पाली. कपड़ा उद्योग को जिले की जीवन रेखा माना जाता है. लॉकडाउन में यह उद्योग पूरी तरह से ठप हो गया था. ऐसे में अनलॉक के बाद कपड़ा उद्यमियों को उम्मीदें जगी कि अब उद्योग फिर से पटरी पर लौट आएगा, लेकिन पाली में अनलॉक होने के तीन माह बाद भी उद्यमियों के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही हैं.
पाली शहर में 600 से ज्यादा कपड़ा इकाई संचालित होती हैं और 45 हजार से ज्यादा घरों के चूल्हे जलते हैं. लॉकडाउन से पहले यह कपड़ा उद्योग अपने पूरे चरम पर था. देश और विदेश में यहां से कपड़े निर्यात किए जाते थे, लेकिन अचानक से लगे लॉकडाउन ने इस पर पर ग्रहण लगा दिया. लॉकडाउन के दौरान कपड़ा इकाइयों के सभी श्रमिक यहां से पलायन कर गए. अब अनलॉक के बाद इन कपड़ा इकाइयों को संचालित करने की परमिशन तो मिल गई, लेकिन कई प्रदेशों में लॉकडाउन आज भी ज्यों का त्यों है. ऐसे में न ही इन उद्यमियों के पास कच्चा माल पहुंच पा रहा है और ना ही श्रमिक पहुंच पा रहे हैं. जिससे कैसे उद्योग सुचारू रूप से चले उद्यमियों को चिंता सता रही है.
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दूसरी तरफ कपड़ा उद्यमियों का बाजार में अटका पैसा भी लॉकडाउन के चलते इनके पास आज तक नहीं पहुंच पाया है. ऐसे में पाली का कपड़ा उद्यमियों के सामने दोहरी परेशानी खड़ी हो गई है. आर्थिक संकट से जूझ रहे कपड़ा उद्यमी पाली के कपड़ा उद्योग को जिंदा रखना चाहते हैं, लेकिन इन विषम परिस्थितियों में इन उद्यमियों के सामने अपने कपड़ा उद्योग को चलाना सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रही है.
उधमियों पर आर्थिक संकट...
पाली के कपड़ा उद्यमी महावीर कटारिया ने बताया कि पाली से देश पर सहित विदेश में भी सूती कपड़ा निर्यात होने के लिए जाता था. लॉकडाउन से पहले प्रत्येक उद्यमी का करोड़ों रुपए का कपड़ा अलग-अलग बाजार में निर्यात होने के लिए गया था. अचानक से देश में लगे लॉकडाउन के बाद उनका करोड़ों रुपया आज भी बाजार में अटका हुआ है. कटारिया कहते हैं कि फंसे पैसे को जुटाने की काफी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अभी भी उनका वह पैसा बाजार से लौटकर नहीं आ रहा है. उसके बाद अब कपड़े इकाई शुरू हो चुकी है, लेकिन अब बाहर ही कई समस्याओं के चलते कपड़ा उसमें पूरी तरह से आर्थिक संकट में पहुंच चुका है.
नहीं लौट रहे हुनरमंद श्रमिक...
लॉकडाउन ने रोजी-रोटी ठप किया तो जिले से हजारों की संख्या में बाहरी प्रदेश के श्रमिक घर लौट गए. वहीं, स्थितियां समान्य नहीं होने तक श्रमिक वापस पाली नहीं आना चाहते. ऐसे में अपनी रंगाई और छपाई के लिए पहचान रखने वाला कपड़ा उद्योग को गुणवत्ता वाले श्रमिक नहीं मिल पा रहे हैं.
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अभी संचालित हो रही कपड़ा इकाइयों में स्थानीय श्रमिकों से काम चलाया जा रहा है, लेकिन वो पहले वाली गुणवत्ता नहीं आ पा रही है. इसलिए और भी इन कपड़ों की मांग कम गई है. उद्यमियों ने कई बार श्रमिकों को फिर से यहां बुलाने का प्रयास किया है, लेकिन कपड़ा उद्योग में हुनरमंद श्रमिकों का टोटा फिलहाल बरकरार है.
हालातों पर एक नजर...
- अनलॉक को पाली में हो गए तीन माह
- पाली में संचालित हो रही है 658 कपड़ा इकाई
- 45 हजार से ज्यादा परिवार है इस पर आश्रित
- 4000 से ज्यादा यहां से लोग करते हैं ट्रेडिंग
- कई प्रांतों में लॉकडाउन के चलते नहीं पहुंच पा रहा है ग्रे कपड़ा
- लॉकडाउन लगते ही आर्थिक संकट में पहुंचा पाली का कपड़ा उद्यमी
कच्चे माल के अभाव में घटा उत्पादन...
पाली के कपड़ा उद्यमियों ने जानकारी दी कि यहां आने वाला कपड़े का कच्चा माल मुंबई, बंगाल, गुजरात, बिहार व उत्तराखंड सहित कई प्रदेशों से आता है. अभी भी कई प्रदेशों में लॉकडाउन लगा हुआ, जिसके चलते वहां से कच्चा माल यहां नहीं पहुंच पा रहा है. ऐसे में कपड़ा इकाइयों में उत्पादन काफी घटा चुका है.
द्यमियों की मानें तो पाली के प्रति कपड़े इकाइयों में करीब 60 फीसदी से ज्यादा उत्पादन घट चुका है, जो कपड़ा उद्यमी के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो रहा है. कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के ऐसे दुष्प्रभाव हैं, जिससे कपड़ा उद्यमियों को उबरने में काफी वक्त लगेगा.