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शिक्षक दिवस: गुरू जिसने अपना सारा जीवन बच्चों का भविष्य संवारने में लगा दिया

ईटीवी भारत आपको 5 सितंबर यानि शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य पर भारत के उन गुरुओं के बारे में बता रहा हैं. जिन्होंने इस देश को आगे बढ़ाने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया है. इसी कड़ी में आपको हम बता रहे हैं राजसमंद के एक ऐसे गुरू की दास्तां. इन्होंने ऐसे-ऐसे बच्चों को शिक्षा दी, जिन्होंने आगे चलकर देश के विभिन्न उच्च पदों पर स्थान प्राप्त किया है.

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Published : Sep 5, 2019, 10:25 AM IST

Updated : Sep 5, 2019, 11:07 AM IST

राजसमंद. कहा जाता है कि गुरू अगर एक बार ठान ले तो रंक को राजा और राजा को रंक बना देता है. ऐसा ही कर दिखाया गुरुवर चतुर लाल कोठारी जी ने. इनके पढ़ाए बच्चे आज देश-विदेश में बड़े-बड़े पदों पर कार्यरत हैं. कोठारी हिन्दी के प्रध्यापक रह चुके हैं. इन्होंने अपना सारा जीवन बच्चों को पढ़ाने और उनका भविष्य संवारने में बीता दिया.

राजसमंद के ऐसे गुरु जिसने कई के भविष्य संवारें

बता दें कि साल 1958 में पहली बार कोठारी जी राजसमंद के एक छोटे से गांव राज्यावास के प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य बने. राज्यावास के प्राथमिक विद्यालय में हिंदी विषय पढ़ाने के लिए वे राजनगर से स्कूल तक का सफर साइकिल पर किया करते थे. उस समय इनके मन में यही भाव रहा कि किस प्रकार देश के छोटे-छोटे नन्हें बच्चे पढ़ कर आगे चलकर इस देश की नींव को मजबूत करेंगे और उच्च पदों पर स्थापित होंगे. वहीं सेवानिवृत्ति के बाद भी चतुर लाल कोठारी ने बच्चों को पढ़ाने का क्रम जारी रखा.

यह भी पढ़ें.आरएसएस और बीजेपी खत्म करना चाहती है आरक्षण : यूडीएच मंत्री धारीवाल

साथ ही कोठारी जी हिंदी की कविताएं लिखने और पढ़ने में काफी रूचि रखते हैं. इन्होंने अभी तक 15 सौ से अधिक कविताएं लिखी हैं. वहीं चार किताबें इन्होंने लिखी है, जिसमें 'चेतक के स्वर', 'हिया रो उदास', 'रोशनी के रंग', 'प्रेम निर्झर' हैं. इसके अलावा इन्होंने कई लघु कथाएं और करीब 100 पुस्तकों का समीक्षा भी की है. जो समीक्षा देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई है. वहीं वर्तमान शिक्षा पद्धति को लेकर कोठारी जी का कहना है कि वर्तमान माहौल में शिक्षा पद्धति में राजनीति हावी नजर आती है. कोठारी जी ने अपना सारा जीवन शिक्षा और बच्चों का भविष्य संवारने में व्यतित किया है. ऐसे गुरूओं को वे नमन करते हैं, जिन्होंने देश के भविष्य के लिए जीवन समर्पित कर दिया.

राजसमंद. कहा जाता है कि गुरू अगर एक बार ठान ले तो रंक को राजा और राजा को रंक बना देता है. ऐसा ही कर दिखाया गुरुवर चतुर लाल कोठारी जी ने. इनके पढ़ाए बच्चे आज देश-विदेश में बड़े-बड़े पदों पर कार्यरत हैं. कोठारी हिन्दी के प्रध्यापक रह चुके हैं. इन्होंने अपना सारा जीवन बच्चों को पढ़ाने और उनका भविष्य संवारने में बीता दिया.

राजसमंद के ऐसे गुरु जिसने कई के भविष्य संवारें

बता दें कि साल 1958 में पहली बार कोठारी जी राजसमंद के एक छोटे से गांव राज्यावास के प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य बने. राज्यावास के प्राथमिक विद्यालय में हिंदी विषय पढ़ाने के लिए वे राजनगर से स्कूल तक का सफर साइकिल पर किया करते थे. उस समय इनके मन में यही भाव रहा कि किस प्रकार देश के छोटे-छोटे नन्हें बच्चे पढ़ कर आगे चलकर इस देश की नींव को मजबूत करेंगे और उच्च पदों पर स्थापित होंगे. वहीं सेवानिवृत्ति के बाद भी चतुर लाल कोठारी ने बच्चों को पढ़ाने का क्रम जारी रखा.

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साथ ही कोठारी जी हिंदी की कविताएं लिखने और पढ़ने में काफी रूचि रखते हैं. इन्होंने अभी तक 15 सौ से अधिक कविताएं लिखी हैं. वहीं चार किताबें इन्होंने लिखी है, जिसमें 'चेतक के स्वर', 'हिया रो उदास', 'रोशनी के रंग', 'प्रेम निर्झर' हैं. इसके अलावा इन्होंने कई लघु कथाएं और करीब 100 पुस्तकों का समीक्षा भी की है. जो समीक्षा देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई है. वहीं वर्तमान शिक्षा पद्धति को लेकर कोठारी जी का कहना है कि वर्तमान माहौल में शिक्षा पद्धति में राजनीति हावी नजर आती है. कोठारी जी ने अपना सारा जीवन शिक्षा और बच्चों का भविष्य संवारने में व्यतित किया है. ऐसे गुरूओं को वे नमन करते हैं, जिन्होंने देश के भविष्य के लिए जीवन समर्पित कर दिया.

Intro:राजसमंद- गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपने.गोविंद दियो बताए.
यह कहावत हजारों वर्ष पुरानी है. जिसका अर्थ है.यदि गुरु और भगवान दोनों एक साथ आ जाएं तो कबीर दासजी मन में यह प्रश्न उठता है.कि सबसे पहले किसका चरण स्पर्श करें तो इस पर ईश्वर स्वयं बोल देते हैं.कि सर्वप्रथम गुरु के चरण स्पर्श करना श्रेष्ठ है. क्योंकि कि गुरु ने ही तो ईश्वर के पास जाने का मार्ग बतलाते हैं. तो वही ईटीवी भारत भी आपको 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस के उपलक्ष पर भारत के उन गुरुओं के बारे में बता रहा है. जिन्होंने इस देश को आगे बढ़ाने के लिए अपना सर्वोच्च दिया है.


Body:इसी कड़ी में आपको आज हम बता रहे हैं. राजसमंद जिले के एक ऐसे गुरु की दास्तां जिन्होंने ऐसे- ऐसे बच्चों को शिक्षा दी जो आगे चलकर देश के विभिन्न उच्च पदों पर स्थान प्राप्त किए हुए हैं. आज शिक्षक दिवस के उपलक्ष में ईटीवी भारत आपको उन सभी शिक्षकों के बारे में बता रहा है.जिन्होंने इस देश की नीम कहे जाने वाली युवा पीढ़ी को मजबूत शुद्दर्ड बनाने के लिए अपना सर्वोच्च लगा दिया. ऐसे ही गुरु है. राजस्थान के राजसमंद जिले के रहने वाले चतुर लाल कोठारी जी, कहते हैं कि गुरु अगर एक बार ठान ले तो रंक को राजा और राजा को रंक बनादे, ऐसा ही कर दिखाया गुरुवर चतुर लाल कोठारी जी ने 1958 का वर्ष जब पहली बार चतुर लाल कोठारी जी राजसमंद जिले के एक छोटा सा गांव राजावास के प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य बना दिया गया.बचपन से ही कोठारी जी की हिंदी के विषय में बहुत रूचि थी.बचपन में ही कविता लिखना गद्दे पढ़ना और आलेख लिखकर उन्हें अलग अलग पत्र-पत्रिकाओं में भेजना इनकी रुचि रही.1958 में इन्होंने राजावास के प्राथमिक विद्यालय में हिंदी का विषय पढ़ाने के लिए यह राजनगर से स्कूल तक का सफर साइकिल पर किया करते थे. यह बताते हैं. कि उस समय एक ही मन में भाव रहा करता था. किस प्रकार देश के छोटे छोटे नन्हे बच्चे पढ़ कर आगे चलकर इस देश की नींव को मजबूत करेंगे और उच्च पदों पर स्थापित होंगे. यह सपना इनका पूरा होता हुआ दिखाई दिया. यह बताते हैं. कि इनके द्वारा पढ़ाई हुए बच्चे आज देश के विभिन्न पदों पर विराजमान है.यह देखकर कहते हैं.कि यही मेरी सबसे बड़ी पूंजी है. आपको बता देंगी की कोठारी जी 1993 में राजसमंद जिले के राज्यावास कि राजकीय माध्यमिक विद्यालय से यह रिटायरमेंट हुए. लेकिन बच्चों को पढ़ाई के प्रति इनका लगाव इसके बाद भी नहीं छूटा. यह निरंतर बच्चों के बीच हिंदी भाषा को लेकर अलख जगाते रहे. इन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद भी इन्होंने बच्चों को पढ़ाने का क्रम जारी रखा. जिसमें यह राजसमंद के नव प्रभात पब्लिक स्कूल में इन्होंने 8 वर्ष तक बच्चों को हिंदी का विषय पढ़ाया जिसके बाद अनुव्रत विश्वभारती संस्था के साथ जुड़कर इन्होंने 2 वर्ष तक देश की प्रगति और विकास के लिए काम किया.इसके अलावा भी उन्होंने कई स्कूलों में बच्चों को निशुल्क में अध्ययन करवाया
कोठारी जी हिंदी में लिखने और पढ़ने की काफी रुचि रखते हैं. इन्होंने अभी तक 1500से अधिक कविताएं यह लिख चुके हैं. वही चार किताबे में इन्होंने लिखी है जिसमें चेतक के स्वर, हिया रो उदास,रोशनी के रंग, प्रेम निर्झर, इसके अलावा कई लघु कथाएं करीब 100 पुस्तकों का समीक्षा भी इन्होंने की है. जो समीक्षा देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई है.



Conclusion:वहीं वर्तमान शिक्षा पद्धति को लेकर कोठारी जी का कहना है.कि वर्तमान माहौल में शिक्षा पद्धति में राजनीति हावी नजर आती है. देखा जाए तो वर्तमान समय में स्कूलों में अध्यापकों की कमी है. उनका कहना है.कि सरकारी स्कूलों को अधिक से अधिक खोला जा रहा है. लेकिन स्कूलों में विषय के अध्यापक नहीं होने के कारण बच्चे अध्ययन नहीं कर पा रहे. उनका कहना है. कि जितनी तेज गति से नई स्कूल खोली जाती है. लेकिन बच्चों को पढ़ाने वाले अध्यापकों की कमी होने के कारण शिक्षा का स्तर गिर रहा है. वे कहते हैं. कि पहले गिलास भरा हुआ था. लेकिन अब गिलास को एक तरह से फैला दिया गया है.इससे शिक्षा फेल तो रही है.लेकिन उसकी गहराई नहीं आ रही. इससे राष्ट्र का चरित्र और नैतिकता का विकास नहीं हो पा रहा उनका कहना है.कि जो रुझान होना चाहिए.क्योंकि वर्तमान समय में हर बात के लिए हमें पश्चिम की ओर देखना पड़ता है.क्योंकि आज जो अंग्रेजी का वातावरण है. वर्तमान में साहित्य को देखा जाए तो अंग्रेजी की चपेट में आ चुका है. सहारा साहित्य जो लिखा जा रहा है. वह अंग्रेजी में लिखा जा रहा है. हिंदी के साहित्य की एक प्रकार से उपेक्षा हो रही है. हिंदी में अगर साहित्य हो तो उनका मानना है.कि देश का और ज्यादा विकास हो सकता है. वही उनका कहना है. कि देश के लिए शुभ संदेश है. कि हरगांव कस्बे का बालक बालिकाएं कुछ ऐसी प्रतिभाएं संपन्न बालक बालिकाएं निकल रही है. देश के विभिन्न पदों पर स्थापित हो रही है. इससे भविष्य की बहुत अधिक संभावना है. यह जो गांवों और नगरों वाला जो देश है. उसके पढ़े-लिखे बालक और बालिका देश के मुख्य पदों पर पहुंच रहे हैं. इससे देश में जो बड़ा परिवर्तन आ रहा है यह बहुत अच्छा है.
Last Updated : Sep 5, 2019, 11:07 AM IST
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