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जन्माष्टमी विशेष: राजस्थान के इस मंदिर में 108 प्रकार की जड़ी बूटियों से कराया जाता है महास्नान...रोचक है इतिहास - राजस्थान में कृष्ण मंदिर

राजस्थान के सीकर में ऐसा मंदिर है. जहां स्थित मूर्ति पर जन्माष्टमी के पावन पर्व पर 108 प्रकार की जड़ी बूटियों से महास्नान कराया जाता है. जो कि ऐसा वृंदावन में होता है. मंदिर का निर्माण 600 वर्ष पूर्व करवाया गया था. साथ ही इस मंदिर का इतिहास भी बहुत ही रोचक है. देखिए जन्माष्टमी स्पेशल पर एक रिपोर्ट...

बिहारी जी मंदिर खंडेला, Bihari Ji Temple Khandela
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Published : Aug 23, 2019, 7:57 PM IST

खंडेला (सीकर). सीकर जिले के खंडेला कस्बे में स्थित बिहारी जी मंदिर में वृंदावन में स्थित बिहारी जी के मंदिर की तरह जन्माष्टमी पर 108 प्रकार की विशेष जड़ी-बूटियों से मूर्ति का महास्नान कराया जाता है. मंदिर की स्थापना लगभग 600 वर्ष पहले खंडेला राजा द्वारा करवाया गया था. मंदिर में जन्माष्टमी पर्व पर अनूठे तरीके से 108 विशेष जड़ी बूटियों से भगवान कृष्ण की मूर्ति को महा स्नान कराया जाता है.

खंडेला के बिहारी जी मंदिर में 108 प्रकार की जड़ी-बूटियों से महास्नान

मंदिर में सिर्फ श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित..जानिए मंदिर का इतिहास
बताया जाता है कि यह एक ऐसा मंदिर है. जहां सिर्फ कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित है. बाकी अन्य मंदिरों में कृष्ण-राधा की मूर्तियां देखने को मिलेगी. शास्त्री मनोज कुमार पारीक ने बताया कि बिहारी जी का मंदिर का निर्माण लगभग 600 वर्ष पूर्व खंडेला के राजा ने करवाया था. उन्होंने बताया कि पुरोहित समाज के परशुराम पुरोहित थे. जो खण्डेला राजघराने के गुरु थे. उन्हीं के पुत्री थी करमैति बाई. करमैति बाई भगवान कृष्ण की भक्ति थी. विवाह के समय करमैति बाई घर वालों को बिना बताए वृंदावन के लिए रवाना हो गयी थी.

पढ़ें- जन्माष्टमी स्पेशल: वृंदावन से जयपुर आए थे आराध्य गोविंद देव जी

करमैति बाई को ढूंढने निकले घुड़सवार
जब इसकी सूचना उसके पिता परशुराम को लगी, तो उन्होंने इसको लेकर खण्डेला राजा को अवगत करवाया. राजा ने आदेश के बाद घुड़सवारों ने चारों तरफ करमैति बाई को ढूंढने का कार्य प्रारंभ किया. वहीं जैसे ही घुड़सवार जैसे ही करमैति बाई के नजदीक आने लगे तो करमैति बाई एक मरे हुए ऊंट के खाल में छुप गयी. करमैति बाई ने 3 दिन और 3 रात ऊंट के खाल में गुजारी. बदबू आने के कारण घुड़ सवार ऊंट के नजदीक नहीं गए और वहां से रवाना हो गए.

पढ़ें- जन्माष्टमी स्पेशल: श्रीकृष्ण के बालपन से लेकर द्वारकाधीश तक की कहानी...संस्कृत विद्वान कलानाथ शास्त्री की जुबानी​​​​​​​

वृंदावन में भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई करमैति बाई
इसी बीच संतों का एक समूह उस रास्ते से निकल रहा था. करमैति बाई भी उन संतों के साथ रवाना हो गई. गंगा में स्नान करने के बाद करमैति बाई वृंदावन में ब्रह्कुंड के पास एक वटवृक्ष के नीचे भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई. जब इसका सन्देश करमैति बाई के पिता परशुराम को मिला तो वह खंडेला राजा के साथ वृंदावन जहां पर करमैति बाई भक्ति कर रही थी, वहां पर गए और करमैति बाई घर को चलने के लिए कहा, तो करमैति बाई ने कहा कि मुझे भगवान की भक्ति करनी है, आप भी भगवान की भक्ति कीजिए. सभी इसी पर आधारित है.

पढ़ें- राजस्थान का ऐसा मंदिर...जहां जन्माष्टमी पर दी जाती है 21 तोपों की सलामी​​​​​​​

यमुना नदी से भगवान कृष्ण की मूर्ति निकालकर दी
जिसके बाद खण्डेला राजा व उसके पिता परशुराम ने भगवान की भक्ति के आधार के लिए करमैति बाई को बोला, तो करमैति बाई ने उसी समय यमुना नदी से भगवान कृष्ण की एक मूर्ति निकालकर अपने पिता को दी. वो ही मूर्ति आज खंडेला के बांके बिहारी मंदिर में स्थापित है. यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर सिर्फ कृष्ण भगवान की मूर्ति है बाकी अन्य मंदिरों में राधा कृष्ण की मूर्तियां देखने को मिलेगी.

पढ़ें- स्पेशल स्टोरी: राजस्थान के इस दरगाह पर बहती है गंगा जमुनी तहजीब की धारा...हिंदू-मुस्लिम मिलकर मनाते हैं जन्माष्टमी

108 प्रकार की जड़ी-बूटियों से महास्नान
जन्माष्टमी पर्व पर 108 प्रकार की जड़ी-बूटियों से मूर्ति का महास्नान करवाया जाता है. बांके बिहारी के मंदिर में जन्माष्टमी पर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. काफी वर्षों से श्याम भक्त मंडल जन्माष्टमी पर्व पर अपने भजनों की प्रस्तुति दोनों समय देता है. कस्बे में जन्माष्टमी पर मंदिर में भक्तों की काफी संख्या में भीड़ रहती है. सुबह और रात्रि दोनो समय मंदिर में कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है.

खंडेला (सीकर). सीकर जिले के खंडेला कस्बे में स्थित बिहारी जी मंदिर में वृंदावन में स्थित बिहारी जी के मंदिर की तरह जन्माष्टमी पर 108 प्रकार की विशेष जड़ी-बूटियों से मूर्ति का महास्नान कराया जाता है. मंदिर की स्थापना लगभग 600 वर्ष पहले खंडेला राजा द्वारा करवाया गया था. मंदिर में जन्माष्टमी पर्व पर अनूठे तरीके से 108 विशेष जड़ी बूटियों से भगवान कृष्ण की मूर्ति को महा स्नान कराया जाता है.

खंडेला के बिहारी जी मंदिर में 108 प्रकार की जड़ी-बूटियों से महास्नान

मंदिर में सिर्फ श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित..जानिए मंदिर का इतिहास
बताया जाता है कि यह एक ऐसा मंदिर है. जहां सिर्फ कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित है. बाकी अन्य मंदिरों में कृष्ण-राधा की मूर्तियां देखने को मिलेगी. शास्त्री मनोज कुमार पारीक ने बताया कि बिहारी जी का मंदिर का निर्माण लगभग 600 वर्ष पूर्व खंडेला के राजा ने करवाया था. उन्होंने बताया कि पुरोहित समाज के परशुराम पुरोहित थे. जो खण्डेला राजघराने के गुरु थे. उन्हीं के पुत्री थी करमैति बाई. करमैति बाई भगवान कृष्ण की भक्ति थी. विवाह के समय करमैति बाई घर वालों को बिना बताए वृंदावन के लिए रवाना हो गयी थी.

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करमैति बाई को ढूंढने निकले घुड़सवार
जब इसकी सूचना उसके पिता परशुराम को लगी, तो उन्होंने इसको लेकर खण्डेला राजा को अवगत करवाया. राजा ने आदेश के बाद घुड़सवारों ने चारों तरफ करमैति बाई को ढूंढने का कार्य प्रारंभ किया. वहीं जैसे ही घुड़सवार जैसे ही करमैति बाई के नजदीक आने लगे तो करमैति बाई एक मरे हुए ऊंट के खाल में छुप गयी. करमैति बाई ने 3 दिन और 3 रात ऊंट के खाल में गुजारी. बदबू आने के कारण घुड़ सवार ऊंट के नजदीक नहीं गए और वहां से रवाना हो गए.

पढ़ें- जन्माष्टमी स्पेशल: श्रीकृष्ण के बालपन से लेकर द्वारकाधीश तक की कहानी...संस्कृत विद्वान कलानाथ शास्त्री की जुबानी​​​​​​​

वृंदावन में भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई करमैति बाई
इसी बीच संतों का एक समूह उस रास्ते से निकल रहा था. करमैति बाई भी उन संतों के साथ रवाना हो गई. गंगा में स्नान करने के बाद करमैति बाई वृंदावन में ब्रह्कुंड के पास एक वटवृक्ष के नीचे भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई. जब इसका सन्देश करमैति बाई के पिता परशुराम को मिला तो वह खंडेला राजा के साथ वृंदावन जहां पर करमैति बाई भक्ति कर रही थी, वहां पर गए और करमैति बाई घर को चलने के लिए कहा, तो करमैति बाई ने कहा कि मुझे भगवान की भक्ति करनी है, आप भी भगवान की भक्ति कीजिए. सभी इसी पर आधारित है.

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यमुना नदी से भगवान कृष्ण की मूर्ति निकालकर दी
जिसके बाद खण्डेला राजा व उसके पिता परशुराम ने भगवान की भक्ति के आधार के लिए करमैति बाई को बोला, तो करमैति बाई ने उसी समय यमुना नदी से भगवान कृष्ण की एक मूर्ति निकालकर अपने पिता को दी. वो ही मूर्ति आज खंडेला के बांके बिहारी मंदिर में स्थापित है. यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर सिर्फ कृष्ण भगवान की मूर्ति है बाकी अन्य मंदिरों में राधा कृष्ण की मूर्तियां देखने को मिलेगी.

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108 प्रकार की जड़ी-बूटियों से महास्नान
जन्माष्टमी पर्व पर 108 प्रकार की जड़ी-बूटियों से मूर्ति का महास्नान करवाया जाता है. बांके बिहारी के मंदिर में जन्माष्टमी पर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. काफी वर्षों से श्याम भक्त मंडल जन्माष्टमी पर्व पर अपने भजनों की प्रस्तुति दोनों समय देता है. कस्बे में जन्माष्टमी पर मंदिर में भक्तों की काफी संख्या में भीड़ रहती है. सुबह और रात्रि दोनो समय मंदिर में कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है.

Intro:खण्डेला (सीकर)
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर बिहारी जी मंदिर में स्थित मूर्ति का 108 प्रकार की जड़ी बूटियों से महास्नान कराया जाता है जो कि ऐसा वंदावन में होता है
मंदिर का निर्माण यहाँ के राजा ने 600 वर्ष पूर्व करवाया था
जन्माष्टमी पर दोनो समय मनाया जाता है जन्मोत्सवBody:सीकर जिले के खंडेला कस्बे में स्थित बिहारी जी मंदिर में वंदावन में स्थित बिहारी जी के मंदिर की तरह जन्माष्टमी पर 108 प्रकार की विशेष जड़ीबूटियों से मूर्ति का महास्नान कराया जाता है। मंदिर की स्थापना लगभग 600 वर्ष पहले खंडेला राजा द्वारा करवाया गया । मंदिर में जन्माष्टमी पर्व पर अनूठे तरीके से 108 विशेष जड़ी बूटियों से भगवान कृष्ण की मूर्ति को महा स्नान कराया जाता है बताया जाता है कि यह एक ऐसा मंदिर है जहां सिर्फ कृष्ण जी की मूर्ति स्थापित है बाकी अन्य मंदिरों में कृष्ण राधा की मूर्तियां देखने को मिलेगी। शास्त्री मनोज कुमार पारीक ने बताया कि बिहारी जी का मंदिर का निर्माण लगभग 600 वर्ष पूर्व खंडेला के राजा ने करवाया था। मनोज कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि पुरोहित समाज के परशुराम पुरोहित थे जो खण्डेला राजघराने के गुरु थे उन्हीं के पुत्री थी करमैति बाई। करमैति बाई भगवान कृष्ण की भक्ति थी। विवाह के समय करमैति बाई घर वालों को बिना बताए वंदावन के लिए रवाना हो गयी थी । जब इसकी सूचना उसके पिता परशुराम को लगी तो उन्होंने इसको लेकर खण्डेला राजा को अवगत करवाया। राजा ने आदेश के बाद धूड़ सवारों ने चारों तरफ करमैति बाई को ढूंढने का कार्य प्रारंभ किया धूड़ सवार जैसे ही करमैति बाई के नजदीक आने लगे तोकरमैति बाई एक मरे हुए ऊंट के खाल में छुप गयी।करमैति बाई ने 3 दिन 3 रात ऊंट के खाल में गुजारी। बदबू आने के कारण धूड़ सवार ऊँट के नजदीक नही गए के और वहां से रवाना हो गये। इसी बीच संतों का एक समूह उस रास्ते से निकल रहा था करमैति बाई भी उन संतों के साथ रवाना हो गई। गंगा में स्नान करने के बाद करमैति बाई वंदावन में ब्रह्कुंड के पास एक वटवृक्ष के नीचे भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई जब इसका सन्देश करमैति बाई के पिता परशुराम को मिली तो वह खंडेला राजा के साथ वंदावन जहां पर करमैति बाई भक्ति कर रही थी वहां पर गए और करमैति बाई घर को चलने के लिए कहा तो करमैति बाई ने कहा कि मुझे भगवान की भक्ति करनी है आप भी भगवान की भक्ति कीजिए। सभी इसी पर आधारित है तो खण्डेला राजा व उसके पिता परशुराम ने भगवान की भक्ति के आधार के लिए करमैति बाई को बोला तो करमैति बाई ने उसी समय यमुना नदी से भगवान कृष्ण की एक मूर्ति निकालकर अपने पिता को दी वहीं मूर्ति आज खंडेला के बांके बिहारी मंदिर में स्थापित है यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर सिर्फ कृष्ण भगवान की मूर्ति है बाकी अन्य मंदिरों में राधा कृष्ण की मूर्तियां देखने को मिलेगी। जन्माष्टमी पर्व पर 108 प्रकार की जड़ी बूटियों से मूर्ति का महास्नान स्नान करवाया जाता है बांके बिहारी के मंदिर में जन्माष्टमी पर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है काफी वर्षों से श्याम भक्त मंडल जन्माष्टमी पर्व पर अपने भजनों की प्रस्तुति दोनों समय देता है कस्बे में जन्माष्टमी पर मंदिर में भक्तों की काफी संख्या में भीड़ रहती है सुबह और रात्रि दोनो समय मंदिर में कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है
बाईट मनोज कुमार पारीक शास्त्रीConclusion:खण्डेला (सीकर)
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर बिहारी जी मंदिर में स्थित मूर्ति का 108 प्रकार की जड़ी बूटियों से महास्नान कराया जाता है जो कि ऐसा वंदावन में होता है
मंदिर का निर्माण यहाँ के राजा ने 600 वर्ष पूर्व करवाया था
जन्माष्टमी पर दोनो समय मनाया जाता है जन्मोत्सव
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