पाली. प्रदेश में बीते दिनों हुई बारिश से जिस प्रकार से नदी-नालों में तेजी देखने को मिली, उससे किसानों की चिंताएं एक बार फिर बढ़ने लगी है. कुछ ऐसा ही हाल राजस्थान के पाली जिले का भी है, जहां बांडी नदी के सहारे रहने वाले किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें देखने को मिल रही है. इन किसानों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि इनकी खेतों में पड़ी खड़ी फसलें खराब होने लगी है. इसका मुख्य कारण पाली में संचालित हो रही करीब 600 कपड़ा इकाईयों द्वारा सीधे ही बांडी नदी में प्रदूषित पानी छोड़ा जाता है.
पाली में प्रदूषण की समस्या की बात करें तो यह समस्या कई सालों से यूं ही बरकरार है. जिले की प्रदूषण की समस्या का मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर भी कई बार उठ चुका है. किसान अपनी समस्या को लेकर हर दहलीज पर जा चुके हैं, लेकिन आज भी इन किसानों की स्थिति जस की तस बनी हुई है, जो 20 साल पहले उभर कर सामने आई थी. ऐसे में एक बार फिर से जिले का किसान अपनी इस समस्या को लेकर खड़ा हो चुका है.
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बता दें कि पाली में करीब 600 कपड़ा इकाई संचालित होती है, जिनमें रंगाई छपाई का कार्य होता है. इन रंगाई छपाई के लिए काफी हानिकारक रंगों और केमिकल का उपयोग किया जाता है. इसके बाद इन कपड़ों की धुलाई करने के बाद जो प्रदूषित पानी बचता है, उसे कपड़ा इकाईयों द्वारा सीधे शहर के सहारे निकाल रही बांडी नदी में गिरा दिया जाता है. हालांकि, प्रशासन की ओर से इस पर पूरी तरह से रोक है और इस पानी को ट्रीट करने के लिए पाली में सीईटीपी प्लांट भी बनाया हुआ है. लेकिन इन सभी के बावजूद उद्यमी चोरी-छिपे मौका देखते ही रंगीन पानी नदी में डालने से नहीं चूकते हैं.
इसके चलते हर समय बांडी नदी में रंगीन पानी के नाले उफान करते रहते हैं. अब बारिश का समय आ चुका है और नदी-नालों में पानी की आवक तेज है. ऐसे में पिछले 2 महीने से कपड़ा इकाईयों के संचालन होने के बाद जो रंगीन पानी नदी में आता है. वहीं, नदी चलते ही बांडी नदी के रास्ते आने वाले और रोहट के नेहड़ा बांध में चला जाएगा. दरअसल, बारिश के समय नेहड़ा बांध पूरी तरह से शुद्ध बारिश के पानी से भर जाता है, जिससे किसान अपनी फसलों की सिंचाई करते हैं. लेकिन बंदी नदी में इकट्ठा हो रखा रंगीन पानी अब किसानों के लिए कड़ी चिंता बनकर उभर रहा है.
इसको लेकर एक बार फिर से पाली किसान संघर्ष समिति की ओर से किसानों के हित में आवाज उठाने का कार्य शुरू हो चुका है. इस समस्या को लेकर किसान संघर्ष समिति के प्रतिनिधि जिला कलेक्टर से मुलाकात भी कर चुके हैं. इस संबंध में जिला कलेक्टर ने भी किसानों और उद्यमियों की बैठक लेकर उन्हें निर्देश भी दिए हैं. लेकिन इन सभी के बावजूद नदी में रंगीन एवं दूषित पानी बहने का सिलसिला लगातार जारी है.
एनजीटी में चल रहा है कई साल से प्रदूषण का मुद्दा
जानकारी के मुताबिक बांडी नदी में प्रदूषण की समस्या कोई ताजी नहीं है. जिले में पिछले 20 साल से धीरे-धीरे कर बांडी नदी से लेकर रोहट के नेहड़ा तक प्रदूषण की समस्या बढ़ती ही गई. इसके साथ ही किसानों की परेशानियां भी बढ़ती चली गई. इस बीच किसानों की आवाज उठाने के लिए किसान संघर्ष समिति ने एनजीटी कोर्ट में इस मामले को दायर किया था, जिसके बाद पाली में कपड़ा इकाईयों के ऊपर सख्ती बढ़ने लगी.
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उद्यमों की लापरवाही के चलते पाली का कपड़ा उद्योग छह महीने तक बंद भी रहा. उस दौरान पाली के कई कपड़ा उद्यमी आर्थिक संकट को देखते हुए यहां से पलायन भी कर चुके थे. लेकिन पाली के कपड़ा उद्योग को जिंदा रखने के लिए फिर से प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों ने कोशिश की और पूरे पानी को बांडी नदी में छोड़ने का दावा करते हुए फिर से कपड़ा उद्योग को शुरू करवाया था. लेकिन अपनी समस्याओं को भूल एक बार फिर से कपड़ा उद्यमी लापरवाह हो चुके हैं.
रास्ते में हजार से ज्यादा किसानों के खेत
पाली में बांडी नदी से लेकर नेहड़ा बांध तक हजारों किसानों की जमीन रास्ते में आती है. इन हजारों किसानों की जमीनों की सिंचाई भी नोएडा बांध में बारिश के समय भरा रहने वाले शुद्ध पानी से ही हो जाती है. वहीं, अगर कपड़ा इकाईयों का प्रदूषित पानी नेहड़ा बांध में पहुंच जाता है, तो किसानों के लिए अपनी फसल को सिंचित करना सबसे बड़ी समस्या हो जाती है. इसके चलते किसानों को पूरे साल आर्थिक संकट से गुजरना पड़ता है.