सीकर. बूढ़े मां-बाप को मारने-पीटने, घर से बेदखल करने और वृद्धाश्रमों में भेजने के निर्मम मामलों के बीच ये तस्वीर आपको सुकून देगी. तस्वीर में कांवड़ में बैठी दिखाई दे रही ये मां सांवलोदा धायलान निवासी उगम कंवर है जो 100 साल की उम्र के करीब है. अपने जीवन में लोहार्गल की 15 यात्राएं कर चुकी इस मां का उम्र के ढलान पर जब फिर से यात्रा का मन हुआ तो उसने अपनी इच्छा बेटे सुमेर सिंह के सामने रखी.
इसपर बेटे ने भी मां की इच्छा का ख्याल रखते हुए उसे पूरा करने का संकल्प लिया. एक पीढ़े की कावड़ तैयार कर उसने परिवार को साथ लिया और लोहार्गल (Shravan Kumar of Sikar) के लिए निकल पड़ा. मां को तीर्थ स्नान करवाकर उसने वहां से गांव तक की यात्रा मां को कावड़ में बिठाकर कंधे पर पूरी करवाई. करीब 54 किलोमीटर की यात्रा में उगम कंवर के पोते और पोतियों ने भी पूरा साथ दिया. भजनों और भगवान शिव के जयकारों के बीच दादी को कंधे पर ले जाकर उन्होंने भी उनकी इच्छा को धूमधाम से पूरा किया.
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25 घंटे में पूरी की 54 किलोमीटर की यात्राः उगम कंवर की ये यात्रा 25 घंटे में पूरी हुई. पोते पृथ्वी सिंह ने बताया कि तीर्थ स्नान के बाद वे शनिवार शाम 5 बजे दादी को लेकर लोहागर्ल (Lohargal pilgrimage place in sikar) से गांव के लिए रवाना हुए थे. रुक रुककर चलते हुए उन्होंने रविवार शाम 6.30 बजे गांव के शिव मंदिर पहुंचकर पूरी की. इस दौरान उगम कंवर के पोते प्रेम सिंह, मोहन सिंह, पृथ्वी सिंह, जीवराज सिंह, महिपाल सिंह, कुलदीप सिंह, सुगम सिंह, भैरूं सिंह, मंगू सिंह व रतन खीचड़ सहयोगी रहे. इसी प्रकार पोती सोनिया, पूजा, अंकिता, शयंति कंवर, भतीजी सरदार कंवर यात्रा में सहयोगी रही.
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दामन फैलाकर दुआएं देती रही मां, बेटे ने कहा सफल हुआ जीवनः भरे-पूरे परिवार के बीच कांवड़ में बैठी उगम कंवर ने तीर्थ यात्रा के दौरान काफी भावुक दिखी. दामन फैलाकर बेटे व पोते- पोतियों को दुआ देती हुई उसकी आंखों में पल पल में नमी उतर रही थी. इधर, सरलता से भरे बेटे सुमेर सिंह का कहना था कि वह माता- पिता का कर्ज कभी नहीं उतार सकते. कावड़ में मां को तीर्थ करवाने का सौभाग्य और रास्ते में मिले हजारों लोगों की सराहना से उनका जीवन सफल हो गया है. उन्होंने अपील की कि गाय और मां की दुर्दशा हो रही है, जिन्हें बचाना हर इंसान का कर्तव्य है.
पिता की भी लगवा चुके हैं मूर्तिः सुमेर सिंह चार साल पहले ही इराक से लौटे हैं. जिसके बाद से वह खेती कर गुजारा कर रहे हैं. उनके पिता गोरसिंह गोगाजी के परम भक्त थे. जिनके निधन के बाद 2016 में उन्होंने जन सहयोग से गांव के मंदिर के पास उनकी भी मूर्ति लगवाई थी. तीसरे नम्बर के भाई सुमेर के तीन भाई व बहुएं भी खेती के साथ मां का पूरा ख्याल रखते हैं.