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सीतामाता अभयारण्य का अस्तित्व संकट में, लगातार जारी है पेड़ों की कटाई

पेड़-पौधे और पक्षियों के लिए देश भर में प्रसिद्ध सीतामाता अभयारण्य का अस्तित्व संकट में है. वन भूमि में अतिक्रमण करने के उद्देश से बड़ी तादाद में हरे पेड़ों को काट दिया गया है. वन सुरक्षा समिति के सदस्यों ने गश्त के दौरान कई कटे हुए पेड़ों को देखा है. इस बीच ग्रामीणों ने जिला कलेक्टर अनुपमा जोरवाल को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंप कर वनों की सुरक्षा की मांग की है.

Pratapgarh news, protection of forests, Sitamata Sanctuary
सीतामाता अभयारण्य का संकट में अस्तित्व
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Published : Sep 8, 2020, 7:37 AM IST

प्रतापगढ़. सीतामाता जंगल को 40 साल पहले 1979 में सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य नाम दिया गया था. तब यहां 150-200 लोग रहते थे. अब इस अभयारण्य और इसके आसपास के वन्य क्षेत्रों में आबादी बहुत बढ़ चुकी है. उड़न गिलहरी समेत कई प्रजातियों के पेड़-पौधे और पक्षियों के लिए देश भर में प्रसिद्ध सीतामाता अभयारण्य का अस्तित्व संकट में है.

सीतामाता अभयारण्य का संकट में अस्तित्व

ऐसा ही मामला देवगढ़ क्षेत्र के चिकलाड़ वन खंड में बड़ी तादाद में हरे पेड़ों को वन भूमि में अतिक्रमण करने के उद्देश से काट दिया गया है. वन सुरक्षा समिति के सदस्यों ने गश्त के दौरान कई कटे हुए पेड़ों को देखा है. वन सुरक्षा समिति सदस्य लक्ष्मण सिंह ने पेड़ काटने की सूचना देवगढ़ रेंज में भी दी है. सोमवार को जिला कलेक्टर अनुपमा जोरवाल को क्षेत्र के ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंप कर वनों की सुरक्षा की मांग की है.

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सीतामाता अभयारण्य का संकट में अस्तित्व

वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष ठाकुर लक्ष्मण सिंह कुलार ने बताया कि हमारे पर्यावरण वन और वन्य जीवों के संरक्षण और विकास के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने काफी कुछ किया था. इसके बाद वन अधिकार कानून लाया गया. इसके पीछे मंशा थी कि जो लोग बरसों से वनों में रहते आए हैं और वनों से ही उनकी आजीविका चलती है.

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सीतामाता अभयारण्य का संकट में अस्तित्व

उन्हें वन अधिकार मिलने चाहिए. हालांकि इस कानून का भी दुरुपयोग हो रहा है. जंगल की बर्बादी की स्थिति गूगल मैप पर भी साफ नजर आ रही है. 2008 में वन अधिकार कानून पास होने से पहले तक प्रतापगढ़ के जंगल की अच्छी स्थिति थी. वन अधिकार कानून सन 2008 से लागू होने के बाद वन अधिकार लेने के लिए लाखों पेड़ पौधे काट दिए गए हैं. खेत में मकान कुएं तक खोद दिए गए हैं.

Pratapgarh news, protection of forests, Sitamata Sanctuary
सीतामाता अभयारण्य का संकट में अस्तित्व

यह भी पढ़ें- प्रेम प्रसंग के कथित मामले में दो युवकों के साथ अमानवीय बर्ताव, मारपीट का वीडियो वायरल

क्षेत्र के जंगलों में सन 2014 से 2018 तक वन विभाग ने लाखों रुपए खर्च कर हजारों की तादात में पेड़ लगाए थे. जंगल में कई प्रजाति के पौधे लगाकर वन्यजीवों के लिए निवास स्थान बनाया गया था. लोगों ने अतिक्रमण की नियत से जंगल को खत्म होने की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है. सीतामाता अभयारण्य में बिना अनुमति जाना संभव नहीं है. वन विभाग की पाबंदियों के बाद भी हजारों लोग बस गए हैं. अभयारण्य क्षेत्र में खेती की जा रही है और पेड़ काटे जा रहे हैं. वन्य प्रेमी लक्षमण सिंह चिकलाड़ ने कलेटर के माध्यम से क्षेत्र के जंगलों को बचाने की मांग की है.

प्रतापगढ़. सीतामाता जंगल को 40 साल पहले 1979 में सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य नाम दिया गया था. तब यहां 150-200 लोग रहते थे. अब इस अभयारण्य और इसके आसपास के वन्य क्षेत्रों में आबादी बहुत बढ़ चुकी है. उड़न गिलहरी समेत कई प्रजातियों के पेड़-पौधे और पक्षियों के लिए देश भर में प्रसिद्ध सीतामाता अभयारण्य का अस्तित्व संकट में है.

सीतामाता अभयारण्य का संकट में अस्तित्व

ऐसा ही मामला देवगढ़ क्षेत्र के चिकलाड़ वन खंड में बड़ी तादाद में हरे पेड़ों को वन भूमि में अतिक्रमण करने के उद्देश से काट दिया गया है. वन सुरक्षा समिति के सदस्यों ने गश्त के दौरान कई कटे हुए पेड़ों को देखा है. वन सुरक्षा समिति सदस्य लक्ष्मण सिंह ने पेड़ काटने की सूचना देवगढ़ रेंज में भी दी है. सोमवार को जिला कलेक्टर अनुपमा जोरवाल को क्षेत्र के ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंप कर वनों की सुरक्षा की मांग की है.

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सीतामाता अभयारण्य का संकट में अस्तित्व

वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष ठाकुर लक्ष्मण सिंह कुलार ने बताया कि हमारे पर्यावरण वन और वन्य जीवों के संरक्षण और विकास के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने काफी कुछ किया था. इसके बाद वन अधिकार कानून लाया गया. इसके पीछे मंशा थी कि जो लोग बरसों से वनों में रहते आए हैं और वनों से ही उनकी आजीविका चलती है.

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सीतामाता अभयारण्य का संकट में अस्तित्व

उन्हें वन अधिकार मिलने चाहिए. हालांकि इस कानून का भी दुरुपयोग हो रहा है. जंगल की बर्बादी की स्थिति गूगल मैप पर भी साफ नजर आ रही है. 2008 में वन अधिकार कानून पास होने से पहले तक प्रतापगढ़ के जंगल की अच्छी स्थिति थी. वन अधिकार कानून सन 2008 से लागू होने के बाद वन अधिकार लेने के लिए लाखों पेड़ पौधे काट दिए गए हैं. खेत में मकान कुएं तक खोद दिए गए हैं.

Pratapgarh news, protection of forests, Sitamata Sanctuary
सीतामाता अभयारण्य का संकट में अस्तित्व

यह भी पढ़ें- प्रेम प्रसंग के कथित मामले में दो युवकों के साथ अमानवीय बर्ताव, मारपीट का वीडियो वायरल

क्षेत्र के जंगलों में सन 2014 से 2018 तक वन विभाग ने लाखों रुपए खर्च कर हजारों की तादात में पेड़ लगाए थे. जंगल में कई प्रजाति के पौधे लगाकर वन्यजीवों के लिए निवास स्थान बनाया गया था. लोगों ने अतिक्रमण की नियत से जंगल को खत्म होने की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है. सीतामाता अभयारण्य में बिना अनुमति जाना संभव नहीं है. वन विभाग की पाबंदियों के बाद भी हजारों लोग बस गए हैं. अभयारण्य क्षेत्र में खेती की जा रही है और पेड़ काटे जा रहे हैं. वन्य प्रेमी लक्षमण सिंह चिकलाड़ ने कलेटर के माध्यम से क्षेत्र के जंगलों को बचाने की मांग की है.

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