प्रतापगढ़. नवरात्र के दिनों में मंदिरों में बलि देने की प्राचीन परंपरा (Tradition of Sacrifices After Navratri in Rajasthan) आज भी जिंदा है. भारत में बलि प्रथा पर प्रतिबंध लगने के बाद भी बलि देने की हैरतअंगेज बात सामने आती रहती है. प्रतापगढ़ जिले के अरनोद उपखंड मुख्यालय के अचनारा के खेड़ी माताजी चामुंडा माता मंदिर पर बली की अनोखी प्रथा का आज भी निर्वहन किया जा रहा है, लेकिन यहां बिना किसी जीव हत्या के अनोखी रूप से बली की इस परंपरा को जिंदा रखा गया है.
नवरात्र के अंतिम दिन चामुंडा माता मंदिर अचनारा में भक्तों ने लंबी कतारों में लगकर (Unique Story of Chamunda Mata) देवी के दर्शन किए. फूल-मालाओं धूप-दीप और नैवेद्य से भक्तों ने सामूहिक रूप से माता की पूजा-अर्चना की. मंत्र उच्चारण और आरती के साथ घंटा ध्वनि से सारे दिन मंदिर परिसर गूंजते रहे. मंदिरों के आसपास बाजारों में भी लोगों की खासी भीड़ देखने को मिली.
वैसे तो माता कुष्मांडा को कद्दू की बलि चढ़ाई जाती है, लेकिन चामुंडा माता मंदिर अचनारा में जीव हत्या नहीं करने के संदेश के साथ बकरे की जगह नवरात्रि के अंतिम दिन कद्दू की बलि (Pumpkin Sacrifice at Pratapgarh Chamunda Mata Temple) देकर माता को प्रसन्न किया जाता है. इस दौरान यहां भक्तों की बड़ी तादाद में भीड़ जमा होती है. बलि से पहले भक्तों ने माता के जयकारों के साथ भक्ति-भजन और ढोल की थाप पर नृत्य कर माता को प्रसन्न किया.
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पूजा-अनुष्ठान और यज्ञ-हवन के बाद माता की चौकी की स्थापना की गई. वैसे तो यहां बकरे की बलि देने की प्रथा है, लेकिन जीव हत्या को रोकने की मुहिम के चलते (Campaign to Stop Animal Killing) यहां पर माता को कद्दू की बलि दी जाती है. अनुष्ठान, पूजा और बलि की प्रथा के बाद महा प्रसादी का आयोजन किया जाता है, जिसमें जिले भर के श्रद्धालु भाग लेते हैं. चामुंडा माता का मंदिर जिले का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पर माता को कद्दू की बलि चढ़ाई जाती है.
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