राजसमंद. कहा जाता है कि गुरू अगर एक बार ठान ले तो रंक को राजा और राजा को रंक बना देता है. ऐसा ही कर दिखाया गुरुवर चतुर लाल कोठारी जी ने. इनके पढ़ाए बच्चे आज देश-विदेश में बड़े-बड़े पदों पर कार्यरत हैं. कोठारी हिन्दी के प्रध्यापक रह चुके हैं. इन्होंने अपना सारा जीवन बच्चों को पढ़ाने और उनका भविष्य संवारने में बीता दिया.
बता दें कि साल 1958 में पहली बार कोठारी जी राजसमंद के एक छोटे से गांव राज्यावास के प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य बने. राज्यावास के प्राथमिक विद्यालय में हिंदी विषय पढ़ाने के लिए वे राजनगर से स्कूल तक का सफर साइकिल पर किया करते थे. उस समय इनके मन में यही भाव रहा कि किस प्रकार देश के छोटे-छोटे नन्हें बच्चे पढ़ कर आगे चलकर इस देश की नींव को मजबूत करेंगे और उच्च पदों पर स्थापित होंगे. वहीं सेवानिवृत्ति के बाद भी चतुर लाल कोठारी ने बच्चों को पढ़ाने का क्रम जारी रखा.
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साथ ही कोठारी जी हिंदी की कविताएं लिखने और पढ़ने में काफी रूचि रखते हैं. इन्होंने अभी तक 15 सौ से अधिक कविताएं लिखी हैं. वहीं चार किताबें इन्होंने लिखी है, जिसमें 'चेतक के स्वर', 'हिया रो उदास', 'रोशनी के रंग', 'प्रेम निर्झर' हैं. इसके अलावा इन्होंने कई लघु कथाएं और करीब 100 पुस्तकों का समीक्षा भी की है. जो समीक्षा देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई है. वहीं वर्तमान शिक्षा पद्धति को लेकर कोठारी जी का कहना है कि वर्तमान माहौल में शिक्षा पद्धति में राजनीति हावी नजर आती है. कोठारी जी ने अपना सारा जीवन शिक्षा और बच्चों का भविष्य संवारने में व्यतित किया है. ऐसे गुरूओं को वे नमन करते हैं, जिन्होंने देश के भविष्य के लिए जीवन समर्पित कर दिया.