राजसमंद. वीरों की जन्मभूमि राजस्थान के वीर जवान ओंकार सिंह की शहादत के करीब 35 साल बाद भी शहीद की विधवा को सरकारी मदद का इंतजार है. लेकिन वीरांगना ने भी हिम्मत दिखाते हुए कहा- सरकार ने तो मदद के नाम पर कुछ नहीं किया. पर इकलौता बेटा फौज में है और कश्मीर में तैनात है. अगर वो भी शहादत पाता है तो भी कोई गम नहीं.
राजस्थान की धरती में एक बात निराली है कि इसकी मिट्टी में ऐसे वीर जवानों को जन्म दिया है जो पूरी की पूरी पीढीयां अपनी मातृभूमि के नाम पर कुर्बान कर दे. पर एक सैनिक जब देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देता है तो उसे भरोसा होता है कि पूरा देश उसके परिवार के साथ खड़ा रहेगा. लेकिन अपने पति को 35 साल पहले खो चुकी शहीद की वीरांगना का कहना है कि उसे सरकारी मदद के नाम पर अभी तक कुछ नहीं मिला है.
खास बात यह है कि जब वीरांगना ने अपने पति को खोया था तो उसके पुत्र की उम्र महज 2 वर्ष थी. सरकार ने शहीद के अंतिम संस्कार के समय 60 हजार रुपये की राशि परिजनों को दी. लेकिन वीरांगना का कहना है कि करीब 2 लाख रुपये तो अंतिम संस्कार के वक्त ही खर्च हो गए. उस समय की तत्कालीक सरकार ने शहीद के परिवार के लिए एक पेट्रोंल पंप या एक गैस एंजेसी देने की घोषणा की. साथ ही 25 बीघा जमीन देने का भी वादा किया लेकिन आज तक शहीद के परिवार को कुछ किश्तों के रूप में पौने दो लाख रुपये की रकम ही प्राप्त हुई है.
1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार में ओकार सिंह शहीद हुए. घर में अपनी पत्नी और दो साल के बच्चे को देश के भरोसे छोड़ गए. लेकिन शहीद की वीरांगना ने भी हार नहीं मानी और बिना किसी सरकारी मदद के मजदूरी कर बच्चे की परवरिश की. जिसका परिणाम भी उन्हें देखनें को मिला और वह बच्चा लक्ष्मणसिंह वर्तमान में 16वीं बटालियन में कश्मीर में तैनात हैं. और आज कश्मीर में भारतीय सेना का अंग है. और जब वीरांगना से पुत्र के बारे में पूछा गया तो वीरांगना ने स्पष्ट किया वे राजपूत हैं और राजपूतों का काम ही देश के लिए लड़ना होता है. यदि उनका पुत्र भी देश के लिए शहीद होता है तो उन्हे गर्व ही महसूस होगा.