पाली. भारत देश में हर पर्व-त्योहारों को लेकर अलग-अलग मान्यताएं और किदवंतिया हैं. कई किस्से तो ऐसे हैं जिसे सुनकर पहली बार में विश्वास करना मुश्किल है. ऐसा ही एक रहस्यमयी किस्सा है पाली जिला मुख्यालय से 105 किलोमीटर दूर भाटून्द गांव के शीतला माता मंदिर में स्थित चमत्कारी ओखली का. यह ओखली मात्र एक फीट गहरी और 6 इंच चौड़ी है. इसमें कई लीटर पानी डालने के बाद ये नहीं भरती. मान्यता है कि जब मंदिर के पुजारी पूजा-अर्चना कर पंचामृत की बूंदें इस ओखली में डालते हैं, तब पानी बाहर आ जाता.
इस रहस्य के पीछे पौराणिक कथा है. ग्रामीण बताते हैं कि करीब एक हजार हजार साल पूर्व भाटून्द गांव में ब्राह्मण ही निवास किया करते थे. एक बार बाबरा नामक राक्षस ने गांव में तबाही मचा दी. राक्षस अदृश्य होकर तांडव मचाता था. लोगों को परेशान भी करता था. धीरे-धीरे उसका अत्याचार बढ़ने लगा. जब भी गांव में कोई शादी होती थी तो राक्षस उसमें विघ्न डालता था. शादी के मंडप में तीसरे फेरे में राक्षस दूल्हे को मार देता था. ये कर्म चलता रहा और गांव में विधवाओं की संख्या बढ़ गई. इससे ब्राह्मण बहुत परेशान थे.
मां ने लिया बच्ची का अवतार : ग्रामीणों के अनुसार कई सालों बाद एक दिन साधुओं की टोली इस गांव से गुजर रही थी. गांव वालों ने उन्हें अपनी पीड़ा सुनाई. इस पर साधुओं ने बताया कि मेवाड़ में उतेरा गांव है जो वर्तमान में उटबदा नाम से है. वहां जाओ और मां शीतला की तपस्या करो. अगर मां खुश हो गईं तो समस्या का निदान हो जाएगा. भाटून्द गांव से कई ब्राह्मण उतेरा पहुंचे और सालों तपस्या की. तब जाकर मां प्रसन्न हुईं और ब्राह्मणों के सामने प्रकट हुईं. ग्रामीणों की पीड़ा सुमकर मां ने एक बच्ची का रूप धारण किया और भाटून्द गांव आ गईं.
शीतला मां ने किया राक्षस का वध : अंजान छोटी सी बच्ची को देखकर हर कोई असमंजस में था. बच्ची के रूप में देवी ने गांव के बिच में ही शादी की तैयारी करने को कहा. गांव वालों ने शादी योग्य लड़की की तयारी की. मंडप सजाया गया. बरात धूमधाम से आई. हर बार की तरह तीसरे फेरे की बारी आते ही राक्षस आ गया. इस पर मां शीतला ने अपना विकराल रूप धारण किया और राक्षस को बालों से पकड़कर जमीन पर गिरा दिया. देवी ने अपना त्रिशूल राक्षस की छाती के आर-पार कर दिया.
मां शीतला ने मारने से पहले राक्षस से उसकी अंतिम इच्छा पूछी. राक्षस ने कहा कि मुझे साल में दो बार बलि और पिने को मदिरा चाहिए. लेकिन ब्राह्मणों ने साफ इनकार कर दिया. तब से उसे बलि के रूप में सूखा आटा व गुड़, दही इत्यादि दिया जता है. मदिरा की जगह पर राक्षस को पानी पिलाया जाता है. मान्यता है कि यही वो ओखली है जिसमे डाला गया पानी राक्षस को मिलता है.
साल में दो बार लगता है मेला : ओखली को साल में दो बार एक खोला जाता है. एक शीतला सप्तमी और दूसरा ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर. इस दिन गांव की महिलाएं सर पर कलश धारण कर दिनभर ओखली में पानी डालती हैं. इस दिन गांव में मेला लगता है. मान्यता है कि इससे गांव में खुशहाली और शांति बनी रहती है. ग्रामीणों ने बताया कि इस कहानी पर सिरोही दरबार ने विश्वास नहीं किया था. वो स्वयं आए और मंदिर के सामने स्थित बावड़ी और अन्य कुओं से पानी को ओखली में डाला, लेकिन ओखली नहीं भरी. उन्होंने मंदिर का परकोटा बनवाया और मां से माफी भी मांगी.