाता है. इसके बाद अगर स्कूलों में बिजली ज्यादा काम में ली गई है तो उसका भी बिल बिजली निगम वसूलता है.
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कोरोना काल में स्कूलें बंद होने के कारण यहां बिजली का उपयोग बहुत ही कम हुआ और सोलर की पूरी बिजली निगम को मिलती रही. सोलर से मिली बिजली को निगम ने उपभोक्ताओं को बेच दिया लेकिन स्कूलों को इसका भुगतान नहीं किया जा रहा है और जो बिजली स्कूलों में उपयोग हुई, उसके बिल भेजे जा रहे हैं.
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सीकर के एक बड़े शिक्षण संस्थान में तीन बड़े सोलर प्लांट लगे हुए हैं. इन प्लांट से पिछले दो महीने में करीब 5200 यूनिट बिजली निगम को मिले हैं. जबकि अल इन दो महीनों में बिजली निगम की करीब 1500 यूनिट बिजली का स्कूल में उपभोग हुआ है.
इसके बाद भी बिजली निगम ने स्थाई शुल्क बढ़ाकर स्कूल को बिल थमा दिया. जबकि जो बिजली सोलर प्लांट से निगम को दी गई, उसका पैसा नहीं दिया गया और निगम ने इस बिजली को उपभोक्ताओं को बेच दिया.