ETV Bharat / state

यहां आज भी 'औरंगजेब' अपनी दाढ़ी से साफ करता है श्रीनाथजी मंदिर की 9 सीढ़ियां... - Badshah Palaki Nathdwara News

श्रीनाथजी मंदिर विश्वभर में अपनी एक अलग छवि रखता है. हर साल लाखों-करोड़ों लोग श्रीनाथजी के दर्शन के लिए नाथद्वारा आते हैं. साथ ही यहां की अद्भुत परम्पराओं को देखने भी आते हैं. ऐसी ही एक परंपरा है, धुलंडी (होली) पर निकलने वाली बादशाह की सवारी. आइए आपको बताते हैं क्या है ये परंपरा...

Badshah Palaki Nathdwara News, श्रीनाथ जी मंदिर होली नाथद्वारा राजसमंद
बादशाह की पालकी
author img

By

Published : Mar 10, 2020, 8:46 AM IST

Updated : Mar 10, 2020, 9:27 AM IST

नाथद्वारा (राजसमंद). हर साल धुलंडी (होली) पर एक सवारी निकलती है, जिसे 'बादशाह की सवारी' कहा जाता है. यह सवारी डोल उत्सव की शाम 6 बजे नाथद्वारा के गुर्जरपुरा मोहल्ले के बादशाह गली से निकलती है.

यह एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें एक व्यक्ति को नकली दाढ़ी-मूंछ, मुगल पोशाक और आंखों में काजल लगाकर दोनों हाथों में श्रीनाथजी की छवि देकर उसे पालकी में बैठाया जाता है. इस सवारी की अगवानी मंदिर मंडल का बैंड बांसुरी बजाते हुए करता है. यह सवारी गुर्जरपुरा से होते हुए बड़ा बाज़ार से आगे निकलती है, तब बृजवासी पालकी में सवार बादशाह को गालियां देते है.

धुलंडी पर निकलती है नाथद्वारा में बादशाह की सवारी

सवारी मंदिर की परिक्रमा लगाकर श्रीनाथजी के मंदिर पहुंचती है, जहां वह बादशाह अपनी दाढ़ी से सूरजपोल की नवधाभक्ति के भाव से बनी नो सीढियां साफ करता है, जो कि लंबे समय से चली आ रही एक प्रथा है. उसके बाद मंदिर के परछना विभाग का मुखिया बादशाह को पैरावणी (कपड़े, आभूषण आदि) भेंट करते है. इसके बाद फिर से गालियों का दौर शुरू होता है. मंदिर में मौजूद लोग बादशाह को खरी-खोटी सुनते है और रसिया गान शुरू होता है.

पढ़ें- उदयपुर में रंगारंग होलिका दहन का आयोजन, देशी-विदेशी विदेशी पर्यटकों ने लिया आनंद

बादशाह ने अपनी दाढ़ी से साफ किया था गुलाल

यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है, कहा जाता है कि जब औरंगजेब मंदिरों में भगवान की मूर्तियों को खंडित करता हुआ मेवाड़ पहुंचा तो श्रीनाथजी के विग्रह को खंडित करने की मंशा से जब वह मंदिर में गया तो मंदिर में प्रवेश करते ही उसकी आंखों की रोशनी चली गयी, उस वक्त उसकी बेगम ने भगवान श्रीनाथजी से प्रार्थना कर माफी मांगी तब उसकी आंखें ठीक हो गयी.

पश्चाताप स्वरूप बादशाह को अपनी दाढ़ी से मंदिर की सीढ़ियों पर गिरी गुलाल को साफ करने के लिए बेगम ने कहा, तब बादशाह ने अपनी दाढ़ी से सूरजपोल के बाहर की नौ सीढ़ियों को उल्टे उतरते हुए साफ किया और तभी से इस घटना को एक परम्परा के रूप में मनाया जाता रहा है. उसके बाद बादशाह की मां ने एक बेशकीमती हीरा मंदिर को भेंट किया जिसे आज भी श्रीनाथजी के दाढ़ी में लगा देखते है.

नाथद्वारा (राजसमंद). हर साल धुलंडी (होली) पर एक सवारी निकलती है, जिसे 'बादशाह की सवारी' कहा जाता है. यह सवारी डोल उत्सव की शाम 6 बजे नाथद्वारा के गुर्जरपुरा मोहल्ले के बादशाह गली से निकलती है.

यह एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें एक व्यक्ति को नकली दाढ़ी-मूंछ, मुगल पोशाक और आंखों में काजल लगाकर दोनों हाथों में श्रीनाथजी की छवि देकर उसे पालकी में बैठाया जाता है. इस सवारी की अगवानी मंदिर मंडल का बैंड बांसुरी बजाते हुए करता है. यह सवारी गुर्जरपुरा से होते हुए बड़ा बाज़ार से आगे निकलती है, तब बृजवासी पालकी में सवार बादशाह को गालियां देते है.

धुलंडी पर निकलती है नाथद्वारा में बादशाह की सवारी

सवारी मंदिर की परिक्रमा लगाकर श्रीनाथजी के मंदिर पहुंचती है, जहां वह बादशाह अपनी दाढ़ी से सूरजपोल की नवधाभक्ति के भाव से बनी नो सीढियां साफ करता है, जो कि लंबे समय से चली आ रही एक प्रथा है. उसके बाद मंदिर के परछना विभाग का मुखिया बादशाह को पैरावणी (कपड़े, आभूषण आदि) भेंट करते है. इसके बाद फिर से गालियों का दौर शुरू होता है. मंदिर में मौजूद लोग बादशाह को खरी-खोटी सुनते है और रसिया गान शुरू होता है.

पढ़ें- उदयपुर में रंगारंग होलिका दहन का आयोजन, देशी-विदेशी विदेशी पर्यटकों ने लिया आनंद

बादशाह ने अपनी दाढ़ी से साफ किया था गुलाल

यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है, कहा जाता है कि जब औरंगजेब मंदिरों में भगवान की मूर्तियों को खंडित करता हुआ मेवाड़ पहुंचा तो श्रीनाथजी के विग्रह को खंडित करने की मंशा से जब वह मंदिर में गया तो मंदिर में प्रवेश करते ही उसकी आंखों की रोशनी चली गयी, उस वक्त उसकी बेगम ने भगवान श्रीनाथजी से प्रार्थना कर माफी मांगी तब उसकी आंखें ठीक हो गयी.

पश्चाताप स्वरूप बादशाह को अपनी दाढ़ी से मंदिर की सीढ़ियों पर गिरी गुलाल को साफ करने के लिए बेगम ने कहा, तब बादशाह ने अपनी दाढ़ी से सूरजपोल के बाहर की नौ सीढ़ियों को उल्टे उतरते हुए साफ किया और तभी से इस घटना को एक परम्परा के रूप में मनाया जाता रहा है. उसके बाद बादशाह की मां ने एक बेशकीमती हीरा मंदिर को भेंट किया जिसे आज भी श्रीनाथजी के दाढ़ी में लगा देखते है.

Last Updated : Mar 10, 2020, 9:27 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.