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Special: पाली में कपड़ा उद्योग होंगे प्रदूषण मुक्त, CETP फाउंडेशन ने उठाए कदम

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Published : Dec 6, 2019, 11:21 AM IST

पाली में स्थित टेक्सटाइल उद्योगों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए जेडएलडी प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने के लिए सीईटीपी फाउंडेशन ने पहल कर दिया है. इसके लिए देश की प्रमुख 15 कंपनियों के प्रतिनिधियों और टेंडर कॉपी खरीदने वाली 11 कंपनियों ने प्रोजेक्ट को लेकर ट्रीटमेंट प्लांटों का अवलोकन किया.

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पाली में टेक्सटाइल उद्योग होंगे प्रदूषण मुक्त

पाली. शहर के टेक्सटाइल उद्योगों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रस्तावित जेडएलडी (जीरो लिक्विड डिस्चार्ज) प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने की दिशा में सीईटीपी फाउंडेशन ने पहला कदम बढ़ाया है. इसके तहत देश की प्रमुख 15 कंपनियों के प्रतिनिधियों ने पाली पहुंचकर प्रजेंटेशन दिया. टेंडर कॉपी खरीदने वाली 11 कंपनियों ने प्रोजेक्ट को लेकर ट्रीटमेंट प्लांटों का अवलोकन किया.

पाली में टेक्सटाइल उद्योग होंगे प्रदूषण मुक्त

वहीं टेंडर में तकनीकी बिंदुओं, उल्लेखनीय शर्तों और वित्तीय पहलुओं के बारे में सवाल रखे. साथ ही सीईटीपी पदाधिकारियों ने उक्त सवालों को लिखित में देने को कहा, ताकि आम उद्यमियों की बैठक में इसका निस्तारण कराया जा सके. सीईटीपी का दावा है कि दो-तीन दिन में उक्त कंपनी की तरफ से किए सवालों पर चर्चा करने के बाद फाइनेंशियल बिड पर चर्चा होगी.

यह भी पढ़ें- पाली : लोगों में रक्तदान की जागरूकता के लिए कार्यशाला का आयोजन

सीईटीपी पदाधिकारियों के अनुसार जनवरी में प्रोजेक्ट का कार्य आदेश जारी कर दिया जाएगा. शहर की फैक्ट्रियों से निकलने वाला रंगीन पानी को जीरो लिक्विड डिस्चार्ज प्रोजेक्ट लगाने को लेकर केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने सैद्धांतिक मंजूरी देने के बाद से ही सीईटीपी फाउंडेशन इसको लेकर गंभीरता से प्रयास कर रहा था क्योंकि 2 साल पहले भी केंद्र सरकार ने आईडीपीएस के तहत जेडएलडी को मंजूरी प्रदान कर दी थी.

नहीं हुआ था राशि का उपयोग...

पहली किस्त के रूप में सीईटीपी फाउंडेशन के खाते में 7.50 करोड़ रुपए की राशि जमा करवा दी गई थी, लेकिन सीईटीपी ने इस राशि का उपयोग नहीं किया. इसके चलते केंद्र सरकार ने इस राशि को वापस मांग ली थी. इसके चलते सीईटीपी को काफी मुश्किलों से दोबारा इस प्रोजेक्ट की मंजूरी मिली है. एनजीटी में सीईटीपी फाउंडेशन ने 18 महीने में ही प्रोजेक्ट को पूरा करने का शपथ पत्र भी दे चुका है.

जानकारी के अनुसार पाली में संचालित हो रही 700 से ज्यादा कपड़ा इकाइयों से निकलने वाला रंगीन प्रदूषित पानी लगातार बांडी नदी में बहने से उसके आस-पास के खेत बंजर होने लगे हैं. ऐसे में किसानों के उग्र आंदोलन के बाद एनजीटी ने हस्तक्षेप करते हुए पाली के कपड़ा इकाइयों पर सख्ती बरती है. इसके बाद पाली की कपड़ा इकाइयों पर संकट के काले बादल मंडराने लगे हैं.

यह भी पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: लंदन में राजस्थान के रणजीत सिंह कर रहे छात्र राजनीति, ईटीवी भारत से शेयर किये अपने अनुभव

एनजीटी ने पाली में संचालित हो रही सीईटीपी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को बांडी नदी में बहने वाले प्रदूषित पानी को ट्रीट करने के निर्देश दिए थे. वहीं पाली में स्थापित ट्रीटमेंट प्लांट से इस पानी को ट्रीट करके बांडी नदी में बहाने का दावा किया जा रहा था. लेकिन पिछले माह एनजीटी की ओर से भेजी गई एक टीम की सर्वे रिपोर्ट में सामने आया कि सीईटीपी फाउंडेशन की ओर से संचालित हो रहा ट्रीटमेंट प्लांट सिर्फ एक पंपिंग हाउस का कार्य कर रहा है. साथ ही प्लांट की ओर से बांडी नदी में बहाया जा रहा प्रदूषित पानी एनजीटी के मानकों पर खरा नहीं उतरा.

700 से ज्यादा कपड़ा इकाइयों पर संकट...

वहीं बांडी नदी और नहेड़ा बांध के प्रदूषण का कारण भी इस बहते पानी को ही बताया गया था. इसके बाद एनजीटी ने और सख्ती बरत दी, जिससे पाली में संचालित हो रही 700 से ज्यादा कपड़ा इकाइयों और इसमें काम करने वाले लगभग 50 हजार से ज्यादा श्रमिकों के रोजगार पर संकट बन आया है. ऐसे में सीईटीपी फाउंडेशन पाली में जेडएलडी स्थापित कर पाली की जीवन रेखा कहे जाने वाले कपड़ा उद्योग को जिंदा रखना चाहते हैं.

पाली. शहर के टेक्सटाइल उद्योगों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रस्तावित जेडएलडी (जीरो लिक्विड डिस्चार्ज) प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने की दिशा में सीईटीपी फाउंडेशन ने पहला कदम बढ़ाया है. इसके तहत देश की प्रमुख 15 कंपनियों के प्रतिनिधियों ने पाली पहुंचकर प्रजेंटेशन दिया. टेंडर कॉपी खरीदने वाली 11 कंपनियों ने प्रोजेक्ट को लेकर ट्रीटमेंट प्लांटों का अवलोकन किया.

पाली में टेक्सटाइल उद्योग होंगे प्रदूषण मुक्त

वहीं टेंडर में तकनीकी बिंदुओं, उल्लेखनीय शर्तों और वित्तीय पहलुओं के बारे में सवाल रखे. साथ ही सीईटीपी पदाधिकारियों ने उक्त सवालों को लिखित में देने को कहा, ताकि आम उद्यमियों की बैठक में इसका निस्तारण कराया जा सके. सीईटीपी का दावा है कि दो-तीन दिन में उक्त कंपनी की तरफ से किए सवालों पर चर्चा करने के बाद फाइनेंशियल बिड पर चर्चा होगी.

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सीईटीपी पदाधिकारियों के अनुसार जनवरी में प्रोजेक्ट का कार्य आदेश जारी कर दिया जाएगा. शहर की फैक्ट्रियों से निकलने वाला रंगीन पानी को जीरो लिक्विड डिस्चार्ज प्रोजेक्ट लगाने को लेकर केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने सैद्धांतिक मंजूरी देने के बाद से ही सीईटीपी फाउंडेशन इसको लेकर गंभीरता से प्रयास कर रहा था क्योंकि 2 साल पहले भी केंद्र सरकार ने आईडीपीएस के तहत जेडएलडी को मंजूरी प्रदान कर दी थी.

नहीं हुआ था राशि का उपयोग...

पहली किस्त के रूप में सीईटीपी फाउंडेशन के खाते में 7.50 करोड़ रुपए की राशि जमा करवा दी गई थी, लेकिन सीईटीपी ने इस राशि का उपयोग नहीं किया. इसके चलते केंद्र सरकार ने इस राशि को वापस मांग ली थी. इसके चलते सीईटीपी को काफी मुश्किलों से दोबारा इस प्रोजेक्ट की मंजूरी मिली है. एनजीटी में सीईटीपी फाउंडेशन ने 18 महीने में ही प्रोजेक्ट को पूरा करने का शपथ पत्र भी दे चुका है.

जानकारी के अनुसार पाली में संचालित हो रही 700 से ज्यादा कपड़ा इकाइयों से निकलने वाला रंगीन प्रदूषित पानी लगातार बांडी नदी में बहने से उसके आस-पास के खेत बंजर होने लगे हैं. ऐसे में किसानों के उग्र आंदोलन के बाद एनजीटी ने हस्तक्षेप करते हुए पाली के कपड़ा इकाइयों पर सख्ती बरती है. इसके बाद पाली की कपड़ा इकाइयों पर संकट के काले बादल मंडराने लगे हैं.

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एनजीटी ने पाली में संचालित हो रही सीईटीपी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को बांडी नदी में बहने वाले प्रदूषित पानी को ट्रीट करने के निर्देश दिए थे. वहीं पाली में स्थापित ट्रीटमेंट प्लांट से इस पानी को ट्रीट करके बांडी नदी में बहाने का दावा किया जा रहा था. लेकिन पिछले माह एनजीटी की ओर से भेजी गई एक टीम की सर्वे रिपोर्ट में सामने आया कि सीईटीपी फाउंडेशन की ओर से संचालित हो रहा ट्रीटमेंट प्लांट सिर्फ एक पंपिंग हाउस का कार्य कर रहा है. साथ ही प्लांट की ओर से बांडी नदी में बहाया जा रहा प्रदूषित पानी एनजीटी के मानकों पर खरा नहीं उतरा.

700 से ज्यादा कपड़ा इकाइयों पर संकट...

वहीं बांडी नदी और नहेड़ा बांध के प्रदूषण का कारण भी इस बहते पानी को ही बताया गया था. इसके बाद एनजीटी ने और सख्ती बरत दी, जिससे पाली में संचालित हो रही 700 से ज्यादा कपड़ा इकाइयों और इसमें काम करने वाले लगभग 50 हजार से ज्यादा श्रमिकों के रोजगार पर संकट बन आया है. ऐसे में सीईटीपी फाउंडेशन पाली में जेडएलडी स्थापित कर पाली की जीवन रेखा कहे जाने वाले कपड़ा उद्योग को जिंदा रखना चाहते हैं.

Intro:पाली. शहर के टेक्सटाइल उद्योगों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रस्तावित जेडएलडी (जीरो लिक्विड डिस्चार्ज) प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने की दिशा में सीईटीपी फाउंडेशन ने पहला कदम बढ़ाया है। देश की प्रमुख 15 कंपनियों के प्रतिनिधियों ने पाली पहुंचकर प्रजेंटेशन दिया, टेंडर कॉपी खरीदने वाली 11 कंपनियों ने प्रोजेक्ट को लेकर ट्रीटमेंट प्लांटों का अवलोकन किया। साथ ही टेंडर में तकनीकी बिंदुओं उल्लेखनीय शर्तों व वित्तीय पहलुओं के बारे में सवाल रखे। सीईटीपी पदाधिकारियों ने उक्त सवालों को लिखित में देने के लिए कहा, ताकि आम उद्यमियों की बैठक में इसका निस्तारण कराया जा सके। सीईटीपी का दावा है कि दो-तीन दिन में उक्त कंपनी की तरफ से किए सवालों पर चर्चा करने के बाद फाइनैंशल बिड्स पर चर्चा होगी।


Body:सीईटीपी पदाधिकारियों के अनुसार जनवरी में प्रोजेक्ट का कार्य आदेश जारी कर दिया जाएगा। शहर की फैक्ट्रियों से निकलने वाला रंगीन पानी को जीरो लिक्विड डिस्चार्ज प्रोजेक्ट लगाने को लेकर केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने सैद्धांतिक मंजूरी देने के बाद से ही सीईटीपी फाउंडेशन इसको लेकर गंभीरता से प्रयास कर रहा था। क्योंकि 2 साल पहले भी केंद्र सरकार ने आईडीपीएस के तहत जेडएलडी को मंजूरी प्रदान कर दी थी। पहली किस्त के रूप में सीईटीपी फाउंडेशन के खाते में 7.50 करोड़ रूपए की राशि जमा करवा दी गई थी। मगर सीईटीपी ने इस राशि का उपयोग नहीं किया। इसके चलते केंद्र सरकार ने इस राशि को वापस मांग ली थी। इसके चलते सीईटीपी को काफी मुश्किलों से दोबारा इस प्रोजेक्ट की मंजूरी मिली है। एनजीटी में सीईटीपी फाउंडेशन ने 18 महीने में ही प्रोजेक्ट को पूरा करने का शपथ पत्र भी दे चुका है।


Conclusion:गौरतलब है कि पाली में संचालित हो रही 700 से ज्यादा कपड़ा इकाइयों से निकलने वाला रंगीन प्रदूषित पानी लगातार बांडी नदी में बहा देने से बांडी नदी व उसके रास्ते में आने वाला नेहड़ा बांध व आसपास के खेत बंजर होने लग गए हैं। ऐसे में किसानों के उग्र आंदोलन के बाद में एनजीटी ने इसमें हस्तक्षेप करते हुए पाली के कपड़ा इकाइयों पर सख्ती बरती। इस सख्ती के बाद में पाली की कपड़ा इकाइयों पर संकट के काले बादल मंडराने लग गए। एनजीटी ने पाली में संचालित हो रही सीईटीपी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को बांडी नदी में बहने वाले प्रदूषित पानी को ट्रीट करने के निर्देश दिए थे। ऐसे में पाली में स्थापित ट्रीटमेंट प्लांट से इस पानी को ट्रीट करके बांडी नदी में बहाने का दावा किया जा रहा था। लेकिन गत माह एनजीटी द्वारा भेजी गई एक टीम की सर्वे रिपोर्ट में सामने आया कि सीईटीपी फाउंडेशन द्वारा संचालित हो रहा ट्रीटमेंट प्लांट सिर्फ एक पंपिंग हाउस का कार्य कर रहा है। प्लांट द्वारा बांडी नदी में बहाया जा रहा प्रदूषित पानी एनजीटी के मानकों पर खरा नहीं है। ऐसे में बांडी नदी व नहेड़ा बांध के प्रदूषण का कारण इस बहते पानी को ही बताया गया था। इसके बाद में एनजीटी ने और सख्ती बरत दी। जिससे पाली में संचालित हो रही 700 से ज्यादा कपड़ा इकाइयों और इसमें काम करने वाले लगभग 50,000 से ज्यादा श्रमिकों के रोजगार पर संकट बन आया है। ऐसे में सीईटीपी फाउंडेशन पाली में जेडएलडी स्थापित कर पाली की जीवन रेखा जाने वाले कपड़ा उद्योग को जिंदा रखना चाहते हैं। साथ ही 50,000 से ज्यादा यहां काम करने वाले श्रमिकों का घर का चूल्हा भी जलता रहे ऐसी उम्मीद कर रहे हैं।

समाचार में सीईटीपी फाउंडेशन के सचिव अरुण जैन की बाईट है।
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