राजसमंद. राज्य सरकार आए दिन प्रदेश की चिकित्सा सुविधा बेहतरीन बनाने का दावा करती है लेकिन सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था इन दावों की सारी पोल खोलती नजर आ रही है. राजसमंद जिले का आरके अस्पताल की स्थिति बेहद खस्ताहाल है. अस्पताल के कई विभाग डॉक्टरों के अभाव में बंद होने के कगार पर है.
आरके अस्पताल में रोजाना करीब 600 से 700 लोग ओपीडी में दिखाने आते हैं लेकिन यहां कि स्थिति बेहद खराब है. बता दें कि अस्पताल में डॉक्टरों के 57 पद स्वीकृत हैं. उनमें से वर्तमान में मात्र 20 डॉक्टर ही यहां कार्यरत हैं. अस्पताल में कई आवश्यक पद खाली हैं. 150 बेड के इस अस्पताल में शहर सहित आसपास के गांव से काफी संख्या में मरीज इलाज कराने आते हैं लेकिन कई विभागों में डॉक्टर नहीं होने से मरीजों को स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पा रहा है.
कुल स्वीकृत पद | रिक्त पद | |
कनिष्ठ विशेषज्ञ | 17 | 11 |
चिकित्सा अधिकारी | 28 | 21 |
नर्सिंग अधीक्षक | 3 | 3 |
वहीं अस्पताल में कई अन्य पद भी खाली हैं. आरके अस्पताल की वर्तमान स्थिति को लेकर ईटीवी भारत ने अस्पताल के पीएमओ डॉक्टर ललित पुरोहित से बातचीत की. बातचीत में डॉक्टर ललित ने बताया कि अस्पताल में डॉक्टरों के कई पद रिक्त हैं. इसकी सूचना प्रशासन को दी गई है.
नेत्र, मानसिक रोग विभाग बंद होने के कगार पर
बता दें कि अस्पताल में मानसिक रोग विभाग के डॉक्टर का अलवर तबादला हो गया था. जबकि सवाई माधोपुर से मानसिक विशेषज्ञ का राजसमंद स्थानांतरण हुआ लेकिन उन्होंने ज्वाइन ही नहीं किया. इसके चलते मानसिक रोग विभाग बंद पड़ा है. यही हालत नेत्र विभाग की भी है. नेत्र विभाग के डॉक्टर ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी. अब लंबे समय से नेत्र विभाग में कोई डॉक्टर नहीं है. इस विभाग में कोई डॉक्टर नहीं होने के कारण मरीजों को छोटे-मोटे ऑपरेशन के लिए उदयपुर और भीलवाड़ा जाना पड़ रहा है.
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यही स्थिति ट्रॉमा सेंटर की भी है. एक समय था, जब हड्डियों के तीन विशेषज्ञ चिकित्सक यहां सेवा दे रहे थे. जिससे रोजाना यहां औसत पांच ऑपरेशन होते थे लेकिन एक-एक कर सभी के तबादले हो गए. आज स्थिति ऐसी है कि ट्रॉमा सेंटर बंद होने के कगार पर है.
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इलाज के लिए हॉस्पीटल आए कई मरीजों ने ईटीवी भारत से बातचीत में अपना दर्द बयां किया. मरीजों का कहना है कि डॉक्टर के पद रिक्त होने के कारण उन्हें दूसरो जिलों में इलाज के लिए जाना पड़ता है. वहीं कोरोना संक्रमण के इस दौर में बाहर जाना खतरे से खाली नहीं है.
मरीजों ने मांग की कि सरकार को इस समस्या का जल्द ही समाधान करना चाहिए. अस्पताल में डॉक्टर नहीं होने से मरीजों को अब उदयपुर और भीलवाड़ा के चक्कर लगाने पड़ते हैं. जिससे न केवल मरीजों को बल्कि परिजनों को भी मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ती है.