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स्पेशल स्टोरी: एक अनोखा गांव...यहां हजारों सालों से बन रही हैं मिट्टी की मूर्तियां

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Published : Aug 31, 2019, 1:04 PM IST

Updated : Aug 31, 2019, 2:10 PM IST

नाथद्वारा तहसील में लगने वाले मोलेला ग्राम में पिछले 800 सालों से मिट्टी की प्रतिमाएं बनाने का कार्य किया जा रहा है. इस काम को करने वाले इन परिवारों का कुनबा पिछले 800 सालों से मिट्टी की मूर्ति बनाता आ रहा है. गणेश चतुर्थी का त्योहार को देखते हुए फिलहाल इस गांव के सभी परिवार गणपति की मूर्तियां बनाने में लगे हुए हैं.

clay sculptures rajsamand, मिट्टी की मूर्तियां नाथद्वारा

राजसमंद. नाथद्वारा तहसील में लगने वाले मोलेला गांव में पिछले 800 सालों से मिट्टी की प्रतिमाएं बनाने का कार्य किया जा रहा है. इस काम को करने वाले इन परिवारों का कुनबा पिछले 800 सालों से मिट्टी की मूर्ति बनाते आ रहा है. एक छोटा सा गांव मोलेला, जिनमें से करीब 30 परिवार कुम्हारों के हैं. यह एक ही कुनबा है. जो पिछले 800 सालों से मिट्टी की मूर्तियां बनाता आ रहा है. इनकी मूर्तियां देश ही नहीं वरन विदेश में भी खासी पहचान रखती है.

नाथद्वारा में हजारों सालों से बन रही है मिट्टी की मूर्तियां

मोलेला गांव के खेमराज कुम्हार को साल 1977 में सरकार ने दिल्ली में लगे कला मेले में आमंत्रित किया था. उनकी कला को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया. देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लोगों ने मोलेला की टेराकोटा आर्ट को काफी पसंद किया. उनकी इस कला के मुरीद खुद देश के राष्ट्रपति हुए. उन्होंने 1981 में खेमराज को राष्ट्रपति पुरस्कार भी दिया. इसके बाद इस गांव मे बाहर से आने वाले लोगों की संख्या में काफी इजाफा हो गया.

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हालांकि मोलेला की यह मूर्तियां इससे पहले भी देश के गुजरात महाराष्ट्र मध्य प्रदेश सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में अपनी विशिष्ट पहचान रखती थी. लेकिन राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने के बाद इस कला को विश्व पटल पर दिखाने के बाद विदेशों से भी इस कला के दीवाने लोग आते हैं. खेमराज और उनके छोटे भाई कई देशों की यात्रा कर चुके हैं. कई देशों ने तो उन्हें अपने यहां उनकी कला दिखाने व अन्य लोगों को सिखाने के लिए आमंत्रित किया था.

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खेमराज के बाद उनके छोटे भाई मोहनलाल कुम्हार को भी साल 2012 में पदम श्री अवार्ड से नवाजा गया था. फिलहाल खेमराज के पुत्र व मोहनलाल के पुत्र इस कला को अपने पुरखों की इस विरासत को संभाले हुए हैं. इनकी बनी गणेश प्रतिमाएं पूर्णता इको फेंडली होते हैं, जो शुद्ध मिट्टी से बनी है. प्रतिमाएं पानी में डालते ही गुल जाती हैं. इन पर वाटर कलर स्टोन कलर किया जाता है. जो कि पानी के किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा है. हालांकि इनकी मूर्तियां पीओपी की बजाए कुछ महंगी होती हैं. लेकिन पर्यावरण के लिहाज से यह मूर्तियां काफी अनुकूल रहती हैं.

पढ़ें- आमेर मावठे को बीसलपुर बांध से भरने की योजना से नहीं प्रभावित होगी पेयजल सप्लाई

गणेश चतुर्थी का त्योहार को देखते हुए फिलहाल इस गांव के सभी परिवार गणपति की मूर्तियां बनाने में लगे हुए हैं. हालांकि पीओ की मूर्तियों के चलन होने और मिट्टी से बनी इन मूर्तियों के थोड़ा महंगा होने से इनके खरीदार आसानी से नहीं मिल पाते. वहीं सरकार भी टेराकोटा आर्ट बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से कोई विशेष कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.

राजसमंद. नाथद्वारा तहसील में लगने वाले मोलेला गांव में पिछले 800 सालों से मिट्टी की प्रतिमाएं बनाने का कार्य किया जा रहा है. इस काम को करने वाले इन परिवारों का कुनबा पिछले 800 सालों से मिट्टी की मूर्ति बनाते आ रहा है. एक छोटा सा गांव मोलेला, जिनमें से करीब 30 परिवार कुम्हारों के हैं. यह एक ही कुनबा है. जो पिछले 800 सालों से मिट्टी की मूर्तियां बनाता आ रहा है. इनकी मूर्तियां देश ही नहीं वरन विदेश में भी खासी पहचान रखती है.

नाथद्वारा में हजारों सालों से बन रही है मिट्टी की मूर्तियां

मोलेला गांव के खेमराज कुम्हार को साल 1977 में सरकार ने दिल्ली में लगे कला मेले में आमंत्रित किया था. उनकी कला को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया. देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लोगों ने मोलेला की टेराकोटा आर्ट को काफी पसंद किया. उनकी इस कला के मुरीद खुद देश के राष्ट्रपति हुए. उन्होंने 1981 में खेमराज को राष्ट्रपति पुरस्कार भी दिया. इसके बाद इस गांव मे बाहर से आने वाले लोगों की संख्या में काफी इजाफा हो गया.

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हालांकि मोलेला की यह मूर्तियां इससे पहले भी देश के गुजरात महाराष्ट्र मध्य प्रदेश सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में अपनी विशिष्ट पहचान रखती थी. लेकिन राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने के बाद इस कला को विश्व पटल पर दिखाने के बाद विदेशों से भी इस कला के दीवाने लोग आते हैं. खेमराज और उनके छोटे भाई कई देशों की यात्रा कर चुके हैं. कई देशों ने तो उन्हें अपने यहां उनकी कला दिखाने व अन्य लोगों को सिखाने के लिए आमंत्रित किया था.

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खेमराज के बाद उनके छोटे भाई मोहनलाल कुम्हार को भी साल 2012 में पदम श्री अवार्ड से नवाजा गया था. फिलहाल खेमराज के पुत्र व मोहनलाल के पुत्र इस कला को अपने पुरखों की इस विरासत को संभाले हुए हैं. इनकी बनी गणेश प्रतिमाएं पूर्णता इको फेंडली होते हैं, जो शुद्ध मिट्टी से बनी है. प्रतिमाएं पानी में डालते ही गुल जाती हैं. इन पर वाटर कलर स्टोन कलर किया जाता है. जो कि पानी के किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा है. हालांकि इनकी मूर्तियां पीओपी की बजाए कुछ महंगी होती हैं. लेकिन पर्यावरण के लिहाज से यह मूर्तियां काफी अनुकूल रहती हैं.

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गणेश चतुर्थी का त्योहार को देखते हुए फिलहाल इस गांव के सभी परिवार गणपति की मूर्तियां बनाने में लगे हुए हैं. हालांकि पीओ की मूर्तियों के चलन होने और मिट्टी से बनी इन मूर्तियों के थोड़ा महंगा होने से इनके खरीदार आसानी से नहीं मिल पाते. वहीं सरकार भी टेराकोटा आर्ट बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से कोई विशेष कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.

Intro:राजसमंद- जिले के नाथद्वारा तहसील में लगने वाले मोलेला ग्राम मैं पिछले 800 सालों से मिट्टी की प्रतिमाएं बनाने का कार्य किया जा रहा है. इस काम को करने वाले इन परिवारों का कुनबा पिछले 800 वर्षों से मिट्टी की मूर्ति बनाते आ रहा है.एक छोटा सा गांव मोलेला, जिनमें से करीब 30 परिवार कुम्हारों के हैं. यह एक ही कुनबा है.जो पिछले 800 वर्षों से मिट्टी की मूर्तियां बनाता आ रहा है. इनकी मूर्तियां देश ही नहीं वरन विदेश मैं भी खासी पहचान रखती है. मोलेला गांव के खेमराज कुम्हार को 1977 में सरकार ने दिल्ली में लगे कला मेले में आमंत्रित किया था. उनकी कला को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया. देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लोगों ने मोलेला की टेराकोटा आर्ट को काफी पसंद किया. उनकी इस कला के मुरीद खुद देश के राष्ट्रपति हुए.


Body:उन्होंने 1981 में खेमराज को राष्ट्रपति पुरस्कार भी दिया. इसके बाद इस गांव मे बाहर से आने वाले लोगों की संख्या में काफी इजाफा हो गया. हालांकि मोलेला की यह मूर्तियां इससे पहले भी देश के गुजरात महाराष्ट्र मध्य प्रदेश सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में अपनी विशिष्ट पहचान रखती थी. लेकिन राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने के बाद इस कला को विश्व पटल पर दिखाने के बाद विदेशों से भी इस कला के दीवाने लोग आते हैं. खेमराज और उनके छोटे भाई कई देशों की यात्रा कर चुके हैं.कई देशों ने तो उन्हें अपने यहां उनकी कला दिखाने व अन्य लोगों को सिखाने के लिए आमंत्रित किया था. खेमराज के बाद उनके छोटे भाई मोहनलाल कुम्हार को भी 2012 में पदम श्री अवार्ड से नवाजा गया था. फिलहाल खेमराज के पुत्र व मोहनलाल के पुत्र इस कला को अपने पुरखों की इस विरासत को संभाले हुए हैं.इनकी बनी गणेश प्रतिमाएं पूर्णता इको फेंडली होते हैं. शुद्ध मिट्टी से बनी है. प्रतिमाएं पानी में डालते ही गुल जाती हैं.इन पर वाटर कलर स्टोन कलर किया जाता है. जो कि पानी के किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा है. हालांकि इनकी मूर्तियां पीओके की बजाए कुछ महंगी होती हैं. लेकिन पर्यावरण के लिहाज से यह मूर्तियां काफी अनुकूल रहती हैं.
अपनी इस कला को खेमराज के पुत्र लोगर कुम्हार इसे देवी का आशीर्वाद बताते हैं.उन्होंने इसके पीछे एक किवदंती भी सुनाई उन्होंने बताया कि उनके पुरखों को दिखाई नहीं देता था. ऐसे में एक दिन उनके सपने में लोक देवता देवनारायण भगवान आए और उन्होंने उन्हें अपनी मूर्ति बनाने के लिए कहा इस पर आंखें नहीं होने की बात कहने पर लोक देवता ने उन्हें आशीर्वाद दिया जिससे कि उनकी आंखों की ज्योति आ गई.इसके बाद उन्होंने भगवान की मूर्तियां बनाना शुरू किया. इन मूर्तियों को भी वरदान है.इन्हें लेने के लिए बाहर से लोग खींचे चले आते हैं. इसलिए इस गांव के लोग गांव में रहकर ही मूर्ति बनाने का काम करते हैं. लेकिन बेचने बाहर जाना नहीं पड़ता भगवान के आशीर्वाद के चलते ही देश के विभिन्न हिस्सों से लोग इन मूर्तियों को लेने यहां पहुंचते हैं. श्रद्धा इतनी कि लोग पैदल ही यहां पहुंचते हैं.बस सिर पर रखकर इन मूर्तियों को अपने गांव तक ले जाते हैं. यहां आने वाले लोग गुजरात और महाराष्ट्र पैदल यात्रा कर यहां तक पहुंचते हैं। उन्होंने बताया कि पहले लोग पैदल ही चले आते थे. लेकिन अब समय बदला तो लोग अपने वाहनों से यहां पहुंचते हैं.


Conclusion:गणेश चतुर्थी का त्यौहार को देखते हुए फिलहाल इस गांव के सभी परिवार गणपति की मूर्तियां बनाने में लगे हुए हैं. हालांकि पीओ की मूर्तियों के चलन होने और मिट्टी से बनी इन मूर्तियों के थोड़ा महंगा होने से इनके खरीदार आसानी से नहीं मिल पाते.वहीं सरकार भी टेराकोटा आर्ट बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से कोई विशेष कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.इसे लेकर यह कुम्हार कुनबा काफी आहट भी है. इसलिए ईटीवी भारत भी आपसे अपील करता है. कि इस छोटे से गांव की कहानी सुनकर आपको भी आने वाले गणेश चतुर्थी के पर्व पर मिट्टी की प्रतिमा अपने घर पर स्थापित करनी चाहिए.
बाइट- लोगर पिता खेमराज कुम्हार
बाइट- जमुना देवी पत्नी लोगर कुम्हार
बाइट- दिनेश चंद्र पिता मोहनलाल कुम्हार
Last Updated : Aug 31, 2019, 2:10 PM IST
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